
एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि एसआईआर में लागू किए जा रहे नियम विदेशी (नागरिक) अधिनियम के नियमों जैसे ही हैं, जहां नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी व्यक्ति की होती है. वोटर लिस्ट को लेकर चल रहे स्पेशल इन्टेंसिव रिवीजन (SIR) पर याचिकाकर्ता आरजेडी सांसद मनोज झा ने सवाल उठाया है. उन्होंने कहा है कि यह प्रक्रिया व्यवहारिक रूप से अनुचित है. उन्होंने कहा कि इसके लिए वोटर को अपना बर्थ सर्टिफिकेट या कोई ऐसा दस्तावेज देना होगा, जो साबित करता हो कि उसके माता-पिता में से कोई एक भारतीय हैं. उन्होंने कहा कि अगर किसी वोटर के पिता ने 2003 के चुनाव में वोट नहीं डाला और उससे पहले ही उनकी मृत्यु हो गई तो कैसे नागरिकता साबित होगी.
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत (CJI Surya Kant) और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच के सामने याचिकाकर्ता मनोज झा की तरफ से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल पेश हुए. उन्होंने अपना पक्ष रखते हुए बूथ स्तरीय अधिकारियों (BLO) की शक्तियों के दायरे पर भी सवाल उठाए. उन्होंने पूछा, ‘क्या बीएलओ यह तय कर सकता है कि कोई व्यक्ति मानसिक रूप से विक्षिप्त है या नहीं और क्या वह तय कर सकता है कि कोई वोटर भारतीय नागरिक है या नहीं?’ लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार कपिल सिब्बल ने कहा कि कोई वोटर भारतीय नागरिक है या नहीं, ये तय करना बीएलओ के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है, क्योंकि जो बीएलओ नियुक्त किए गए हैं, वो सिर्फ स्कूल टीचर्स हैं’. कपिल सिब्बल ने कहा, ‘नागरिकता निर्धारित करने के लिए एक स्कूल शिक्षक को बीएलओ के रूप में तैनात करना, मूल रूप से और प्रक्रियात्मक रूप से एक खतरनाक और अनुचित प्रस्ताव है.’ कपिल सिब्बल ने कहा कि लागू किए जा रहे नियम विदेशी (नागरिक) अधिनियम के नियमों जैसे ही हैं, जहां नागरिकता साबित करने का दायित्व व्यक्ति पर है कि वह विदेशी नहीं है. उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा, ‘गणनाकर्ता वोटर से पूछेगा, मुझे बताइए आपके पिता का जन्म कब हुआ? मुझे इसका सबूत दीजिए… मैं इसका प्रमाण कैसे दे पाऊंगा? उन्होंने कहा, ‘मैं यह दायित्व कैसे निभाऊंगा जब मेरे पिता ने 2003 की मतदाता सूची के तहत वोट नहीं दिया था या उनकी मृत्यु उससे पहले हो गई थी?’ मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने इस पर कहा, ‘लेकिन अगर आपके पिता का नाम सूची में नहीं है और आपने भी इस पर काम नहीं किया… तो शायद आप चूक गए…’ कोर्ट अब 2 दिसंबर को इस मामले पर सुनवाई करेगा.



