कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बढ़ते कद को लेकर हुड्डा खेमे से जुड़े राजनेताओं के हौसले भी बुलंद है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, प्रदेश में भाजपा शासन की सत्ता विरोधी लहर को लेकर इस बार कांग्रेस की टिकट मांगने वालों की कतार भी लंबी हो चुकी है।
वर्ष 2024 के विधानसभा चुनाव की घोषणा होने के बाद से पूंडरी हलके की राजनीति हलचल अपने चरम पर है। पूंडरी में निर्दलीय के जीत दर्ज करने का इतिहास रहा है। 1996 के बाद लगातार छह चुनाव में लगातार निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव में जीत दर्ज की है। वर्ष 2019 तक हुए 13 बार के चुनावों में सात बार निर्दलीय ने बाजी मारी है।
वर्ष 1996 से पहले वर्ष 1968 में चौ. ईश्वर सिंह भी निर्दलीय चुनाव लड़कर जीते थे। इसके अलावा छह बार पार्टियों के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है। इसमें चार बार कांग्रेस, एक बार जनता दल और एक बार लोकदल ने चुनाव में जीत दर्ज की है। ऐसे में अब विधानसभा चुनावों को लेकर पूंडरी की राजनीति गर्मा गई है। वर्ष 1968 में स्व. चौधरी ईश्वर सिंह ने पूंडरी हलके में निर्दलीय की नींव रखी। इसके बाद 1996 में नरेंद्र शर्मा ने चौधरी ईश्वर सिंह को हराहर निर्दलीय की ऐसी परंपरा शुरू की जो आज तक जारी रही।
इसके चलते कई निर्दलीय इस बार फिर से निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए मैदान में है और कांग्रेस और भाजपा से भी कुछ उम्मीदवार भी टिकट कटने के बाद निर्दलीय चुनाव लड़ सकते है, लेकिन इस बार लोकसभा चुनावों में भाजपा को पूंडरी हलके में मिली जीत को लेकर इस बार पूंडरी हलके में भाजपा का टिकट मांगने वालों की कतार लंबी हो चुकी है।
वहीं, कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बढ़ते कद को लेकर हुड्डा खेमे से जुड़े राजनेताओं के हौसले भी बुलंद है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, प्रदेश में भाजपा शासन की सत्ता विरोधी लहर को लेकर इस बार कांग्रेस की टिकट मांगने वालों की कतार भी लंबी हो चुकी है। आम आदमी पार्टी ने भी प्रदेश की सभी 90 सीटों पर टिकट लड़ने की घोषणा के बाद यहां आप के कार्यकर्ता भी सक्रिय हो चुके है। जबकि इनेलो और जजपा खेमे अभी तक खामोश दिखाई दे रहे है।
क्या इस टूटेगी पूंडरी में निर्दलीय की परंपरा
राजनीतिक क्षेत्र के जानकार मानते है कि इस बार पूंडरी की सीट पार्टी के खाते में जा सकती है और निर्दलीय की परंपरा टूट सकती है। इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि पिछले छह चुनाव से लगातार यहां निर्दलीय विधायकों के कारण विकास की गति सुस्त पड़ चुकी है। बावजूद पार्टी के विधायक की कमी समय-समय पर खलती रही है। इसके अलावा हलके में कोई बड़ा उद्योग या बड़ी परियोजना भी लागू नहीं हो पाई है। यहां तक कि पूंडरी को सब-डिवीजन बनवाने का मुद्दा जो कि पिछले कई प्लान से उठता रहा है, वो इस बार भी अधूरा रह गया है।
लगातार छह चुनाव बन रहे हैं निर्दलीय विधायक
1966 में कंवर रामपाल ने कांग्रेस ने चौधरी ईश्वर सिंह को हराया। 1968 में स्व. ईश्वर सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी तारा सिंह को हराकर पूंडरी में निर्दलीय की नींव रखी। 1972 में कांग्रेस टिकट पर ईश्वर सिंह ने हरचरण को हराया। 1977 स्वामी अग्निवेश जनता पार्टी ने कांग्रेस के अनंतराम को हराया। 1982 में कांग्रेस के ईश्वर सिंह ने लोकदल के भाग सिंह को हराया। 1987 में लोकदल के मक्खन सिंह ने कांग्रेस के ईश्वर सिंह को हराया। 1991 में कांग्रेस के ईश्वर सिंह ने मक्खन सिंह को हराया।
1996 में पूर्व मंत्री नरेंद्र शर्मा ने जब कांग्रेस उम्मीदवार स्व. ईश्वर सिंह को हराया तो उसके बाद पूंडरी में फिर किसी पार्टी का विधायक नहीं बन पाया और पूंडरी को निर्दलीय का गढ़ कहा जाने लगा। 2000 में तेजवीर सिंह निर्दलीय ने निर्दलीय नरेंद्र शर्मा को हराया। 2005 में कौशिक ने इनेलो के नरेंद्र शर्मा को हराया, 2009 में सुलतान ने कांग्रेस के दिनेश कौशिक को हराया। 2014 में कौशिक निर्दलीय ने भाजपा के रणधीर गोलन को हराया। इसी प्रकार पिछले 2019 के चुनाव में निर्दलीय रणधीर सिंह गोलन ने कांग्रेस के सतबीर भाणा को हराया था।