
भारत में हर साल लाखों टन पुराने कपड़े कचरे में तब्दील होकर लैंडफिल में दफन हो जाते हैं, जहां उन्हें गलने-सड़ने में वर्षों लग जाते हैं और वे जलवायु परिवर्तन में अपना मौन योगदान देते रहते हैं। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) दिल्ली के वैज्ञानिकों ने अब डेनिम कचरे को नए जैसे आरामदायक और स्टाइलिश कपड़ों में बदलने की ऐसी तकनीक विकसित की है, जो न केवल फैशन उद्योग में नया ट्रेंड ला सकती है बल्कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और कपास की खेती पर दबाव को भी उल्लेखनीय रूप से घटा सकती है।
भारत में हर साल करीब 39 लाख टन पुराने कपड़े कचरे के रूप में फेंके जाते हैं, लेकिन इनमें से केवल 4 फीसदी ही रीसायकल हो पाते हैं। बाकी कपड़े लैंडफिल में चले जाते हैं, जहां उन्हें नष्ट होने में लंबा समय लगता है और इस दौरान वे पर्यावरण पर गंभीर असर डालते हैं। पुराने कपड़ों को रीसायकल करना आसान नहीं होता, क्योंकि उनके रंग और फाइबर की बनावट अलग-अलग होती है। इसके अलावा पारंपरिक मेकेनिकल रीसाइक्लिंग के दौरान फाइबर की मजबूती और लंबाई घट जाती है, जिससे नए कपड़ों की गुणवत्ता कम हो जाती है।
इसी चुनौती का समाधान खोजते हुए आईआईटी दिल्ली के टेक्सटाइल और फाइबर इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर अभिजीत मजूमदार और प्रोफेसर बी. एस. बुटोला के नेतृत्व में एक शोध दल ने ऐसी उन्नत तकनीक तैयार की है, जिसमें पुराने डेनिम कचरे को बिना गुणवत्ता खोए नए पहनने योग्य कपड़ों में बदला जा सकता है। इस प्रक्रिया में तैयार धागों (यार्न) को सीमलेस होल गारमेंट तकनीक से बुना जाता है और कपड़े में 25 से 75 फीसदी तक रीसायकल धागों का उपयोग संभव है। शोध में पाया गया कि 50 फीसदी तक रीसायकल धागों के उपयोग के बावजूद कपड़े के स्पर्श, गुणवत्ता और आराम में कोई कमी नहीं आती।
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में भी कमी
इस शोध के निष्कर्ष जर्नल ऑफ क्लीनर प्रोडक्शन में प्रकाशित हुए हैं। पानीपत के टेक्सटाइल रीसाइक्लिंग क्लस्टर से जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर अध्ययन में पाया गया कि इस तकनीक से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, अम्लीय वर्षा और जीवाश्म ईंधन की खपत जैसे पर्यावरणीय प्रभावों में 30 से 40 फीसदी तक कमी लाई जा सकती है। वहीं ओजोन परत के नुकसान को करीब 60 फीसदी तक घटाया जा सकता है। इसके कारण रीसायकल फाइबर के उपयोग से कपास की खेती पर निर्भरता घटती है जिससे कीटनाशक, उर्वरक और पानी की खपत में कमी आती है।
गेमचेंजर हो सकती है तकनीक
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह तकनीक फैशन उद्योग के लिए एक गेम चेंजर साबित हो सकती है।एक ओर यह पर्यावरण संरक्षण को गति देगी तो दूसरी ओर उपभोक्ताओं को ऐसे कपड़े मुहैया कराएगी जो स्टाइल और आराम दोनों में समझौता न करें। भारत जैसे देश, जहां कपड़ों का विशाल बाजार और बढ़ती आबादी है इस नवाचार से न केवल कचरे का बोझ कम कर सकते हैं,टिकाऊ फैशन को भी मुख्यधारा में ला सकते हैं।