
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सोमवार को वक्फ (संशोधन) विधेयक को संविधान पर सीधा हमला करार दिया और विधेयक के क्रियान्वयन का विरोध करने का संकल्प व्यक्त किया।
उन्होंने मांग की कि राजग के सहयोगी तेदेपा और जदयू इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करें। उन्होंने कहा कि वक्फ (संशोधन) विधेयक संविधान पर सीधा हमला है और इसकी बुनियाद के खिलाफ है। इसे संयुक्त संसदीय समिति के माध्यम से थोपा गया है।
बिल का विरोध करने की चेतावनी
उन्होंने कहा कि अगर सरकार इसे लागू करती है, तो हम लोकतांत्रिक तरीके से इसका विरोध करेंगे। जयराम ने कहा कि हर विपक्षी पार्टी इसका विरोध कर रही है। समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रस, आप हर पार्टी इस विधेयक का विरोध कर रही है?
उन्होंने कहा कि लेकिन सवाल यह है कि जदयू और तेदेपा जैसी पार्टियां क्या करती हैं? जो पार्टियां खुद को पंथनिरपेक्ष कहती हैं, जो कहती हैं कि उनका पंथनिरपेक्षता में विश्वास है, उनका इस पर क्या रुख है?
रिजिजू ने किया अलग दावा
उधर संसदीय कार्य एवं अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने दावा किया कि विधेयक के पक्ष में सिर्फ राजग ही एकजुट नहीं है, बल्कि विपक्षी आईएनडीआईए के भी कई सांसदों ने इसका समर्थन करते हुए जल्द बिल लाने की मांग की है। विपक्षी सांसद सिर्फ अपने नेताओं के डर की वजह से खुलकर नहीं बोल रहे हैं।
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ने सोमवार को पत्रकारों से बातचीत में आरोप लगाया कि वक्फ संशोधन बिल को लेकर कुछ राजनीतिक दल और संगठन जनता को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं। दावा किया कि संशोधित विधेयक में गरीब-पिछड़े मुसलमानों और महिलाओं के भले के लिए प्रविधान किए गए हैं। कुछ लोग दुष्प्रचार कर रहे हैं कि मुसलमानों की मस्जिदें, कब्रिस्तान और जमीन-जायदाद छीन ली जाएगी, जबकि यह कानून आजादी से पहले था और बाद में भी है। इसमें लगातार बदलाव भी किए गए तो अब असंवैधानिक कैसे हो गया?
कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस ने किया बिल का समर्थन
कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया ने भी पत्र लिखकर विधेयक का समर्थन किया है। पत्र में उल्लेख किया है कि मौजूदा केंद्रीय वक्फ अधिनियम में कुछ प्रविधान संविधान और देश के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध हैं।
कहा गया कि केरल में वक्फ बोर्ड ने मुनंबम क्षेत्र में 600 से अधिक परिवारों की पैतृक आवासीय संपत्तियों को वक्फ भूमि घोषित करने के लिए इन प्रविधानों का इस्तेमाल किया है। पिछले तीन वर्षों में यह मुद्दा एक जटिल कानूनी विवाद में बदल गया है। सिर्फ कानूनी संशोधन ही इसका स्थायी समाधान कर सकते हैं। बिशप कान्फ्रेंस ने राजनीतिक दलों से अपील की है कि इस मुद्दे पर निष्पक्ष और रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाएं।