याचिकाकर्ता की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने कहा कि लोग विधानसभाओं के लिए भी इस तरह लोग निर्वाचित होते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने निर्विरोध निर्वाचन की व्यवस्था करने वाली धारा पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. एक जनहित याचिका में कहा गया है कि इकलौते प्रत्याशी को विजेता घोषित करना सही नहीं है. मतदाताओं को मतदान के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता. याचिका में कहा गया है कि लोग चाहें तो नोटा को भी वोट दे सकते हैं इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता कि एक ही प्रत्याशी हो तो मतदान करवाने की कोई जरूरत नहीं.चुनाव आयोग ने याचिका में रखी गई मांग को अनावश्यक और अव्यवहारिक बताते हुए इसका विरोध किया है. आयोग की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने नोटा को एक विफल विचार बताया. उन्होंने यह भी कहा कि अब तक के इतिहास में सिर्फ 9 लोग लोकसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं. इसका जवाब देते हुए याचिकाकर्ता की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने कहा कि लोग विधानसभाओं के लिए भी इस तरह निर्वाचित होते हैं. जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने याचिकाकर्ता की तरफ से जताई गई एक आशंका का भी उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि अगर किसी प्रत्याशी के दबाव के चलते कोई और नामांकन न करे, तो लोगों को बिना मतदान का अवसर दिए इकलौते प्रत्याशी को चुना हुआ मान लिया जाएगा. जस्टिस सूर्य कांत ने कहा कि भारत में मजबूत और उच्चस्तरीय लोकतांत्रिक व्यवस्था है. ऐसे में कम से कम यह देखा जाना चाहिए कि किसी उम्मीदवार को कितने लोग समर्थन देते हैं.
कोर्ट ने कहा, ‘अगर किसी को 10 प्रतिशत लोग भी वोट नहीं देते, तो उसे संसद में भेजना क्या सही होगा?’ इस पर केंद्र सरकार के लिए पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट नया कानून नहीं बना सकता. इस तरह की व्यवस्था अगर लानी भी है, तो उसके लिए संसद को बहुत सारे लोगों की राय लेने के बाद कानून में बदलाव करना होगा. कोर्ट ने कहा कि वह कोई अनिवार्य आदेश नहीं दे रहा है. सिर्फ इस मुद्दे पर सरकार की राय पूछ रहा है. इसके बाद कोर्ट ने सुनवाई टाल दी.