स्वतंत्रता सेनानी सुभाष शर्मा की उम्र 12 साल थी तो उन्होंने युवाओं को साथ लेकर फरीदकोट की दाना मंडी में नीम के पेड़ पर तिरंगा फहरा दिया। इसके बाद उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी।
स्वतंत्रता सेनानी सुभाष शर्मा उर्फ चंद्र शेखर आजाद की रगों में स्वतंत्रता सेनानियों का खून दौड़ रहा था। पंजाब के फरीदकोट में वर्ष 1932 में जन्मे चंद्र शेखर आजाद छोटी उम्र से ही युवाओं की टोलियां बनाकर आजादी के संघर्ष में अपना योगदान करते थे।
जब उनकी उम्र 12 साल थी तो उन्होंने युवाओं को साथ लेकर फरीदकोट की दाना मंडी में नीम के पेड़ पर तिरंगा फहरा दिया। अंग्रेजी हुकूमत के वक्त तिरंगा फहराना बड़ा जुर्म था। तभी वहां पर फौज आई और उन्होंने युवाओं पर लाठीचार्ज किया और उनको गिरफ्तार कर लिया।
चंद्र शेखर आजाद को जेल में डाल दिया गया और उनको बर्फ की सिलियों पर लिटाकर यातनाएं दी गईं, लेकिन वे टस से मस नहीं हुए। उनके दोनों बाजू एवं टांगों को भी तोड़ दिया गया। इसके बाद उनको फांसी की सजा सुनाई गई।
चंद्रशेखर आजाद के दादा पंडित खुशी राम फरीदकोट के महाराजा हरिंदर सिंह के राज में जज थे। उन्होंने इस पर विरोध स्वरूप अपना इस्तीफा दे दिया। इसके बाद दूत भेजकर चंद्र शेखर आजाद के पिता पंडित चेतन देव को बुलाया गया। उनको कहा कि बालक से माफी मंगवाई जाए अन्यथा बालक को फांसी पर लटका दिया जाएगा। तब पंडित चेतन दास ने कहा कि दशम पातशाही श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज ने देश की खातिर अपने चार-चार साहिबजादे कुर्बान कर दिए, मेरा तो एक ही है, यह माफी नहीं मांगेगा।
पंडित नेहरू ने माफ करवाई थी सजा
यह बात पंडित जवाहर लाल नेहरू तक पहुंची तो वे एक लाख सत्याग्रहियों का जत्था लेकर फरीदकोट पहुंच गए। पुलिस ने बताया कि पंडित नेहरू को गोली मारने के आदेश हुए हैं, लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की और फरीदकोट की दाना मंडी में उसी नीम के पेड़ पर तिरंगा फहरा दिया। उसके बाद पंडित नेहरू ने फरीदकोट के महाराजा से मुलाकात की और बातचीत की। फांसी के दो घंटे के बाद चंद्र शेखर आजाद को पंडित जी ने रिहा करवा लिया और अपने साथ दिल्ली ले गए। वहां पर बालक का इलाज कराया।
ऐसे मिला था चंद्रशेखर आजाद नाम
रिहाई के बाद ही पंडित नेहरू ने बालक का हौसला देखकर उनका नाम चंद्र शेखर आजाद रख दिया, जबकि परिवार ने उनका नाम सुभाष शर्मा रखा था। बाद में सुभाष की पहचान चंद्र शेखर आजाद के तौर पर ही रही। आजादी मिलने तक वे युवाओं को लगातार संघर्ष के लिए प्रेरित करते रहे और आजादी के संग्राम में पूरी तरह से सक्रिय रहे।
चंद्र शेखर आजाद के दादा पंडित खुशी राम एवं पिता पंडित चेतन देव ने भी स्वतंत्रता संग्राम में अपना अहम योगदान दिया और सारा जीवन आजादी हासिल करने में लगा दिया। साफ है कि चंद्र शेखर आजाद को भी यह घुट्टी परिवार से ही मिली। वर्ष 1962 में उनका परिवार फरीदकोट से लुधियाना आ गया और वर्ष 2011 में चंद्र शेखर आजाद स्वर्ग सिधार गए।
आज भी फरीदकोट की दाना मंडी में सौ साल से भी अधिक पुराना वह नीम का पेड़ सुरक्षित है और सरकार उसकी देखभाल करती है। चंद्र शेखर आजाद के बेटे रवि शर्मा का कहना है कि अभी भी जब भी उनका परिवार या वे फरीदकोट जाते हैं तो उस पेड़ के दर्शन अवश्य करते हैं। इसके अलावा चंद्र शेखर आजाद पिता के नाम पर फरीदकोट में देश भगत पंडित चेतन देव सरकारी काॅलेज आफ एजुकेशन भी है।