पहले से ही 20 भूस्खलन जोन, अब नए क्षेत्रों ने बढ़ाई चुनौती, राष्ट्रीय राजमार्गों पर 203 चिह्नित

इस मानसून सीजन में सिलाई बैंड समेत कई जगहों पर नए भूस्खलन जोन बन गए। राष्ट्रीय राजमार्गों पर 203 भूस्खलन जोन चिह्नित किए गए हैं। यहां पर विशेषज्ञ संस्था की सलाह के बाद ट्रीटमेंट का खाका खींच गया, लेकिन इस बार जो नए जोन बने हैं, उन्होंने चुनौती और बढ़ा दी है।

प्रदेश में आपदा के चलते चुनौतियां बढ़ी हैं। राज्य के राष्ट्रीय राजमार्गों की बात करें तो इन पर एक-दो नहीं बल्कि दो सौ से अधिक भूस्खलन जोन चिह्नित हैं। इस बार मानसून में यमुनोत्री मार्ग पर सिलाई बैंड समेत कई अन्य जगहों पर हुए भूस्खलन और भूकटाव के चलते नए जोन बन गए हैं। प्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्ग के अधीन 3594 किमी सड़क हैं।

इन मार्गों को चौड़ा कर सुगम और त्वरित आवागमन की सुविधा को बढ़ाने का प्रयास किया गया, लेकिन भूस्खलन, भूधंसाव और भूकटाव के चलते चुनौतियां बनी हुई हैं। इन राष्ट्रीय राजमार्गों पर 203 भूस्खलन जोन चिह्नित किए गए हैं। यहां पर विशेषज्ञ संस्था की सलाह के बाद ट्रीटमेंट का खाका खींच गया, लेकिन इस बार जो नए जोन बने हैं, उन्होंने चुनौती और बढ़ा दी है।

राष्ट्रीय राजमार्ग के मुख्य अभियंता मुकेश परमार ने बताया कि भूस्खलन जोन पहले से थे, उनके अलावा नए स्थल बने हैं। इसमें यमुनोत्री मार्ग पर सिलाई बैंड, नारदचट्टी, फूलचट्टी में समस्या बनी हुई है। इसके अलावा बदरीनाथ मार्ग पर फरासू में कटाव हो रहा है। गुलर घाटी में भूस्खलन की दिक्कत हुई है। इन जगहों की स्थायी ट्रीटमेंट के लिए योजना बनाई जाएगी।

127 डीपीआर स्वीकृत हो चुकीं
भूस्खलन की दृष्टि से 203 जगह चिह्नित हैं। इसमें 127 ट्रीटमेंट कामों की बनी डीपीआर को स्वीकृति मिल चुकी है। बीस जगहों पर उपचार के काम भी चल रहे हैं। मुख्य अभियंता परमार कहते हैं कि आपदा से राष्ट्रीय राजमार्ग को जो नुकसान हुआ है, उसको पूर्व की अवस्था में लाने के लिए एक हजार करोड़ से अधिक का खर्च संभावित है।

स्लोप प्रोटेक्शन का काम होना चाहिए
जीएसआई के पूर्व उप महानिदेशक त्रिभुवन सिंह पांगती ने बताया कि पहाड़ों पर सड़क निर्माण के दौरान अनियंत्रित ब्लास्टिंग की जाती है, इससे पहाड़ ढीले हो जाते हैं। मानसून के समय बारिश होने पर यह मलबा नीचे की तरफ आता है। साथ ही पहाड़ काटने के बाद उसके ऊपर के हिस्से में उपचार का काम नहीं होता है, इससे भी भूस्खलन होता है। यहां पर ट्रीटमेंट होना चाहिए। वाडिया हिमालय भू- विज्ञान संस्थान के पूर्व वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने बताया कि सड़क बनाने के समय पहाड़ों को काटने के समय स्लोप पर ध्यान नहीं दिया जाता है, जिससे उसका मलबा नीचे आता है। स्लोप प्रोटेक्शन का काम होना चाहिए।

