शारदीय नवरात्र (Shardiya Navratri 2024) का उत्सव अति उत्तम माना जाता है। आश्विन माह के नवरात्र को शारदीय के नाम से जाना जाता है। साधक इन नौ दिनों में मां दुर्गा की पूजा कर जीवन को खुशहाल बनाते हैं। शारदीय नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। साथ ही भय से छुटकारा पाने के लिए व्रत भी किया जाता है।
सनातन धर्म में नवरात्र के पर्व का विशेष महत्व है। पंचांग के अनुसार, इस बार शारदीय नवरात्र का शुभारंभ 03 अक्टूबर से हुआ है। वहीं, इस पर्व का समापन 11 अक्टूबर को होगा। उत्सव का सातवां दिन मां कालरात्रि (Today Navratri Devi) को समर्पित है। इस बार सातवां दिन आज यानी 09 अक्टूबर को है। धार्मिक मत है कि मां कालरात्रि की पूजा करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। मां कालरात्रि (Shardiya Navratri 2024 7th Day) को वीरता और साहस का प्रतीक माना गया है। इस दिन पूजा के दौरान मां कालरात्रि की व्रत कथा का पाठ करना चाहिए। इससे साधक को सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। आइए पढ़ते हैं मां कालरात्रि (Maa Kalratri Katha) की व्रत कथा।
मां कालरात्रि की कथा (Maa Kalratri Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार, शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज नाम के राक्षस ने लोकों में आतंक मचा रखा था। इनके अत्याचार से सभी देवी-देवता परेशान हो गए थे। ऐसे में देवी-देवता ने भगवान शिव से इस समस्या से मुक्ति पाने के लिए कोई उपाय मांगा। जब महादेव ने मां पार्वती को राक्षसों का वध करने का आदेश दिया, तो मां पार्वती ने मां दुर्गा का रूप धारण कर शुंभ-निशुंभ का वध किया।
रक्तबीज को मिला था ये वरदान
इसके बाद जब मां दुर्गा का सामना रक्तबीज से हुआ, तो उसके शरीर के रक्त से अधिक की संख्या में रक्तबीज दैत्य उत्पन्न हो गए, क्योंकि उसे वरदान मिला हुआ था कि यदि उनके रक्त की बूंद धरती पर गिरती है, तो उसके जैसा एक और दानव उत्पन्न हो जाएगा। ऐसे में दुर्गा ने अपने प्रकाश से मां कालरात्रि को प्रकट किया। इसके पश्चात मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का वध किया, तो मां कालरात्रि ने उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस तरह रक्तबीज का अंत हुआ।