RAJASTHAN: मंत्री के खिलाफ किसने की शिकायत, राजस्थान में फिर सक्रिय हो सकती है ED.

ED को लेकर खूब चर्चाएं ED । ईडी की छापेमारी भी हुई है। अब प्रदेश में एक बार फिर से ईडी के सक्रिय होने के आसार बनते दिख रहे हैं। कुछ अफसरों को ईडी के संभावित ऑपरेशन को लेकर भनक लगी है।

सत्ता मिले और उसका रंग नहीं चढ़े, यह कैसे हो सकता है। सत्ता का रंग एक मंत्री जी को भी चढ़ गया। भनक विरोधियों को लग गई। विरोधियों ने गुपचुप मंत्री जी के हितों के टकराव से जुड़ा एक मामला ढूंढ निकाला। इसके दस्तावेजी सबूतों सहित मामले को सही जगह पहुंचाने की योजना भी बना ली। भ्रष्टाचार की जांच वाली एजेंसी और लोकायुक्त तक भी शिकायत कर दी है। आने वाले दिनों में सियासी हलकों में यह मामला गर्माएगा।

ED के रडार पर अब कौन?

विधानसभा चुनावों से लेकर लोकसभा चुनावों तक ED को लेकर खूब चर्चाएं हुईं। ईडी की छापेमारी भी हुई है। अब प्रदेश में एक बार फिर से ईडी के सक्रिय होने के आसार बनते दिख रहे हैं। कुछ अफसरों को ईडी के संभावित ऑपरेशन को लेकर भनक लगी है। कई फाइलों को खंगाला जा रहा है।

अंदर से छनकर आ रही खबरों के अनुसार ईडी तक कुछ और दस्तावेज पहुंचाए गए हैं। कुछ पुरानी गड़बड़ियों, आवंटनों को खंगालकर नए दस्तावेज ईडी तक गए हैं। अब निशाने पर कौन है, इसका खुलासा आगे की कार्रवाई से ही होगा।

जासूस होने का खौफ

कहते हैं दीवारों के भी कान होते हैं, आधुनिक युग में यह बात और ज्यादा आसान हो गई है। इसका अहसास कुछ बड़े अफसरों को पिछले दिनों हुआ। प्रदेश के सबसे बड़े दफ्तर में इन दिनों अफसर बातचीत करने में भारी सतर्कता बरतते दिख रहे हैं। कोई मन की बात आसानी से नहीं कर रहा।

इसके पीछे हाल की कुछ घटनाओं को जिम्मेदार बताया जा रहा है। कुछ बड़े अफसरों की केबिन की बातें ब्यूरोक्रेसी के मुखिया तक पहुंच गई, उनसे मिलने आने वालों से लेकर मन की बात जब लीक हो गई तो शक और डर स्वाभाविक है। कुछ बड़े अफसर उस जासूस की पहचान करने के प्रयास में है, कोई अंदर का ही व्यक्ति यह काम कर सकता है, इसलिए खौफ और खतरा ज्यादा है।

पुराने सबूतों ने बदले समीकरण

सियासत से लेकर ब्यूरोक्रेसी में आपसी स्पर्धा नई बात नहीं है, एक के पतन में दूसरे का उत्थान छिपा रहता है। इन दिनों पावरलेस हो चुके अफसर ने बड़े अफसर के खिलाफ कुछ पुराने सबूत खोज निकाले। ये सबूत दिल्ली तक पहुंचा दिए गए। जब बड़े अफसर को इसके बारे में पता लगा तो डैमेज कंट्रोल शुरू किया गया। डैमेज कितना कंट्रोल हुआ है, यह अभी साफ नहीं है। लेकिन इन सबूतों का असर कुछ महीनों बाद दिखेगा, इसके संकेत भी अंदरूनी जानकारों ने सूंघ लिए हैं।

पूर्व का नाम क्यों नहीं लिया?

सत्ता की राजनीति भी अजग-गजब है, यहां पूर्व के कोई मायने नहीं, जो है सब वर्तमान ही है। पिछले दिनों सत्ता वाली पार्टी की एक बैठक में पूर्व और वर्तमान के बीच की सच्चाई का एहसास हुआ। बैठक में पूर्व संगठन मुखिया मौजूद थे, लेकिन पूर्व प्रदेश मुखिया मौजूद नहीं थीं।

मौजूदा संगठन मुखिया ने पूर्व प्रदेश मुखिया के बीमार होने का जिक्र करते हुए उनकी गैरमौजूदगी को जस्टिफाई किया। लेकिन सामने बैठे पूर्व मुखिया को याद तक नहीं किया, नाम तक नहीं लिया। इसे लेकर सयाने लोग तरह तरह के कयास लगा रहे हैं। अब इसे भूल तो कतई नहीं कहा जा सकता। तो क्या यह कोई मैसेज देने की सियासत है, इस पर चर्चा गर्म है।

रिटायरमेंट के बाद भी काम

खजाने वाले महकमे की किसी न किसी बहाने चर्चाएं होती रहती हैं। सरकार का पावर हाउस यही महकमा है तो इसकी हर छोटी बात भी कइयों की निगाहों में रहती है। पिछले दिनों महकमे से एक बड़े अफसर रिटायर हुए, लेकिन काम जारी रखा। रिटायर होने के बाद भी काम करते दिखे तो कइयों के कान खड़े हुए।

जिस सीट पर किसी की निगाह थी उस पर काम करने वाला रिटायरमेंट के बाद भी बरकरार रहे तो सवाल उठाने वालों की कमी थोड़े ही है। लेकिन महकमे के मुखिया ने कुछ सोच समझकर ही फैसला किया होगा। खजाने वाले महकमे में आसानी से योग्य अफसर मिलते नहीं होंगे?

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