
आईसीसी ने अपनी जांच पूरी करने के बाद साफ कहा है कि प्रोफेसर को सेवा में बने रहने देना छात्रों और संस्थान, दोनों के लिए खतरनाक होगा.
दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) के एक कॉलेज के प्रोफेसर पर नाबालिग छात्रा से यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार के गंभीर आरोप लगे हैं. विश्वविद्यालय की आंतरिक शिकायत समिति (ICC) ने लंबी जांच के बाद अब प्रोफेसर को सेवा से हटाने की सिफारिश की है. अंतिम फैसला उपकुलपति की मंजूरी पर टिका है.
पीड़ित छात्रा ने पिछले वर्ष दिसंबर में आईसीसी को लिखित शिकायत दी थी. आरोप सामने आते ही समिति ने प्रोफेसर को तत्काल प्रभाव से कॉलेज से दूर रहने और छात्रों से संपर्क न करने का आदेश दिया था .समिति का कहना था कि इस कदम से जांच निष्पक्ष और निर्भीक तरीके से आगे बढ़ सकेगी.
जनवरी में विरोध और इस्तीफा
जनवरी 2025 में मामला और गरमाया, जब छात्र संगठनों ने पूरे दिन कैंपस में विरोध प्रदर्शन किया. AISA, SFI और ABVP जैसे संगठनों ने आरोप लगाया कि प्रशासन लंबे समय से इस प्रोफेसर के खिलाफ आई शिकायतों को दबाता रहा है. दबाव बढ़ने के बाद प्रोफेसर को अपने अतिरिक्त प्रशासनिक पदों से इस्तीफा देना पड़ा. उसी महीने कॉलेज प्रशासन ने पुष्टि की कि उसे छह सप्ताह के लिए निलंबित किया गया है.
पुराने आरोप फिर से सुर्खियों में
यह भी सामने आया कि आरोपित प्रोफेसर पर इससे पहले भी तीन शिकायतें दर्ज हो चुकी थीं. 2016, 2020 और 2023 में छात्राओं ने उसके अनुचित व्यवहार पर आपत्ति जताई थी, लेकिन हर बार मामले बिना ठोस कार्रवाई के रफा-दफा कर दिए गए. छात्र संगठनों का कहना है कि यह संस्थागत लापरवाही है.
इस बार नाबालिग छात्रा से जुड़ा मामला सामने आते ही पुलिस भी सक्रिय हो गई. प्रोफेसर पर POCSO और भारतीय न्याय संहिता की धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई है. हालांकि अब तक गिरफ्तारी नहीं हुई है, लेकिन पुलिस सूत्र बताते हैं कि जल्द ही पूछताछ की जाएगी और कॉलेज प्रशासन से सभी जरूरी दस्तावेज़ लिए जा रहे हैं.
आईसीसी की सिफारिश और आगे का रास्ता
आईसीसी ने अपनी जांच पूरी करने के बाद साफ कहा है कि प्रोफेसर को सेवा में बने रहने देना छात्रों और संस्थान – दोनों के लिए खतरनाक होगा. समिति ने विश्वविद्यालय प्रशासन से सख्त कदम उठाने की मांग की है. अब मामला उपकुलपति के पास है, जो दस्तावेज़ों का अध्ययन करने के बाद अंतिम आदेश देंगे.
छात्र संगठनों की मांग
छात्र संगठनों का कहना है कि यह मामला सिर्फ एक छात्रा की शिकायत का नहीं, बल्कि विश्वविद्यालय की विश्वसनीयता का भी है. उनका आरोप है कि पहले की तरह अगर इस बार भी मामला दबा दिया गया तो यह छात्रों के भविष्य और सुरक्षा दोनों के साथ खिलवाड़ होगा.
इस मामले में उपकुलपति बर्खास्तगी को मंजूरी देते हैं तो यह विश्वविद्यालय में एक अहम मिसाल होगी. इससे न सिर्फ पीड़ित छात्रा को न्याय मिलेगा, बल्कि यह संदेश भी जाएगा कि बार-बार शिकायतों को दबाने की प्रवृत्ति को अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.