दुनिया में जितना सोना है उसका आधा अकेले BRICS के पास, क्या इससे ट्रंप की बढ़ेगी टेंशन?

BRICS Countries: सोने की खरीद के मामले में रूस और चीन सबसे आगे हैं. 2024 में चीन ने 380 टन सोने का उत्पादन किया, जबकि रूस में 340 टन सोने का उत्पादन हुआ. सितंबर 2025 में ब्राजील ने 16 टन सोना खरीदा. BRICS- कई देशों का एक समूह है, जिसमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं. हाल ही में मिस्र, इथियोपिया, संयुक्त अरब अमीरात, इंडोनेशिया, ईरान भी ब्रिक्स समूह में शामिल हुए. इसका गठन दुनिया में तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के एक समूह के रूप में किया गया था ताकि इनके बीच व्यापार व राजनीतिक सहयोग को बढ़ावा मिले. अब ये देश अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता को कम करना चाह रहे हैं और इसके लिए गोल्ड रिजर्व को तेजी से बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है.

आलम यह है कि आज के समय में BRICS देशों के पास दुनिया के कुल सोने के भंडार का लगभग 20 परसेंट हिस्सा है. वहीं, कुछ ऐसे देश जो ब्रिक्स के सदस्य देशों में से तो नहीं हैं, लेकिन ब्रिक्स के साथ उनके साथ मजबूत संबंध हैं. इनके मिलाकर इनके पास दुनिया के टोटल गोल्ड रिजर्व का 50 परसेंट हिस्सा है. 

सोने की खरीद बढ़ा रहे ब्रिक्स देश

सोने की खरीद के मामले में रूस और चीन सबसे आगे हैं. 2024 में चीन ने 380 टन सोने का उत्पादन किया, जबकि रूस में 340 टन सोने का उत्पादन हुआ. इसी क्रम में सितंबर 2025 में ब्राजील ने 16 टन सोना खरीदा, जो 2021 के बाद उसकी पहली सोने की खरीद थी.

इस पर बात करते हुए Ya वेल्थ के डायरेक्टर अनुज गुप्ता ने कहा, “BRICS सदस्य देश ज्यादा से ज्यादा सोना प्रोड्यूस कर रहे हैं और कम बेच रहे हैं. साथ ही, वे इंटरनेशनल मार्केट से भी सोना खरीद रहे हैं. मौजूदा डेटा के अनुसार, 2020 और 2024 के बीच BRICS देशों के सेंट्रल बैंकों ने दुनिया के 50 परसेंट से ज्यादा का सोना खरीदा, यह जानकारी शायद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सुनना पसंद न आए.

क्या है BRICS की दोहरी रणनीति? 

सेंट्रिसिटी वेल्थटेक के इक्विटी हेड और फाउंडिंग पार्टनर सचिन जासूजा ने सोने पर BRICS की इस दोहरी रणनीति को समझाते हुए कहा, “BRICS देशों द्वारा सोने के भंडार और सोने की खरीद पर बढ़ता कंट्रोल US डॉलर के दबदबे वाले ग्लोबल फाइनेंशियल सिस्टम में तनाव का एक अहम संकेत बनकर उभर रहा है. हालांकि, US डॉलर दुनिया की मुख्य रिजर्व करेंसी बनी हुई है, लेकिन हाल के घटनाक्रम बताते हैं कि इसकी बेजोड़ बादशाहत को अचानक चुनौती देने के बजाय धीरे-धीरे चुनौती दी जा रही है.” आज BRICS देशों की अर्थव्यवस्थाएं ग्लोबल ट्रेड का लगभग 30 परसेंट हिस्सा है. ऐसे में इनके भी मौद्रिक फैसले दुनिया पर असर डालते हैं. इन देशों का लंबे समय से एक ही मकसद रहा है- अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता को कम करना. दरअसल, ब्रिक्स देश डॉलर के दबदबे को खत्म करना चाहते हैं और अपने प्रभाव क्षेत्र में नई करेंसी को ताकतवर बनाना चाहते हैं. हालांकि, ट्रंप ब्रिक्स देशों को डॉलर का विकल्प तलाशने को लेकर कड़ी चेतावनी दे चुके हैं.. 


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