रक्षा उत्पादन में मेक इन इंडिया ने बदली तस्वीर, दस साल में 21 गुना बढ़ा निर्यात

रक्षा क्षेत्र में मोदी सरकार का जोर आत्मनिर्भरता पर है और इस अभियान को मेक इन इंडिया योजना ने ऊंची उड़ान वाले पंख दिए हैं। इसी वजह से भारत 2028-29 तक वार्षिक रक्षा उत्पादन को तीन गुना और रक्षा निर्यात को दो गुने के स्तर पर पहुंचाना चाहता है। राजनाथ सिंह ने भरोसा जताया है कि 2029 तक रक्षा निर्यात 50 हजार करोड़ को पार कर जाएगा।

भारत को मैन्युफैक्चरिंग की बड़ी शक्ति बनाने के लिए शुरू की गई योजना मेक इन इंडिया ने जिस क्षेत्र में सबसे अधिक छाप छोड़ी है, वह है रक्षा। यहां इस योजना की सफलता की गाथा का प्रमाण यह है कि 2023-24 में रक्षा निर्यात 21,083 करोड़ तक पहुंच गया, जो दस साल पहले मुश्किल से 500-600 करोड़ रुपये था।

पिछले वित्तीय वर्ष के मुकाबले रक्षा निर्यात 32.5 प्रतिशत अधिक है और दस साल पहले मेक इन इंडिया अभियान की शुरुआत के पूर्व के स्तर से 21 गुना। अगर पूरे रक्षा उत्पादन की बात करें तो 2014-15 में 46,429 करोड़ से बढ़कर दस साल में यह 1,27,264 करोड़ तक पहुंच चुका है और इस वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक इसे 1.75 लाख करोड़ तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है।

रक्षा क्षेत्र में मोदी सरकार का जोर आत्मनिर्भरता पर
रक्षा क्षेत्र में मोदी सरकार का जोर आत्मनिर्भरता पर है और इस अभियान को मेक इन इंडिया योजना ने ऊंची उड़ान वाले पंख दिए हैं। इसी वजह से भारत 2028-29 तक वार्षिक रक्षा उत्पादन को तीन गुना और रक्षा निर्यात को दो गुने के स्तर पर पहुंचाना चाहता है।

मेक इन इंडिया अभियान के दस वर्ष पूरे होने पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक्स पर पोस्ट किया-रक्षा उत्पादन के मामले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में मेक इन इंडिया अभियान ने देश की तस्वीर बदल दी है। एक समय था जब लगभग 65 से 70 प्रतिशत रक्षा सामग्री आयात की जाती थी, लेकिन अब केवल 35 प्रतिशत सामान ही आयात हो रहा है।

राजनाथ सिंह ने जताया भरोसा
राजनाथ सिंह ने भरोसा जताया है कि 2029 तक रक्षा निर्यात 50 हजार करोड़ को पार कर जाएगा। रक्षा क्षेत्र में मेक इन इंडिया की सफलता का सबसे अधिक आकर्षक पहलू यह है कि उन सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों ने अपने प्रदर्शन से सबसे अधिक प्रभावित किया है, जिन्हें अक्षम और कामकाज में लचर ही समझा जाता था।

रक्षा उत्पादन और निर्यात में अभूतपूर्व तीव्र वृद्धि
रक्षा उत्पादन और निर्यात में अभूतपूर्व तीव्र वृद्धि ने कई पीएसयू को बाजार में भी दमदार बना दिया है। उत्पादन में बढ़ोतरी में निजी क्षेत्र का योगदान स्वाभाविक रूप से अधिक रहा है, लेकिन सरकारी उपक्रमों ने भी इसमें 40 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी हासिल की है। रक्षा निर्यात के लिए मंजूरियां भी तेजी से बढ़ रही हैं। 2022-23 में इनकी संख्या 1414 थीं, जो 2023-24 में 1507 हो गई हैं।

रक्षा के मामले में संपूर्ण आत्मनिर्भता के लिए मेक इन इंडिया अभियान के सहारे एक नया रक्षा औद्योगिक परि²श्य रचा गया है, जिसमें एलएंडटी, गोदरेज, अदाणी जैसे बड़े कारपोरेट समूहों के साथ सरकारी कंपनियां भी हैं और शोध-अनुसंधान का पूरा नेटवर्क भी है। इसी के बल पर ब्रह्मोस बैलेस्टिक मिसाइल से लेकर फाइटर जेट तक और गोला-बारूद से लेकर नाइट विजन डिवाइस तक सब कुछ भारत में बन रहा है और आयात पर निर्भरता हर साल घट रही है।

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और मेक इन इंडिया को बढ़ावा
अपनी सामरिक स्वायत्तता के लिए यह सबसे अधिक आवश्यक बात है। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए दो बड़े नीतिगत फैसले हैं-स्वदेशीकरण के लिए उपकरणों और सामग्री की सूची तैयार करना और रक्षा खरीद के लिए 75 प्रतिशत धनराशि घरेलू कंपनियों से खरीद के लिए निश्चित करना।

स्वदेशीकरण के लिए 4666 रक्षा आइटम तय किए गए थे, जिनमें कच्चा माल, जरूरी उपकरण और कंपोनेंट शामिल हैं। इनमें से 2920 का स्वदेशीकरण किया जा चुका है। रक्षा उत्पादन के लिए 40 से 50 लाइसेंस हर साल जारी किए जा रहे हैं।

ऐसे बदली तस्वीर

वित्तीय वर्ष रक्षा उत्पादन (करोड़ रुपये)

2014-15 46429

2015-16 52968

2016-17 74054

2017-18 78820

2018-19 81120

2019-20 79071

2020-21 84643

2021-22 94845

2022-23 108684

2023-24 127264

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