
भारत में मानसून सीजन शुरू होने के साथ ही सड़कों पर पानी भरने से लेकर इनके टूटने और वाहनों के चलने लायक न होने की शिकायतें आना आम है। सड़कों की गुणवत्ता सुधारने के लिए केंद्र ने अहम फैसला लिया है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) के तहत बनने वाली सभी सड़कों के सूचना बोर्ड पर क्यूआर कोड (QR Code) लगाए जाएंगे। इसे लेकर केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय (MoRD) ने राज्यों को निर्देश जारी किया है।
आखिर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना क्या है, जिसके तहत गुणवत्ता सुधारने के लिए केंद्र सरकार नई पहल करने जारी रही है? इन सड़कों के निर्माण-रखरखाव बोर्ड पर क्यूआर कोड लगाकर सरकार क्या सुविधा देने वाली है? इसके अलावा नई प्रणाली काम कैसे करेगी? इसके फायदे क्या-क्या होंगे? आइये जानते हैं…
पीएम ग्राम सड़क योजना को जब शुरू किया गया था, तब यह पूरी तरह केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित योजना थी, हालांकि वित्त वर्ष 2015-16 में इसमें बदलाव के तहत 60 फीसदी राशि केंद्र देता है, वहीं 40 प्रतिशत राशि राज्य सरकार मुहैया कराती है (पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों को छोड़कर)।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के चौथे फेज के तहत सरकार ने 62,500 किमी सड़क निर्माण के लिए 70 हजार 125 करोड़ रुपये आवंटित किए थे। इन सड़कों का निर्माण 2024-25 से 2028-29 के बीच होना है।
PMGSY की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, अब तक 8 लाख 36 हजार 850 किलोमीटर सड़क का निर्माण तय किया जा चुका है। इसमें से 7 लाख 81 हजार 209 किमी सड़क का निर्माण भी हो चुका है।
कैसे हो रही योजना में बनी सड़कों की गुणवत्ता सुधारने की तैयारी?
ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला और पीएम ग्राम सड़क योजना को लागू करने वाली राष्ट्रीय ग्रामीण इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास एजेंसी (NRIDA) ने हाल ही में राज्यों को कुछ निर्देश जारी किए हैं। इनमें से एक निर्देश PMGSY के तहत बनी सड़कों की जानकारी देने वाले बोर्ड पर क्यूआर कोड लगाने से भी जुड़ी है।
बताया गया है कि क्यूआर कोड को लगाने का मकसद पीएम ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत बनी सड़कों की गुणवत्ता को लेकर जनता की प्रतिक्रिया हासिल करना है। क्यूआर कोड्स को स्कैन करके लोग अपने-अपने गांव और क्षेत्र के पास बनी सड़कों में सुधार को लेकर भी जानकारी दे सकेंगे। गौर करने वाली बात यह है कि यह सभी प्रतिक्रियाएं सीधे मंत्रालय के पास दर्ज होंगी।
ठेकेदारों-अधिकारियों पर PMGSY के तहत बनी सड़कों की जिम्मेदारी?
