
हरियाणा विधानसभा में शुक्रवार सुबह राष्ट्रगीत वंदे मातरम् के 150वें स्मरणोत्सव के अवसर पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर हरियाणा विधान सभा के सचिव राजीव प्रसाद और विधान सभा अध्यक्ष के सलाहकार राम नारायण यादव ने कार्यक्रम को संबोधित किया।
विधान सभा सचिव राजीव प्रसाद ने अपने संबोधन में कहा कि वंदे मातरम् गीत की रचना को आज 150 वर्ष पूरे हो गए हैं। यह गीत स्वतंत्रता सेनानियों की आवाज रहा और आज भी मातृभूमि के प्रति प्रेम और समर्पण का प्रतीक बना हुआ है। वंदे मातरम् का पहली बार 7 नवंबर 1875 को बंगदर्शन पत्रिका में प्रकाशन हुआ था, जबकि 1882 में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने इसे अपने प्रसिद्ध उपन्यास आनंदमठ में प्रकाशित किया। बाद में रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे संगीतबद्ध कर इसे जन-जन तक पहुंचाया।
विस सचिव राजीव प्रसाद ने कहा कि उन्होंने कलम के माध्यम से भारतीयों के हृदय में स्वदेश प्रेम की भावना जगाई। उनका साहित्य और जीवन आज भी भारतीय राष्ट्रवाद की प्रेरणा बना।
इस अवसर पर हरियाणा विधान सभा अध्यक्ष के सलाहकार राम नारायण ने माननीय अध्यक्ष हरविन्द्र कल्याण का संदेश पढ़ते हुए कहा कि वंदे मातरम् केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत माता के प्रति समर्पण, श्रद्धा और स्वाभिमान का प्रतीक है, जिसने राष्ट्रीय एकता और देशभक्ति को पंख दिए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इस गीत के शब्द ‘सुजलाम् सुफलाम् मलयज शीतलाम्’ भारत की समृद्ध सभ्यता और संस्कृति का भाव प्रकट करते हैं। वंदे मातरम् ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान करोड़ों भारतीयों को एक सूत्र में जोड़ा और राष्ट्रीय चेतना को सशक्त बनाया।
राम नारायण ने अपने संबोधन में कहा कि हरियाणा की धरती ने भी इस गीत की भावना को कर्म में उतारा है। यहां के वीरों, किसानों और युवाओं ने देश की एकता और विकास की मिसाल पेश की है। विधान सभा की गैलरी में सजे स्वतंत्रता सेनानियों के चित्र इस देशभक्ति की भावना के साक्षी हैं।
उन्होंने कहा कि आज जब देश विकसित भारत 2047 के लक्ष्य की ओर अग्रसर है, तब वंदे मातरम् का उद्घोष हमें अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहने की प्रेरणा देता है। यह गीत याद दिलाता है कि मातृभूमि की सेवा ही सर्वोच्च धर्म है। कार्यक्रम के अंत में सभी अधिकारियों और कर्मचारियों ने अपने स्थान पर खड़े होकर राष्ट्रगीत वंदे मातरम् का सामूहिक गायन किया।



