मेडिकल कॉलेज बन रहे ग्रीन एनर्जी लैब, सौर ऊर्जा के लिए उठाए जा रहे ठोस कदम

भारत के मेडिकल कॉलेज अब सिर्फ डॉक्टर तैयार करने वाले संस्थान ही नहीं बल्कि हरित ऊर्जा के जरिए एक नई दिशा दिखाने वाले मॉडल भी बनते जा रहे हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जारी रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि भारत में सरकारी और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की कुल संख्या 710 है जो सालाना बिजली के लिए 1.5 से दो करोड़ रुपये खर्च कर रहे हैं, जबकि यह कॉलेज अपनी 30% बिजली की जरूरत सौर ऊर्जा से पूरी कर सकते हैं।

इससे मेडिकल कॉलेजों और उनके अस्पतालों को सालाना करीब 500 करोड़ रुपये तक की बचत हो सकती है।

केंद्रीय स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. सुनीता शर्मा का कहना है कि देशभर में कई सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों ने पिछले कुछ वर्षों में सौर ऊर्जा, ऊर्जा दक्ष उपकरणों और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन जैसे कदम उठाए हैं। इसका उद्देश्य न केवल कार्बन उत्सर्जन घटाना है, बल्कि लंबे समय में बिजली खर्च को कम करना और कैंपस को टिकाऊ बनाना भी है। अभी तक केंद्रीय अध्ययनों में यह स्पष्ट है कि अस्पतालों के बिजली खर्च का 50 से 60% हिस्सा एयर कंडीशनिंग और उनकी लाइटिंग पर खर्च होता है जिसके लिए सौर ऊर्जा संयंत्र बेहतर विकल्प हो सकता है।

एनएमसी ने कहा- सभी कॉलेजों को मिल रही सब्सिडी
नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों खासतौर पर सौर ऊर्जा को अपनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार सब्सिडी दे रही हैं। यह जानकारी देते हुए नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के सचिव डॉ. राघव लैंगर ने बताया कि भारत सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक 500 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित की जाए।

इसके लिए शैक्षणिक संस्थानों में रूफटॉप सोलर लगाने के लिए नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की ओर से 20 से 40% तक सब्सिडी दी जा रही है। दिल्ली स्थित एनएमसी मुख्यालय भी सौर ऊर्जा से संचालित है। लांसेट काउंटडाउन (2022) के अनुसार, ग्लोबल हेल्थ सेक्टर दुनिया के कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का चार से पांच फीसदी जिम्मेदार है।

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