राजस्थान में धर्मांतरण से जुड़ा बिल बनेगा कानून? समझें क्यों उठ रहे हैं सवाल

राजस्थान विधानसभा में धर्मांतरण से जुड़ा बिल एक बार फिर से पारित हो गया है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह बिल इस बार कानून में तब्दील हो सकेगा या पहले दो बार की तरह फिर से ठंडे बस्ते में चला जाएगा. राजस्थान विधानसभा से लेकर सियासी गलियारों तक विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध विधेयक 2025 यानी एंटी कन्वर्जन बिल को लेकर लगातार कोहराम मचा हुआ है. सत्ता पक्ष इसे अपनी बड़ी उपलब्धि बताकर ढिंढोरा पीटने में लगा हुआ है, तो वही कांग्रेस और भारत आदिवासी पार्टी समेत विपक्षी दल इसे गैर जरूरी बताते हुए सरकार की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं और साथ ही बीजेपी पर नफरत की सियासी रोटियां सेंकने का गंभीर आरोप भी लगा रहे हैं.

सियासी वार पलटवार के बीच एक बड़ा सवाल यह है कि क्या 9 सितंबर को ध्वनिमत से पारित हुआ मौजूदा बिल इस बार कानून बन सकेगा या 2005 और 2008 के इतिहास को फिर से दोहराया जाएगा. पहले दो बार विधानसभा ने जब धर्मांतरण बिल को पास किया था तो दोनों ही बार राजस्थान में बीजेपी की ही सरकार थी. इस बार भी सरकार बीजेपी की ही है, लेकिन इस बार केंद्र में भी बीजेपी का ही राज है, जबकि पिछले दोनों बार मनमोहन सिंह की अगुवाई में यूपीए की सरकार काम कर रही थी.

वसुंधरा राजे की सरकार में पहली बार आया बिल

राजस्थान विधानसभा में धर्मांतरण बिल सबसे पहले साल 2005 में तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार ने पारित किया था. विधानसभा से बिल पारित होने के बाद इसे मंजूरी के लिए  राज्य की तत्कालीन गवर्नर प्रतिभा पाटिल के पास भेजा गया. विपक्ष और तमाम संगठनों ने आपत्ति जताते हुए गवर्नर से इसे मंजूरी नहीं दिए जाने की अपील की थी. गवर्नर प्रतिभा पाटिल ने इस बिल को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ० एपीजे अब्दुल कलाम को भेज दिया था.

काफी दिनों तक बिल राष्ट्रपति भवन में पेंडिंग रहा तो सरकार ने इसे वापस ले लिया. वसुंधरा राजे सरकार ने साल 2008 में विधानसभा चुनाव से पहले धर्मांतरण बिल फिर से विधानसभा से पारित कराया, लेकिन दूसरी बार भी यह कानून नहीं बन सका. साल 2008 में पारित बिल को तत्कालीन गवर्नर शैलेंद्र कुमार सिंह ने खुद मंजूरी नहीं दी और इसे उस वक्त की राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को भेज दिया. राष्ट्रपति भवन में यह बिल 10 साल तक अटका रहा. साल 2018 में राष्ट्रपति भवन ने इस बिल को कुछ आपत्तियो के साथ वापस भेज दिया.

भजनलाल शर्मा सरकार में फिर शुरू हुई कवायद

दिसंबर 2023 में राजस्थान में भजनलाल शर्मा की अगुवाई में बीजेपी की सरकार बनने के बाद धर्मांतरण विरोधी कानून को लेकर फिर से कवायद शुरू हुई. इसी साल फरवरी महीने में विधानसभा के बजट सत्र में बिल पेश भी किया गया, लेकिन उस पर चर्चा नहीं हो सकी थी. राजस्थान कैबिनेट ने इसी साल 31 अगस्त को प्रस्तावित विधेयक में बड़े बदलाव करते हुए इसे मंजूरी दी और संशोधित बिल मानसून सत्र में पेश किया गया. 9 सितंबर को विपक्ष के हंगामे के बीच सरकार ने इसे ध्वनि मत से पारित करा लिया. विधानसभा से पारित होने के बाद इस गवर्नर के यहां मंजूरी के लिए भेजा जा रहा है. अब देखना यह होगा कि क्या मौजूदा गवर्नर हरिभाऊ बागडे इस बिल को मंजूरी देकर इसे कानून बनने की सहमति देते हैं या फिर पिछले दो बार की तरह इस बार भी इस पर आपत्तियां लगती हैं. वैसे विपक्षी पार्टियों के साथ ही तमाम सामाजिक और मानवाधिकार संगठन विधानसभा से पारित हुए बिल को लेकर सवाल उठा रहे हैं.

पीयूसीएल ने किया विरोध

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज यानी पीयूसीएल ने इसे पूरी तरह असंवैधानिक और मानवाधिकारों के खिलाफ बताया है. संस्था की अध्यक्ष और सोशल एक्टिविस्ट कविता श्रीवास्तव का कहना है कि इसमें दिए गए प्रावधान मानवाधिकारों का हनन है. संविधान के खिलाफ हैं और मूल अधिकारों को रोकने वाले हैं. कविता श्रीवास्तव ने साफ तौर पर कहा है कि पिछले दो बार भी उनके संगठन ने कड़ा एतराज जताया था, इस वजह से ही बिल को मंजूरी नहीं मिल सकी थी. इस बार भी गवर्नर और राष्ट्रपति को पत्र भेजा जा रहा है. इसके बावजूद अगर इसे मंजूरी मिलती है तो उसे अदालत में चुनौती भी दी जाएगी.

क्या कहते हैं संविधान विशेषज्ञ?

इस बारे में संविधान विशेषज्ञ और राजस्थान हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट आर. एन. माथुर का कहना है कि किसी भी बिल को गवर्नर या राष्ट्रपति की मंजूरी जरूरी होती है. उनकी मंजूरी के बाद ही यह कानून बनता है और गजट नोटिफिकेशन होता है. उनके मुताबिक गवर्नर एक बार तो बिल को विधानसभा को वापस भेज सकता है, लेकिन अगर सदन दूसरी बार भी उसे पास कर देता है तो मंजूरी देनी ही होती है. हालांकि मंजूरी देने या वापस करने के अलावा गवर्नर बिल को राष्ट्रपति को भी भेज सकते हैं. राष्ट्रपति के सामने दूसरी बार मंजूरी देने की बाध्यता नहीं होती है. 

विशेषज्ञ आर. एन. माथुर के मुताबिक कानून बन जाने के बाद भी उसे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. जानकारी के मुताबिक अब तक देश की जिन 11 विधानसभाओं ने धर्मांतरण पर अलग कानून बनाया है, वह सभी मामले सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है.

क्या बोले गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेडम?

दूसरी तरफ राजस्थान सरकार के गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेडम का कहना है कि पहले दो बार जिन आपत्तियों की वजह से बिल को मंजूरी नहीं मिली थी, इस बार उन्हें दूर कर दिया गया है. इस बार के बिल में कड़े प्रावधान किए गए हैं. गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेडम ने भरोसा जताया है कि इस पर के बिल को मंजूरी जरूर मिलेगी और वह कानून भी बनेगा. इस बार कोई तकनीकी दिक्कत नहीं आएगी.

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