
हिमाचल प्रदेश सरकार ने कृषि और बागवानी विवि में वीसी नियुक्ति को लेकर राजभवन की ओर से जारी विज्ञापन नोटिस को वापस ले लिया है। 18 अगस्त से शुरू हो रहे विधानसभा के मानसून सत्र में सरकार इस बाबत संशोधन विधेयक दोबारा पेश करने जा रही है। सरकार ने कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल की भूमिका और राज्यपाल के सचिव के विज्ञापन जारी करने के अधिकार पर सवाल उठाए हैं। सोमवार को कृषि सचिव ने राजभवन से जारी विज्ञापन नोटिस को वापस लेने के लिए कानूनी और सांविधानिक विवाद उत्पन्न होने का हवाला दिया है। उधर, महाधिवक्ता की ओर से तमिलनाडु के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए संशोधन विधेयक लंबित रहने का जिक्र भी कृषि सचिव की अधिसूचना में किया गया है।
इस बीच लंबित विधायी पुनर्विचार के बावजूद राजभवन सचिवालय ने 15 मई और 21 जून 2025 को अधिसूचनाएं जारी कर प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर और डॉ. वाईएस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी में कुलपति नियुक्तियों के लिए चयन समितियों का गठन किया। 21 जुलाई 2025 को इन पदों के लिए आवेदन आमंत्रित करते हुए विज्ञापन भी प्रकाशित किए गए। 29 जुलाई को हुई कैबिनेट बैठक के दौरान मंत्रियों ने कहा कि चयन समिति की अधिसूचनाएं और विज्ञापन कृषि और बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय अधिनियम 1986 (1987 का अधिनियम संख्या 4) की धारा 24 के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है।
सरकार ने 5 अगस्त 2025 को राज्यपाल सचिवालय को चयन संबंधी अधिसूचनाएं वापस लेने के लिए एक औपचारिक अनुरोध भेजा। उधर, राज्य सरकार ने इस मामले को महाधिवक्ता को भी भेजा। महाधिवक्ता की ओर से कहा गया कि 1986 के अधिनियम की धारा 22 के तहत राज्यपाल कुलाधिपति के रूप में कार्य करते हुए विवि के एक अधिकारी के रूप में कार्य करते हैं न कि राज्य के सांविधानिक प्रमुख के रूप में। वह ऐसे मामलों में राज्य सरकार के निर्देशों से बाध्य है। उन्होंने कहा कि विज्ञापन में विश्वविद्यालयों में विद्यमान प्रधान विस्तार अधिकारी, प्रधान वैज्ञानिक आदि जैसे विभिन्न समकक्ष पदों का उल्लेख नहीं था, जिससे पात्र उम्मीदवारों को अनुचित रूप से बाहर रखा गया।
राजभवन सचिवालय का यह है तर्क
सरकार की आपत्तियों का जवाब देते हुए राजभवन सचिवालय ने 6 अगस्त 2025 के एक पत्र के माध्यम से अपने कार्यों को उचित ठहराया। इसमें कहा गया था कि कुलपति के पद 2023 से पालमपुर और मई 2025 से नौणी में रिक्त हैं। चयन समितियों का गठन 1986 के अधिनियम के अनुसार ही किया गया। विज्ञापनों सहित पूरी प्रक्रिया मौजूदा नियमों के तहत वैध और न्यायोचित हैं।