
ठाणे जिला के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जीटी पवार ने नगर निगम अधिकारियों पर हमला करने और उन्हें धमकाने के आरोपी बिल्डर को बरी कर दिया। न्यायाधीश ने कहा कि मामले में अभियोजन पक्ष ने गवाही देने के लिए उन अधिकारियों को अदालत में कभी नहीं बुलाया, जिन पर सीधे तौर पर हमला किया गया था। जिन दो अधिकारियों ने गवाही दी है। वह हमले से पीड़ित नहीं थे। इसलिए विनोद गंगासहाय त्रिवेदी को बरी किया जाता है।
महाराष्ट्र में ठाणे नगर निगम के अधिकारियों पर हमला करने और उन्हें धमकाने के आरोपी बिल्डर को कोर्ट से राहत मिली है। जिले की एक सत्र अदालत ने बिल्डर को बरी कर दिया है। अदालत ने बिल्डर को बरी करते हुए मामले में अभियोजन पक्ष की चूक का हवाला दिया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने मामले में जरूरी गवाहों को पेश नहीं किया।
तीन जून के अपने आदेश में, जिसकी एक प्रति शुक्रवार को उपलब्ध कराई गई, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जीटी पवार ने बिल्डर विनोद गंगासहाय त्रिवेदी के खिलाफ सभी आरोप हटा दिए।
जानें क्या है पूरा मामला
अभियोजन पक्ष के अनुसार, 2015 में मीरा भयंदर नगर निगम की टीम एक निर्माणाधीन इमारत की तस्वीरें लेने गई थी। इस दौरान बिल्डर त्रिवेदी ने टीम को तस्वीरें लेने से रोक दिया। अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि बिल्डर ने अधिकारियों को धमकाया और उनमें से एक पर हमला भी किया। इसके अलावा, एक अधिकारी से कैमरा छीनकर तस्वीरें मिटा दीं।
जिन अधिकारियों पर हमला हुआ, उन्होंने नहीं दी गवाही
न्यायाधीश पवार ने कहा कि जिन अधिकारियों पर सीधे हमला हुआ था, उन्हें कभी भी गवाही के लिए कोर्ट में नहीं बुलाया गया। अदालत ने आगे कहा कि मुखबिर सहित जिन दो अधिकारियों ने गवाही दी, वे खुद हमले या धमकी के शिकार नहीं थे। न्यायाधीश ने कहा, ‘दोनों गवाहों पर न तो आपराधिक बल का प्रयोग किया गया और न ही हमला किया गया।’
अभियोजन पक्ष की कहानी पर संदेह पैदा कर रहे तथ्य
अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस ने कैमरा बरामद नहीं किया। न्यायाधीश पवार ने कहा कि ये सभी तथ्य अभियोजन पक्ष की कहानी पर संदेह पैदा करते हैं। इसलिए, मेरा मानना है कि अभियोजन पक्ष आरोपी के अपराध को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है। इसलिए आरोपी बिल्डर को सभी आरोपों से बरी किया जाता है।
बिल्डर के वकील ने जबरन वसूली का किया था दावा
मुकदमे के दौरान बिल्डर त्रिवेदी के वकील ने दावा किया था कि एक स्थानीय नेता ने जबरन पैसे की मांग की थी, और जब त्रिवेदी ने पैसे देने से इनकार किया, तो उसके खिलाफ झूठा केस दर्ज करवाया गया।