देवेंद्र सिंह बबली ने जजपा विधायक रहते हुए भी मई में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी कुमारी सैलजा को समर्थन दिया था। उन्होंने अपने संगठन जागो दिशा सही-सोच नई के बैनर तले बाकायदा कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाकर सैलजा के समर्थन देने की घोषणा की थी।
कांग्रेस में एक बार फिर से देवेंद्र सिंह अपने ऊपर मजबूत हाथ नहीं होने से टिकट पाने से पिछड़ गए। अशोक तंवर की तरह कुमारी सैलजा ने भी भंवर में छोड़ दिया तो पूर्व पंचायत मंत्री देवेंद्र बबली ने भाजपा का दामन थाम लिया।
बता दें कि साल 2019 के चुनाव में भी देवेंद्र सिंह बबली कांग्रेस की टिकट के प्रबल दावेदार थे। उस समय वह तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर के सबसे नजदीकियों में से एक थे। अशोक तंवर की मजबूत पैरवी के बावजूद उन्हें टोहाना से टिकट नहीं मिल पाई। उनके बजाय पूर्व कृषि मंत्री परमवीर सिंह टिकट लाने में सफल रहे। इस पर उन्होंने तुरंत जननायक जनता पार्टी का दामन थामकर चुनाव लड़ा और फिर बड़े मार्जिन से जीत हासिल की। भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार में वे जजपा कोटे से पंचायत मंत्री भी र
लोकसभा चुनाव में कुमारी सैलजा को दिलाए थे वोट-
देवेंद्र सिंह बबली ने जजपा विधायक रहते हुए भी मई में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी कुमारी सैलजा को समर्थन दिया था। उन्होंने अपने संगठन जागो दिशा सही-सोच नई के बैनर तले बाकायदा कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाकर सैलजा के समर्थन देने की घोषणा की थी। इसके बाद सैलजा की बूथ मैनेजमेंट तक बबली के समर्थकों ने संभाली।
जिससे कुमारी सैलजा ने टोहाना से 48,411 वोटों की लीड लेकर जीत हासिल की। चुनाव जीतने के बाद कुमारी सैलजा ने देवेंद्र बबली के कार्यालय में आकर आगे की राजनीति में साथ देने का वादा किया था। मगर ऐन मौके पर कुमारी सैलजा के समर्थन के बावजूद बबली की कांग्रेस में टिकट पक्की नहीं हो सकी।
BJP में चुनौतियां कम नहीं हैं…
पूर्व पंचायत मंत्री देवेंद्र सिंह बबली ने बेशक सोमवार को दिल्ली में भाजपा की सदस्यता हासिल कर ली है, मगर उनकी चुनौतियां यहां भी कम नहीं है। हालांकि, यहां से भाजपा के कद्दावर नेता और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सुभाष बराला के राज्यसभा में जाने के बाद भाजपा के पास टोहाना से विधानसभा चुनाव के लिए टिकट का कोई मजबूत दावेदार नहीं था।
ऐसे में पार्टी बबली को टिकट थमाकर मैदान में उतार सकती है। इससे भाजपा को टोहाना में मजबूत जाट चेहरा मिल गया है। टोहाना में भाजपा में सामंजस्य बैठाने में बबली के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती रिश्ते में उनके दादा सुभाष बराला व उनकी टीम ही रहेगी। सुभाष बराला के साथ देवेंद्र बबली की जबरदस्त खींचतान रही है। इस खींचतान को कम करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने भी जोर लगाया मगर यह कम नहीं हो सकी।
देवेंद्र बबली का सफर-
देवेंद्र सिंह बबली वर्ष 2007 से टोहाना में समाजसेवा के क्षेत्र में सक्रिय हुए। उस समय उन्होंने युवाओं को क्रिकेट किट बांटने, बुजुर्गों को सम्मानित करने, उनके लिए आंखों के निशुल्क जांच व ऑपरेशन शिविर लगवाने जैसे काम शुरू किए। नियमित रूप से गांवों में सामाजिक कार्यों में पहुंच कर लोगों की आर्थिक मदद भी करने लगे।
इसके बाद बबली ने सियासत में कदम बढ़ाते हुए पहली बार वर्ष 2014 में कांग्रेस सरकार में कृषि मंत्री रहे सरदार परमवीर सिंह और भाजपा नेता सुभाष बराला के सामने निर्दलीय चुनाव लड़ा। इस चुनाव में बबली को 38,282 वोट मिले और वह तीसरे नंबर पर रहे। इसके बाद कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर के संपर्क में आकर कांग्रेस में शामिल हो गए। 2019 में कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो वह जजपा में चले गए।
2019 में देवेंद्र बबली ने 1,00,752 वोट हासिल किए। उन्होंने भाजपा के तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष सुभाष बराला को 52 हजार से अधिक वोट से हराया। पूर्व मंत्री परमवीर सिंह की जमानत जब्त हो गई। बाद में बबली को जेजेपी कोटे से 28 दिसंबर 2021 को भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार में पंचायत मंत्री बनाया गया। वह दो साल दो महीने 15 दिन तक पंचायत मंत्री रहे।
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