डॉक्टरों की हड़ताल: दिल्ली के अस्पतालों में ओपीडी ठप, आपातकालीन में बिस्तर नहीं

दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में हर दिन की करीब 70,000 की ओपीडी रहती है। निजी अस्पतालों को मिलाकर यह आंकड़ा एक लाख से ऊपर पहुंच जाता है। हड़ताल की वजह से ओपीडी सेवाएं ठप होने से सरकारी में 95 फीसदी से ज्यादा मरीज परेशान हुए।

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में हुई डॉक्टर की हत्या के विरोध में शनिवार को राष्ट्रव्यापी हड़ताल से ओपीडी पूरी तरह ठप हो गई। आपातकालीन में मरीजों को दवा तो मिली, लेकिन वार्ड में सुविधा न होने के कारण काफी मरीजों को भर्ती नहीं किया गया। ऐसे में गंभीर हालत के मरीज भी इलाज के लिए भटकते हुए नजर आए। शनिवार को एम्स की ओपीडी में 202 मरीज ही आए, जबकि सामान्य तौर पर यहां 10 हजार से ज्यादा मरीज आते हैं। वहीं, इस दौरान एम्स व इसके सेंटर पर केवल 240 मरीजों को भर्ती किया गया। छोटी-बड़ी 66 सर्जरी ही हो पाईं। एम्स की तरह ही दूसरे अस्पतालों का हाल रहा। इनमें भी ओपीडी के साथ सर्जरी व भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या काफी कम रही।

दूसरी तरफ रेजिडेंट डॉक्टरों ने सुबह एम्स, सफदरजंग, डॉ. राम मनोहर लोहिया, लेडी हार्डिंग, जीटीबी, डीडीयू सहित दूसरे अस्पतालों में विरोध प्रदर्शन किया। शाम होते ही लेडी हार्डिंग अस्पताल से जंतर-मंतर तक विरोध मार्च निकाला। इस दौरान डॉक्टरों को शिवाजी स्टेडियम के पास कुछ देर के लिए रोका भी गया, लेकिन लगातार बढ़ती डॉक्टरों की भीड़ को देखते हुए सभी को जंतर-मंतर पर जाने दिया गया। इस मौके पर फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया रेजिडेंट्स एसोसिएशन (फाइमा) के अध्यक्ष डॉ. रोहन कृष्णन ने कहा कि न्याय देने के साथ केंद्रीय कानून की मांग कर रहे हैं। मौजूदा हालात में कोई काम नहीं कर सकता। डॉक्टरों की मांग जायज है। उधर, देर रात तक डॉक्टरों की बैठक जारी रही।

सरकारी में 70 हजार की ओपीडी, निजी मिलाकर एक लाख के पार
दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में हर दिन की करीब 70,000 की ओपीडी रहती है। निजी अस्पतालों को मिलाकर यह आंकड़ा एक लाख से ऊपर पहुंच जाता है। हड़ताल की वजह से ओपीडी सेवाएं ठप होने से सरकारी में 95 फीसदी से ज्यादा मरीज परेशान हुए, जबकि निजी अस्पतालों में यह आंकड़ा 50 फीसदी से ज्यादा रहा। इससे मरीजों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ा। सर गंगाराम अस्पताल में भी इलाज के लिए मरीज भटकते रहे।

फैकल्टी ने रखी सख्त कानून बनाने की मांग
एम्स, सफदरजंग, लेडी हार्डिग, जीटीबी सहित दूसरे अस्पतालों में शनिवार को राष्ट्रव्यापी हड़ताल के दौरान फैकल्टी ने खुलकर आरडीए का समर्थन किया। शनिवार को सफदरजंग अस्पताल की फैकल्टी ने परिसर में एक जगह जुटकर कोलकाता की घटना का विरोध किया और मांग रखी कि सख्त कानून बनाना चाहिए। साथ ही पीड़िता को न्याय मिलनी चाहिए। शनिवार को विरोध प्रदर्शन करने में विभागों के अध्यक्ष के साथ प्रोफेसर सहित अन्य स्टाफ भी दिखाई दिए।

मरीजाें की हालत देख किया इलाज : डॉक्टरों की हड़ताल में जनकपुरी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के स्वास्थ्य कर्मी शामिल नहीं हो पाए। डॉक्टरों के साथ स्टाफ को सुबह 10 बजे से हड़ताल शुरू करनी थी, लेकिन सुबह दौरे पड़ने, डायलिसिस और दिल के कई रोगी आए। इनकी हालत को देखते हुए डॉक्टरों ने प्रदर्शन न करने का फैसला लिया। डॉक्टरों ने कहा कि अस्पताल में पहले ही स्टाफ की कमी है। यदि यह भी हड़ताल में शामिल हो गए तो कई मरीजों की जान जा सकती है। यहां आने वाले मरीजों में ज्यादातर बुजुर्ग होते हैं उन्हें बिना उपचार एक दिन भी रोका नहीं जा सकता है।

सुरक्षा के लिए चाहिए ठोस कानून : डीएमए
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन (डीएमए) के उपाध्यक्ष डॉ. सुनील सिंघल ने कहा कि मौजूदा समय में मेडिकल प्रोटेक्शन लॉ है, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं। कोलकाता में घटना के बाद अभी तक वास्तविक आरोपी पकड़े नहीं गए। अस्पताल में हमला तक हुआ। ऐसे माहौल में कोई कैसे काम कर सकता है। काम की जगह पर स्वास्थ्य कर्मियों को सुरक्षा का माहौल चाहिए। इसके लिए एक ठोस कानून की जरूरत है।

वहीं डीएमए के सचिव डॉ. प्रकाश लालचंदानी ने कहा कि अस्पताल में काम करने के लिए सुरक्षित माहौल हमारी पहली मांग हैं। इसके लिए केंद्रीय स्तर पर कानून होना चाहिए। शनिवार को 24 घंटे के लिए सांकेतिक हड़ताल थी, यदि हालत नहीं सुधरे तो आने वाले दिनों में और बड़ा कदम उठाना पड़ेगा। वहीं अन्य सदस्यों ने राष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश और प्रधानमंत्री ने इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है।

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