टनकपुर- पिथौरागढ़ मार्ग पर 60 भूस्खलन जोन

टनकपुर- पिथौरागढ़ मार्ग को फोरलेन किया गया है। पर यहां पर खासकर बरसात में होने वाले भूस्खलन के चलते मार्ग पर आवागमन प्रभावित होता रहा है। अभी तक राष्ट्रीय राजमार्ग केवल 27 का ट्रीटमेंट का पूरा कर सका है।सीमांत क्षेत्र को जाने वाले दो प्रमुख मार्ग हैं। इसमें देहरादून- पिथौरागढ़ और रानीबाग- अल्मोड़ा- पिथरौरागढ़ मार्ग है, जिसका इस्तेमाल लोग आवागमन के लिए करते हैं।

देहरादून- पिथौरागढ़ मार्ग पर एक- दो नहीं बल्कि 60 भूस्खलन जोन को चिह्नित किया गया। इसमें 27 का उपचार का काम हो सका है। भूस्खलन ट्रीटमेंट के चलते मोटी रकम भी खर्च हुई है। इन कामों के लिए करीब 318 करोड़ का बजट रखा गया है। बारिश के समय रानीबाग- भीमताल- अल्मोड़ा मार्ग पर भी भूस्खलन के चलते मार्ग बाधित हुआ। रानीबाग- भीमताल के नए पुल के पास नया भूस्खलन जोन बना है। सलड़ी के पास भी भूस्खलन हुआ। क्वारब की समस्या लंबे समय से बनी हुई है, इस बार भूस्खलन के चलते कई दिनों तक मार्ग बाधित रहा है। भीमताल में ढुंगशील और नैनीताल में बलियानाला भी भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र रहे हैं।

ऑलवेदर रोड परियोजना ने जितनी सुविधा दी उतने ही कष्ट भी दिए
चमोली में भूस्खलन की घटनाएं बढ़ गई हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के साथ ही शहरी क्षेत्रों में भूस्खलन से कई भवन खतरे की जद में पहुंच गए हैं। जिले में ऑलवेदर रोड परियोजना का काम भी खासा प्रभावित हो गया है। कई जगहों पर बदरीनाथ हाईवे भूस्खलन से ग्रसित है। हालांकि कुछ जगहों पर परियोजना कार्य के बाद भूस्खलन रुका है। छिनका भूस्खलन क्षेत्र का परियोजना के तहत ट्रीटमेंट किया गया। यहां पिछले एक दशक से भूस्खलन परेशानी खड़ी करता था। अब यहां हाईवे चौड़ीकरण कार्य होने से अंधे मोड़ से भी निजात मिल गई है और सड़क चौड़ी हो गई है। लेकिन इससे पहले क्षेत्रपाल में भूस्खलन से हाईवे खस्ता हालत में पहुंच गया है। यहां कार्यदायी संस्था पिछले एक साल से भूस्खलन वाली पहाड़ी के ट्रीटमेंट में जुटी है, बावजूद इसके यहां भूस्खलन थम नहीं रहा है। हाईवे पर मैठाणा, कमेड़ा और पीपलकोटी के भनेरपाणी में भूस्खलन सिरदर्द बना हुआ है।

कमेड़ा से नहीं निपटे कि उमट्टा बना नया भूस्खलन जोन
ऑलवेदर रोड पर गौचर के पास कमेड़ा भूस्खलन जोन का स्थायी समाधान बीते तीन साल में नहीं निकल पाया है। यहां पहाड़ी के बड़े हिस्से में हो रहे भूस्खलन से बदरीनाथ हाईवे को भारी नुकसान पहुंच रहा है। कमेड़ा में हालात नहीं सुधर पाए कि अब बदरीनाथ हाईवे पर कर्णप्रयाग के पास उमट्टा ने मुसीबत बढ़ा दी है। यहां बीते वर्ष पहाड़ी के हिस्से से मलबा आया था।। लेकिन इस बार भूस्खलन पे पहाड़ी के बड़े हिस्से अपनी जद में ले लिया है। यहां बने पुल और पुल से गुजरने वाले गदेरे के दोनो ओर भूस्खलन हो रहा है।

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