स्वतंत्रता के प्रहरी: पहले परमवीर चक्र विजेता पर देश को है नाज

साल 1947-48 के भारत-पाक युद्ध में अद्भुत पराक्रम दिखाते हुए शहीद हुए मेजर सोमनाथ शर्मा का नाम देश के बलिदानियों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। 31 जनवरी 1923 को जन्मे मेजर सोमनाथ शर्मा भारतीय सेना की चौथी बटालियन, कुमाऊं रेजिमेंट की डी कंपनी के कमांडर थे। 3 नवंबर 1947 को उन्होंने श्रीनगर हवाई अड्डे की रक्षा की। युद्ध के दौरान गोलियों और मोर्टार की बारिश के बीच, उन्होंने खुद मोर्चे पर रहकर हथियार, गोला बारूद बांटा और मनोबल बढ़ाया। पाकिस्तानी सेना और कबायली हमलावरों की संख्या अधिक होने के बावजूद उन्होंने मोर्चा संभाले रखा और हवाई अड्डा भारत के नियंत्रण में सुरक्षित रहा। उनके अदम्य साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। आज भी उनके नाम पर पालमपुर या पैतृक गांव डाढ में ऐसा कोई बड़ा स्मृति स्थल नहीं है, जहां लोग उनकी शौर्यगाथा जान सकें। नगर निगम पालमपुर ने पहले से स्थापित उनकी प्रतिमा का आठ लाख से सौंदर्यीकरण किया है।

शौर्यगाथा को जानने के लिए नहीं बना बड़ा स्मृति स्थला
पालमपुर के डाढ गांव के मेजर सोमनाथ शर्मा मरणोपरांत परमवीर चक्र पाने वाले देश के पहले वीर हैं। गांव के प्रवेश द्वार पर पर्यटन विभाग के उपाध्यक्ष आरएस बाली के सौजन्य से उनका नाम लिखा हुआ है, लेकिन एक भव्य स्मारक की कमी महसूस होती है। अब उनकी स्मृति में पूर्व विधायक प्रवीण शर्मा की संस्था इंसाफ डाढ में वन वाटिका व वन विहार का निर्माण कर रही है। इसका शिलान्यास उनके छोटे भाई सेवानिवृत्त जनरल वीएन शर्मा ने पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार, सांसद डॉ. राजीव भारद्वाज और विधायक आशीष बुटेल की मौजूदगी में किया।

सोलह की उम्र में आजादी की जंग में कूदे थे रत्न
अंग्रेजी हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प लेकर पंडित सुशील चंद रत्न महज 16 वर्ष की आयु में स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। आजादी की लड़ाई में भागीदारी के चलते अंग्रेजों ने उन्हें कई बार पुलिस रिमांड पर रखा और यातनाएं दीं। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। भूमिगत रहकर उन्होंने देहरादून और लाहौर में भी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया, हालांकि पुलिस की कड़ी निगरानी लगातार बनी रही। 1945 में उन्होंने देहरा तहसील के चंगर क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम करना शुरू किया। पुलिस की सख्त नजर के कारण स्वतंत्रता प्राप्ति तक वे शिमला में रहकर आंदोलन से जुड़े रहे। उनका 31 मार्च 1924 को देहरा के गरली में जन्म हुआ। स्वतंत्रता के बाद पंडित सुशील चंद रत्न 1985 से 1990 तक खादी कल्याण बोर्ड के उपाध्यक्ष रहे। इसके बाद 2003 से 2007 और 2013 से 2017 तक स्वतंत्रता सेनानी कल्याण बोर्ड के उपाध्यक्ष पद पर कार्य किया। वे गृह मंत्रालय के तहत बनी छह सदस्यीय स्वतंत्रता सेनानी कल्याण समिति के सदस्य भी रहे।

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