अजमेर शरीफ दरगाह विवाद में राजस्थान HC से नहीं मिली मुस्लिम पक्ष को राहत, जानें- पूरा मामला

राजस्थान हाईकोर्ट ने अजमेर दरगाह विवाद में अंजुमन को फिलहाल राहत नहीं दी है. अदालत ने सुनवाई पर रोक नहीं लगाई, लेकिन याचिका खारिज भी नहीं की है.

राजस्थान के अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर विवाद बढ़ता जा रहा है. अजमेर की इस ऐतिहासिक दरगाह को लेकर उठे विवाद में फिलहाल मुस्लिम पक्ष को राहत नहीं मिल सकी है. राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने दरगाह की अंजुमन द्वारा दाखिल की गई याचिका पर कोई त्वरित फैसला नहीं सुनाया है और न ही जिला अदालत की सुनवाई पर कोई रोक लगाई है. हालांकि, याचिका खारिज भी नहीं की गई है, जिससे उम्मीद की एक डोर अब भी बंधी हुई है.

यह याचिका दरगाह की देख-रेख करने वाली संस्था अंजुमन की ओर से दायर की गई थी. अंजुमन के अधिवक्ता आशीष कुमार सिंह ने हाईकोर्ट में दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट ने अश्विनी उपाध्याय केस में स्पष्ट रूप से आदेश दिया है कि देशभर की अदालतों में धार्मिक स्थलों से जुड़े नए मुकदमे स्वीकार न किए जाएं, सर्वे न कराए जाएं और कोई निर्णायक आदेश पारित न हो. इसके बावजूद अजमेर की सिविल कोर्ट लगातार दरगाह विवाद से जुड़ी सुनवाई कर रही है, जो सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन है.

राजस्थान HC ने याचिका नहीं की खारिज
हाईकोर्ट में यह भी जानकारी दी गई कि अजमेर की सिविल कोर्ट में कल यानी शनिवार (19 अप्रैल) को इस मामले की फिर सुनवाई होनी है. ऐसे में हाईकोर्ट ने तत्काल हस्तक्षेप से इनकार कर दिया और अब अगली सुनवाई अगले सप्ताह तय की है.

अंजुमन को पक्षकार मानने से किया इनकार
अंजुमन की याचिका में केंद्र सरकार समेत 8 पक्षों को शामिल किया गया है. दिलचस्प बात यह रही कि सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने इस याचिका का विरोध करते हुए इसे खारिज करने की मांग की. उनका तर्क था कि अजमेर की जिला अदालत में चल रहे मुकदमे में अंजुमन अब तक पक्षकार नहीं है, ऐसे में वह हाईकोर्ट में हस्तक्षेप की मांग नहीं कर सकती.

हालांकि, अंजुमन की तरफ से यह स्पष्ट किया गया कि उन्होंने खुद को पक्षकार बनाने की मांग को लेकर सिविल कोर्ट में याचिका दायर की हुई है और शनिवार को होने वाली सुनवाई में अधिवक्ता आशीष कुमार सिंह व्यक्तिगत रूप से अपनी दलीलें पेश करेंगे.

दरगाह से जुड़ा यह विवाद न केवल कानूनी मसला है, बल्कि एक भावनात्मक और सांस्कृतिक प्रश्न भी बन चुका है. अब सभी की निगाहें राजस्थान HC की अगली सुनवाई पर टिकी हैं, जो शायद इस उलझे हुए विवाद में कुछ दिशा तय कर सके.

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