लखनऊ की हवा में घुल रहा जहर, 6.5 साल घटी उम्र, स्वच्छ सर्वेक्षण में 15वें स्थान पर लुढ़की रैंकिंग

जधानी लखनऊ प्रदूषित हवा मामले में देश में 15वें स्थान पर पहुंच गई है. एक रिपोर्ट के मुताबिक हवा में प्रदूषण का असर यहां के निवासियों के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है. राजधानी लखनऊ में हवा में प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है. आलम ये हैं कि कभी स्वच्छ वायु सर्वेक्षण में पहला स्थान पाने वाली राजधानी इस साल 15वें स्थान पर पहुंच गई है. जिसका सीधा असर यहां रहने वाले लोगों पर दिखाई दे रहा है. एक लेटेस्ट रिपोर्ट के मुताबिक़ वायु प्रदूषण की वजह से लखनऊ के निवासियों की उम्र औसतन 6.5 साल तक कम हो रही है. 

लखनऊ को साल 2022 में स्वच्छ हवा की रैंकिंग में पूरे देश में पहला स्थान मिला था. लेकिन इसके अगले ही साल 2023 में लखनऊ 26वें स्थान पर पहुंच गया. साल 2024 में लखनऊ चौथे स्थान पर रहा और इस साल 2025 में लखनऊ 15वें नंबर पर पहुंच गया है. जबकि आगरा, मुरादाबाद और झांसी जैसे शहर भी आगे निकल गए हैं. 

इन वजहों से प्रदूषित हो रही हवा

जानकारों के मुताबिक लखनऊ की हवा बिगड़ने की सबसे बड़ी वजह यहां किए कंस्ट्रक्शन के काम और नगर निगम की सुस्ती को माना जा रहा है. निगम का कुप्रबंधन ऐसा है कि   टूटी हुई सड़कों से धूल फांकती रहती है. ना मरम्मत कराई जाती है और न ही पानी का छिड़काव किया जा रहा है. 

राजधानी में जगह-जगह कूड़े के ढेर देखे जा सकते हैं और सफ़ाई व्यवस्था की हालत बदतर हो चुकी है. नगर निगम के तमाम दावे कागजी साबित हो रहे हैं. शहर में पेड़-पौधे लगाने में भी लापरवाही बरती जा रही है. इन तमाम वजहों के चलते लखनऊ की हवा में जहर घुलता जा रहा है. 

नगर निगम की लापरवाही पड़ेगी भारी!

स्वच्छ हवा में लखनऊ की रैंकिंग गिरने का असर शहर के बजट पर भी पड़ेगा. केंद्र सरकार 16वें वित्त आयोग से मिलने वाले बजट में कटौती कर सकती है. वहीं अब नगर निगम ने इस मामले में चुप्पी साध ली है. अधिकारियों को जवाब नहीं मिल रहा है. उनका कहना है कि वो हवा में सुधार के लिए काम करेंगे. 

6.5 साल कम हो रही आयु

लखनऊ की प्रदूषित हवा यहां के रहवासियों के लिए भी खतरा बन गई है. एक रिपोर्ट के मुताबिक ख़राब हवा के चलते यहां रहने वाले लोगों की औसतन आयु 6.5 साल तक घट गई है. 

‘ग्रिडलॉक से ग्रीन समावेशी गतिशीलता तक- लखनऊ में यातायात वायु गुणवत्ता और सार्वजनिक परिवहन अवसरों का विश्लेषण’ रिपोर्ट में नए वाहन पंजीकरण, यातायात भीड़ और वायु प्रदूषण के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव का विश्लेषण किया गया है. 

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