दिल्ली पुलिस के हवलदार थान सिंह ने शिक्षा को जरिया बनाकर यह कर दिखाया है। लाल किला पार्किंग परिसर में वह पाठशाला चलाकर गरीब, असहाय और झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के अंदर शिक्षा की अलख जगा रहे हैं।
सच्ची मेहनत और समर्पण से समाज में बदलाव लाया जा सकता है। दिल्ली पुलिस के हवलदार थान सिंह ने शिक्षा को जरिया बनाकर यह कर दिखाया है। लाल किला पार्किंग परिसर में वह पाठशाला चलाकर गरीब, असहाय और झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के अंदर शिक्षा की अलख जगा रहे हैं।
थान सिंह अब तक लगभग 200 बच्चों को अपनी पाठशाला में पढ़ाकर स्कूलों में दाखिला दिला चुके हैं। मौजूदा समय में उनकी पाठशाला में 100 से अधिक बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। ऐसे में उन्होंने अपने कार्य को केवल नौकरी तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि समाज में कीर्तिमान भी स्थापित किया है।
खुद गरीबी से लड़कर निकले थान सिंह अब वंचितों का भविष्य संवार रहे हैं। वह दिन में अपनी ड्यूटी कर वर्दी का फर्ज निभाते हैं। साथ ही, इन बच्चों को पढ़ाते भी हैं। मूलरूप से राजस्थान के भरतपुर के रहने वाले 35 वर्षीय थान सिंह इन दिनों निहाल विहार में रहते हैं। उन्होंने बताया कि उनका बचपन पीरागढ़ी की मीरा बाग की जेजे कॉलोनी में बीता है। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से वह झुग्गी बस्ती में रहते हुए कपड़ों पर प्रेस, होटल में वेटर और बसों में भूट्टे तक बेच चुके हैं। उनका कहना है कि उनका सपना है कि कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे। वह वर्ष 2010 में दिल्ली पुलिस में सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे।
विदेशी भी करते दौरा
उनकी पाठशाला की देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी गूंज है। उनकी पाठशाला को देखने के लिए विदेशी मेहमान भी पहुंचते हैं। ऐसे में उनके शिक्षा के प्रति जुनून और उनकी अथक मेहनत ने विदेशी मेहमानों को खासा प्रभावित किया है। उन्होंने बताया कि पाठशाला की शुरुआत महज चार बच्चों से की थी, लेकिन अब उनकी मेहनत रंग ला रही है।
10 हजार रुपये बच्चों पर खर्च करते हैं वेतन से
पाठशाला की सफलता को देखते हुए माता सुंदरी कॉलेज की कुछ छात्राओं ने भी थान सिंह की सहायता करने का निर्णय लिया और वे वर्तमान में 10 छात्राएं थान सिंह की पाठशाला में बच्चों को पढ़ा रही हैं। उन्होंने कहा कि वह अपने वेतन में से करीब 10 हजार रुपये बच्चों की शिक्षा पर खर्च करते हैं, जिसमें वह बच्चों को बस्ते, पुस्तक, कापी, पेंसिल समेत अन्य पाठ्य सामग्री मुहैया कराते हैं। वहीं, पाठशाला में आने वाले अतिथि भी बच्चों के लिए पाठ्य सामग्री और उनके खाने पीने की वस्तुएं लेकर आते हैं।
गरीब बच्चों को इल्म का नुस्खा दे रहे डॉक्टर अजय
स्वामी दयानंद अस्पताल में कार्यरत डॉक्टर अजय कुमार गरीब बच्चों को इल्म का नुस्खा देते हैं। वह अपनी शिफ्ट खत्म करने के बाद गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं। नंद नगरी में वह बीते 12 वर्ष से शिक्षण कार्य कर रहे हैं। उनकी कक्षा में रोजाना 30 से 40 बच्चे पढ़ने पहुंचते हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षा का इलाज हो जाए तो दूसरे इलाज की जरूरत नहीं पड़ती है। वह कहते हैं कि अधिक झुग्गी बस्तियों में सफाई का ध्यान नहीं रखते हैं। इससे वह जल्दी-जल्दी बीमार हो जाते हैं। इससे उन पर आर्थिक दबाव भी पड़ता है। यह सब देखकर उन्होंने बच्चों को शिक्षित करने की ठानी है।
