
लगभग हर दो में से एक पद खाली होने के कारण उत्तर प्रदेश में वायु और जल प्रदूषण की प्रभावी निगरानी करने की बोर्ड की क्षमता काफी सीमित हो गई है. उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) में स्वीकृत पदों में से लगभग आधे पद रिक्त हैं, जिससे राज्य के प्रदूषण निगरानी निकाय की कार्यप्रणाली को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं.
सूचना के अधिकार (आरटीआई) के जवाब में यूपीपीसीबी द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार एक अगस्त 2025 तक बोर्ड में स्वीकृत 732 पदों की तुलना में 355 पद रिक्त हैं यानी लगभग 49 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं.
स्वीकृत कर्मचारियों की संख्या ग्रुप ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’ और ‘डी’ सभी वर्गों में है. बोर्ड ने बताया कि ग्रुप ‘सी’ के 115 रिक्त पदों को भरने के लिए उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग को मांग पत्र भेजा गया है और यह प्रक्रिया अभी जारी है.
नोएडा स्थित पर्यावरण एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित गुप्ता ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 के तहत यूपीपीसीबी से यह प्रश्न पूछा था.
41 कर्मचारी सेवानिवृत्त हुए
भर्ती के संबंध में यूपीपीसीबी ने बताया कि जुलाई 2024 और जुलाई 2025 के बीच उसने 42 चयनित कनिष्ठ अभियंताओं को नियुक्ति आदेश जारी किए थे, हालांकि केवल 28 ने ही औपचारिक रूप से कार्यभार ग्रहण किया. इसी अवधि के दौरान, नोएडा क्षेत्रीय कार्यालय के कर्मचारियों सहित 41 कर्मचारी सेवानिवृत्त हुए.
आरटीआई के जवाब में यह भी उल्लेख किया गया है कि उच्चतम न्यायालय के निर्देश के अनुसार 30 सितंबर 2025 तक खाली पदों को भरने की प्रक्रिया की जानकारी साझा नहीं की जा सकती, क्योंकि मामला उच्चतम न्यायालय और राष्ट्रीय हरित अधिकरण के समक्ष विचाराधीन है.
गुप्ता ने बताया कि लगभग हर दो में से एक पद खाली होने के कारण उत्तर प्रदेश में वायु और जल प्रदूषण की प्रभावी निगरानी करने की बोर्ड की क्षमता काफी सीमित हो गई है. गुप्ता ने को बताया, ‘यूपीसीसीबी, खासकर नोएडा कार्यालय में कर्मचारियों की भारी कमी है जहां सबसे प्रदूषित शहरों में से एक को संभालने के लिए सिर्फ पांच-छह कर्मचारी हैं. उच्चतम न्यायालय और एनजीटी के स्पष्ट और समयबद्ध आदेशों के बावजूद, कर्मचारियों की भारी कमी बरकरार है. मुझे उम्मीद है कि इस मुद्दे को गंभीरता से लिया जाएगा.’