
बच्चे के जन्म के कुछ महीने बाद ही उन्हें शहद चटाना बड़ा ही आम है। आज भी कई लोग इसे बच्चे के लिए फायदेमंद मानकर ऐसा करते हैं। हालांकि, असल में ऐसा करना उनकी सेहत के लिए बेहद नुकसानदायक हो सकता है। एक्सपर्ट भी इसे एक अनहेल्दी प्रैक्टिस मानते हैं। बड़ों के लिए तो शहद को नेचुरल स्वीटनर माना जाता है और सीमित मात्रा में लेने पर ही उन्हें इसका फायदा भी मिलता है।
वहीं, 12 महीने से कम उम्र के बच्चों को शहद गंभीर रूप से बीमार कर सकता है। शहद में क्लॉस्ट्रिडियम बोटुलिनम नामक बैक्टीरिया के बीजाणु हो सकते हैं, जो बच्चों में इन्फेंट बोटुलिज्म का कारण बन सकता है। यह फूड पॉइजजिंग का एक गंभीर रूप है, जो बच्चों के नर्व फंक्शन को प्रभावित कर सकता है। आइए जानते हैं एक्सपर्ट इस बारे में क्या कहते हैं:-
शिशुओं में बोटुलिज्म के ये होते हैं लक्षण
कब्ज
चूसने में परेशानी
ड्रूपी आइलिड
रोने में दिक्कत आना
मसल्स का कमजोर हो जाना
सांस लेने में दिक्कत
बच्चों को शहद की जरूरत नहीं
अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के मुताबिक 2 साल से कम उम्र के बच्चों के दूध या मील में ऊपर से शुगर या किसी प्रकार का मीठा डालने की जरूरत नहीं। बच्चों को शहद की जरूरत नहीं होती। सामान्यतौर पर बच्चों को शुगर और किसी भी प्रकार का स्वीटनर देने से बचना चाहिए।
इससे उनका वजन बेवजह बढ़ता है और दांतों में सड़न पैदा होती है। वैसे भी बच्चों को फलों से नेचुरल रूप में मीठा मिल जाता है और मीठा देने का यह एक हेल्दी तरीका है, लेकिन छह महीने से पहले उन्हें मां के दूध के अलावा कुछ और नहीं देना चाहिए।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
NCR के पीडियाट्रिशियन डॉ. अजय विनोद, कहते हैं कि छह महीने से पहले बच्चे को ऊपर से कुछ भी नहीं देना चाहिए। खासकर 12 महीने से कम उम्र के बच्चों को शहद देना खतरनाक हो सकता है, क्योंकि ये काफी कन्सन्ट्रेडेट होता है और बच्चे इसे पचा नहीं सकते। उनका पाचन तंत्र कमजोर होता है। बच्चों को छह महीने की उम्र तक सिर्फ मां का दूध ही देना है और उसके बाद धीरे-धीरे सॉलिड फूड देने की शुरुआत करनी है।