शिक्षित भारत के सपनों को उड़ान देने में जुटे निखज
सरकारी नौकरी के साथ शिक्षित भारत के सपनों को साकार करना उनका शौक है। गांव-गांव घूमकर लाइब्रेरी ऑन व्हील के माध्यम से बच्चों को शिक्षा के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं। कभी वे मेंटोर की भूमिका में दिखाई पड़ते हैं तो कभी शिक्षक बनकर बच्चों के सपनों को नई उड़ान देने की कोशिश करते हैं। हम बात कर रहे है सीआईएसएफ के डिप्टी कमांडेंट राकेश ””निखज”” की।
जज्बात ऐसे कि अपने सरकारी काम-काज में से ही थोड़ा सा वक्त निकाल कर गरीब बच्चों की पढ़ाई व्यवस्थित करने में जुट जाते है। इतना ही नहीं खेल प्रतियोगिता कराकर वह खेलो इंडिया की सोच को भी बढ़ा रहे है। नौकरी के साथ-साथ बच्चों की शिक्षा का ध्यान रखना आसान नहीं होता, लेकिन राकेश देश की सेवा करने के साथ ही इसे भी अपनी प्राथमिकता मानते हैं। उनका मानना है कि शिक्षा ही वह साधन है, जो बच्चों के भविष्य को संवारने में मदद कर सकता है। विकसित भारत की सोच भी इसी पर टिकी है कि देश के युवा पूरी उर्जा के साथ अपने-अपने क्षेत्र में परचम लहराएं। उनका यह भी मानना है कि आज के प्रतिस्पर्धी युग में सहयोग और मार्गदर्शन बच्चों को लिए अहम है। उनके लिए एक समर्पित लाइब्रेरी की आवश्यकता को ध्यान में रख वह लाइब्रेरी की सुविधा भी दे रहे है।
ताकि खेल खेल में बच्चों में देशभक्ति का जज्बा भर सके
राकेश निखज मुखर्जी नगर में रहते है। इन दिनों उनकी पोस्टिंग जयपुर में है। उन्हें जब भी छुट्टी मिलती है वह गोपालपुर स्थित झुग्गी के बच्चों के बीच पहुंचकर उन्हें पढ़ाई और खेल के प्रति मोटिवेट करते है। उनकी कोशिश रहती है कि पंद्रह अगस्त उन्हीं बच्चों के बीच मनाएं। ताकि खेल खेल में बच्चों में देशभक्ति का जज्बा भर सके। बकौल निखज अभी तक एक दर्जन से अधिक जगहों पर लाइब्रेरी लगा चुके है। विदेश में पढ़ाई करने वाली अलीशा वहां फंड एकत्रित करती है और उसे वह भारत में लाइब्रेरी की सुविधा देने के लिए खर्च करते है। उपेक्षित वर्ग को मुख्यधारा में लाने की सोच से वह इस कार्य को नौकरी के साथ करते है।
सीएपीएफ की तैयारी करने वालों का मॉक इंटरव्यू करते है संचालित
देशभक्ति का भी जज्बा भी कम नहीं है। जिस परीक्षा की तैयारी करके निखज डिप्टी कमांडेंट बने है उस परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों को भी प्रोत्साहित करते है। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) की तैयारी करने वालों के लिए मुफ्त ऑनलाइन मॉक इंटरव्यू संचालित करते है। उन्हें बताते है कि मुख्य परीक्षा की तैयारी करने के बाद इंटरव्यू बोर्ड के सामने कैसे अपने आप को प्रस्तुत करना है। क्या क्या सवाल उनसे पूछे जा सकते है। पैरामिलिट्री फोर्स परीक्षा, जिसमें केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, सीमा सुरक्षा बल, सशस्त्र सीमा बल, भारत तिब्बत सीमा पुलिस, केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल शामिल है, में हिस्सा लेने वाले बच्चों को गाइड करते है। जब बच्चे इस फोर्स के लिए चयनित हो जाते है तो उनको सम्मानित भी करते हैं।