43 बार सुनवाई स्थगित होने से शीर्ष अदालत खफा, कहा- इलाहाबाद हाईकोर्ट के बारे में क्या बात की जाए?

सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के लंबे समय तक कारावास में रहने और बार-बार स्थगन के कारण उसके पास हस्तक्षेप के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों को स्थगित करने की हाईकोर्ट की प्रवृत्ति की आलोचना करते हुए उस आरोपी की जमानत याचिका मंजूर कर ली, जो सीबीआई के कई मामलों में साढ़े तीन साल से अधिक समय से हिरासत में है, तथा उसकी याचिका पर 43 बार स्थगन दिया गया था.

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बी.आर गवई और जस्टिस एन.वी अंजारिया की पीठ ने 25 अगस्त को रामनाथ मिश्रा उर्फ रमानाथ मिश्रा की याचिका स्वीकार कर ली और आदेश दिया कि यदि वह किसी अन्य मामले में वांछित नहीं है तो उसे रिहा कर दिया जाए.

शीर्ष अदालत ने जमानत याचिकाओं से निपटने में इलाहाबाद हाईकोर्ट के रवैये की विशेष रूप से आलोचना की और कहा, ‘इलाहाबाद हाईकोर्ट के बारे में क्या बात की जाए?’

सुनवाई 43 बार स्थगित की जा चुकी- CJI मिश्रा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता यशराज सिंह देवड़ा ने बताया कि हाईकोर्ट द्वारा 27 बार सुनवाई स्थगित करने के बाद, सह-अभियुक्त को मई में शीर्ष अदालत ने राहत प्रदान की थी.

याचिका का विरोध करते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस डी संजय ने दलील दी कि जब मामला हाईकोर्ट में लंबित है तो जमानत देना गलत मिसाल कायम करेगा.

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा, ‘वर्तमान मामले में सुनवाई 43 बार स्थगित की जा चुकी है. हम हाईकोर्ट द्वारा नागरिक की व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित मामलों को इतनी बार स्थगित करने की प्रवृत्ति को उचित नहीं मानते हैं. हमने बार-बार यह टिप्पणी की है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित मामलों पर न्यायालयों को अत्यंत शीघ्रता से विचार करना चाहिए.’

इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता साढ़े तीन वर्ष से अधिक समय से जेल में है, पीठ ने उसे जमानत देने का निर्णय लिया.

26 अगस्त को भी सुप्रीम कोर्ट ने की थी टिप्पणी

शीर्ष अदालत ने आपत्ति खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के लंबे समय तक कारावास में रहने और बार-बार स्थगन के कारण उसके पास हस्तक्षेप के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है.

इससे पहले 26 अगस्त को न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दिसंबर 2021 में एक आपराधिक अपील की सुनवाई पूरी कर लेने के बावजूद उस पर फैसला सुनाने में विफल रहने पर चिंता व्यक्त की थी. बेंच ने कहा, ‘यह बेहद चौंकाने वाला और आश्चर्यजनक है कि अपील की सुनवाई की तारीख से लगभग एक साल तक फैसला नहीं सुनाया गया. इस अदालत को बार-बार ऐसे ही मामलों का सामना करना पड़ता है जिनमें उच्च न्यायालय में कार्यवाही तीन महीने से ज़्यादा समय तक लंबित रहती है, कुछ मामलों में छह महीने या सालों से भी ज़्यादा समय तक, जहां मामले की सुनवाई के बाद भी फैसला नहीं सुनाया जाता.’

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