
सरकार का दावा है कि इस बार गेहूं खरीद में अच्छी सफलता इसलिए मिल रही है क्योंकि कटाई से पहले ही अधिकारियों ने गांव-गांव जाकर किसानों को सरकारी केंद्रों तक आने के लिए प्रेरित किया. उत्तर प्रदेश में इस साल गेहूं खरीद ने रफ्तार पकड़ ली है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सख्त निर्देश और राज्य सरकार की रणनीति का असर दिखने लगा है. पहली बार ऐसा हुआ है कि अप्रैल के पहले ही हफ्ते में सरकारी गेहूं खरीद का आंकड़ा 1 लाख मीट्रिक टन को पार कर गया है. इससे किसानों में भी संतोष का माहौल है.
राज्य सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, अब तक कुल 356,797 किसानों ने गेहूं खरीद सत्र में पंजीकरण कराया है. इनमें से 20,409 किसानों से 105,902.39 मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की जा चुकी है. इसके लिए 5780 गेहूं क्रय केंद्र और 736 डिपो बनाए गए हैं, जो लगातार खरीद में जुटे हैं.
गांव में गए अधिकारी
सरकार का दावा है कि इस बार गेहूं खरीद में अच्छी सफलता इसलिए मिल रही है क्योंकि कटाई से पहले ही अधिकारियों ने गांव-गांव जाकर किसानों को सरकारी केंद्रों तक आने के लिए प्रेरित किया. पंजीकरण और सत्यापन प्रक्रिया को भी सरल और तेज किया गया है. अब कोई भी पंजीकृत किसान बिना सत्यापन के 100 क्विंटल तक गेहूं बेच सकता है और सत्यापन के बाद अपनी उत्पादन क्षमता के तीन गुना तक बिक्री कर सकता है.
इस बार पहली बार मोबाइल क्रय केंद्रों की शुरुआत भी की गई है, जो किसानों के खेतों तक पहुंचकर वहीं पर तुलाई और खरीद की प्रक्रिया पूरी कर रहे हैं. इसके साथ ही सीएम योगी के निर्देश पर अवकाश के दिन भी खरीद केंद्र खुले रखे जा रहे हैं, ताकि किसानों को समय पर सुविधा मिल सके.
विपक्ष उठा रहा ये सवाल
जहां सरकार इस उपलब्धि को अपनी नीति और किसान हितैषी सोच का नतीजा बता रही है, वहीं विपक्ष इस पर सवाल उठा रहा है. विपक्षी दलों का कहना है कि अगर सरकार किसानों का इतना ही ख्याल रखती है तो देश और प्रदेश दोनों जगह बीजेपी की सरकार होते हुए भी MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर कानून क्यों नहीं लाया जा रहा है? विपक्ष ने यह भी कहा कि चुनाव के समय किसानों को वादे तो किए जाते हैं, लेकिन जब बात कानूनी सुरक्षा देने की आती है तो सरकार पीछे हट जाती है. उत्तर प्रदेश भारत के प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों में शामिल है. यहां हर साल अप्रैल से जून के बीच गेहूं की सरकारी खरीद होती है. इस साल सरकार ने MSP 2275 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है. किसान चाहते हैं कि यह कीमत कानूनी रूप से सुनिश्चित हो, जिससे बाजार में उन्हें धोखा न मिले.