शरीयत को संविधान से ऊपर बताने पर भड़की भाजपा

झारखंड के मंत्री हफीजुल हसन अंसारी के शरीयत को संविधान से ऊपर बताने वाले बयान पर सियासी घमासान मचा हुआ है। बीजेपी ने इसे संविधान का अपमान करार देते हुए मंत्री को हटाने की मांग की है। वहीं, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने वक्फ कानून पर प्रतिक्रिया दी है।

झारखंड के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हफीजुल हसन अंसारी के शरीयत को संविधान से ऊपर बताने के बयान से सियासी बवाल मच गया है। भाजपा ने इसे गंभीर चिंता का विषय बताते हुए अंसारी को मंत्री पद से हटाने की मांग की है। पार्टी ने हेमंत सोरेन सरकार के मंत्री के बयान को संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर का अपमान भी बताया है।

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि उनकी सरकार वक्फ (संशोधन) अधिनियम राज्य में लागू नहीं करेगी। इसी से जुड़े सवाल पर अंसारी ने कहा, शरीयत मेरे लिए बड़ा है। हम मुसलमान कुरान सीने में और संविधान हाथ में लेकर चलते हैं। तो हम पहले शरीयत को पकड़ेंगे, उसके बाद संविधान को। मेरा इस्लाम यही कहता है।

केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री और रांची से सांसद संजय सेठ ने अंसारी के बयान को लोकतंत्र का दुर्भाग्य बताया। उन्होंने कहा, आज देश बाबासाहेब अंबेडकर की जयंती मना रहा है, और इसी दिन एक मंत्री संविधान से ऊपर शरीयत को बता रहे हैं। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। संविधान सबसे ऊपर है, उससे ऊपर कुछ नहीं हो सकता।

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने अंसारी के बयान को गंभीर चिंता का विषय बताते हुए कहा कि मंत्री ने अपनी टिप्पणी से यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि उनकी पार्टियां सत्ता में बनी रहीं तो संविधान खतरे में पड़ जाएगा। त्रिवेदी ने कहा कि वे संविधान को अपनी पॉकेट में रखते हैं, जबकि भाजपा और एनडीए के घटक दल संविधान को अपने सीने में रखते हैं। यह लड़ाई संविधान को जेब में रखने वालों और संविधान को दिल में रखने वालों के बीच है। अंसारी के बयान से पता चलता है कि उन्हें संविधान का कोई सम्मान नहीं है।

राज्यों को वक्फ कानून को लागू करना पड़ेगा
सुधांशु त्रिवेदी ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि राज्य वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लागू करने से इन्कार नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा, हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि संविधान में 73वें और 74वें संशोधन के बाद केंद्र, राज्य और जिला स्तर की सरकारों की शक्तियां स्पष्ट रूप से परिभाषित हैं। कोई भी जिला पंचायत राज्य विधानसभा की ओर से पारित कानून से आगे नहीं जा सकती और कोई भी राज्य केंद्र (संसद) की ओर से पारित कानून को दरकिनार नहीं कर सकता।

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