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बनी सड़कें जब पूरी हो जाती हैं, इसके बाद भी इनके रखरखाव का काम इन्हें बनाने वाले ठेकेदारों को पांच साल के लिए सौंपा जाता है। इसके लिए ई-मार्ग नाम का पोर्टल भी बनाया गया है, जो कि सड़क के रखरखाव की निगरानी और प्रबंधन के लिए बनाया गया है। ठेकेदार इसी पोर्टल पर सड़कों के रखरखाव में आने वाले खर्चों के बिल लगाते हैं और सरकार से भुगतान हासिल करते हैं।
हालांकि, एक पेंच यह है कि सरकार की तरफ से ठेकेदार को भुगतान किसी सरकारी फील्ड इंजीनियर की रूटीन जांच के बाद ही होता है। इन फील्ड इंजीनियरों की जिम्मेदारी कुछ समय में सड़कों को परखने की होती है। साथ ही यह इंजीनियर कॉन्ट्रैक्टर द्वारा सड़क के सही रखरखाव की भी जानकारी रखते हैं। इससे जुड़ी तस्वीरें जियो टैग के साथ ली जाती हैं और इसके बाद 12 मानकों के आधार पर सड़क की पूरी समीक्षा सरकार को भेजी जाती है। बाद में राज्य सरकारें इंजीनियर की समीक्षा के आधार पर ही ठेकेदारों को भुगतान करती हैं।
केंद्र सरकार के तहत आने वाला NRIDA भी पीएम ग्रामीण सड़क योजना के तहत बनी सड़कों की निगरानी के लिए टीमें तैनात करता है। बीते कुछ समय में इन राष्ट्रीय स्तर की निगरानी टीमों ने PMGSY में सड़कों पर काम के खराब स्तर का मुद्दा उठाया था। हालांकि, आम लोगों की तरफ से अभी भी खराब सड़कों और इनके खराब रखरखाव के मुद्दे को सरकार तक सीधा पहुंचाने का कोई जरिया नहीं है। ऐसे में सरकार इस कदम के जरिए ठेकेदारों और अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने पर जोर दे रही है।
आम लोग सरकार को कैसे दे सकेंगे सड़कों की गुणवत्ता की जानकारी?
आम लोगों को सड़कों की गुणवत्ता और रखरखाव पर प्रतिक्रिया देने के लिए सरकार अब ई-मार्ग सिस्टम पर ही हर सड़क के लिए क्यूआर कोड जेनरेट कर रही है। क्यूआर कोड को सड़कों पर लगे निर्माण और रखरखाव की जानकारी देने वाले बोर्ड पर लगाने के निर्देश राज्यों को भेजे गए हैं। बोर्ड में यह स्थानीय भाषा और अंग्रेजी में यह जानकारी भी दी जा सकती है कि क्यूआर कोड स्कैन कर शिकायत करने का तरीका क्या है।
इन क्यूआर कोड के सड़कों के किनारे स्थित बोर्ड पर लगाए जाने के बाद कोई भी सड़क उपयोगकर्ता या आम व्यक्ति इसे मोबाइल से स्कैन कर सकेगा और सड़क के निर्माण और प्रबंधन तक की पूरी जानकारी हासिल कर लेगा। शिकायत के लिए यूजर को सड़क की दो तस्वीरें खींचकर अपलोड करनी होंगी और वह सड़क प्रबंधन को लेकर प्रतिक्रिया भी भेज सकता है।
यूजर्स की इन शिकायतों और तस्वीरों को जांच अधिकारियों को भेजा जाएगा, जो कि इनके आधार पर सड़कों के निर्माण और रखरखाव की जांच करेंगे और ठेकेदारों के प्रदर्शन को लेकर सरकार को सही जानकारी मुहैया कराएंगे। केंद्र सरकार इस कदम के जरिए सड़कों के निर्माण कार्यों को पूरी तरह पारदर्शी बनाने का लक्ष्य रख रही है।
क्या पहले कहीं हुआ है इस तरह का प्रयोग?
हिमाचल प्रदेश में इस तरह का ट्रायल जारी है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के संयुक्त निदेशक प्रदीप अग्रवाल की ओर से हिमाचल सरकार को इस योजना को शुरू करने से जुड़ा पत्र भी भेजा गया।
केंद्र सरकार ने हाल ही में हिमाचल की 1,103 बस्तियों के सड़कों के निर्माण के लिए ग्राउंड सर्वे रिपोर्ट को मंजूरी दी है। सरकार की ओर से 1,506 बस्तियों के सड़कों की रिपोर्ट केंद्र को भेजी गई थी। इसमें 400 सड़कों की रिपोर्ट रिजेक्ट हुई है, जबकि 103 बस्तियों की सड़कों पर अभी पेंच फंसा हुआ है। हालांकि, इन सड़कों की ग्राउंड सर्वे रिपोर्ट नए सिरे से तैयार की जा रही है। इसके बाद इन सड़कों के निर्माण के लिए डीपीआर तैयार होगी।