पंजाब में कागजी नीतियां नहीं: पराली से निपटने के लिए 15-20 साल का रोड मैप बने

पराली के निस्तारण के लिए कागजी नीतियां नहीं चलेंगी। इस समस्या के समाधान के लिए कम से कम 15 से 20 साल का रोडमैप होना चाहिए। यह रोडमैप एसी कमरों में बैठकर नहीं बनना चाहिए। इस रोडमैप को बनाने में किसानों की राय को भी शामिल करना चाहिए। सरकारें किसानों के हित में कई कदम उठाती हैं, लेकिन उन्हें इस पर भी ध्यान देना होगा कि उनकी योजनाएं किसानों को डोर स्टेप पर मिल सकें। अकसर कागजों में तो किसान के जीवन में सुधार दिख जाता है, लेकिन जमीनी हकीकत आज भी किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर कर देती हैं।

सरकार पराली के इन सीटू व एक्स सीटू प्रबंधन के लिए 1.30 लाख मशीने होने का दावा करती है, लेकिन अभी भी छोटे किसानों तक इन मशीनों की पहुंच नहीं है। नीति बनाने समय हितधारकों खासकर किसानों को विश्वास में लेने की बात कही गई है। तभी जाकर समस्या का स्थायी समाधान निकलकर सामने आ सकता है। कांफ्रेंस में पूर्व आईएएस अधिकारी एसएस चन्नी, पंजाब विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के प्रोफेसर हरमिंदर पाल सिंह, वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रो. एएन सिंह, प्रो. डॉ. विनोद कुमार चौधरी, पीजीआई के प्रो. रविंदर खाईवाल, प्रोग्रेसिव फार्मर्स फ्रंट के महासचिव गुरअमनीत सिंह और आर्गेनिक शेयरिंग फाउंडेशन के फाउंडर राहुल महाजन ने हिस्सा लिया।

किसानों को जागरूक करने की जरूरत: एसएस चन्नी

पूर्व आईएएस अधिकारी एसएस चन्नी ने बताया कि अगर किसान 50 प्रतिशत पराली का प्रबधंन कर सकते हैं, तो बाकी की पराली का प्रबंधन भी किया जा सकता है। कोई भी चीज मुश्किल नहीं है। किसानों को इस संबंध में जागरूक करने की जरूरत है, क्योंकि आखिर हवा में जहर घोल रही पराली उनकी सेहत को भी प्रभावित कर रही है। केंद्र सरकार पंजाब को करोड़ो रुपये फंड जारी कर चुकी है। बावजूद इसके पराली प्रबंधन वाली मशीनों का सही रूप से आवंटन नहीं हो रहा है। इसी तरह अधिकतर मशीनें खराब पड़ी है। फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करने पर भी केंद्र काम कर रहा है, लेकिन राज्य सरकार का इस ओर ध्यान नहीं है।

युवा किसानों को प्रोत्साहित करने पर हो जोर: प्रो. रविंद्र खैवाल

पीजीआई के प्रो. रविंद्र खैवाल ने कहा कि केंद्र सरकार पराली प्रबंधन के लिए काम कर रही है। इसके साथ ही किसानों की आय बढ़ाने का भी प्रयास किया जा रहा है। इसी का नतीजा है कि पिछले कुछ सालों की तुलना में इस साल पराली जलाने के मामले 70 फीसदी कम हो गए हैं। युवा किसानों को प्रोत्साहित करने पर विशेष जोर दिया जा रहा है, क्योंकि आगे उन्होंने ही कृषि की कमान संभालनी है। पिछले कुछ समय से स्ट्रोक के मामले बढ़ने लगे हैं, जिस कारण लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है। एक स्टडी के अनुसार इसके पीछे का कारण प्रदूषण बढ़ना है। उन्होंने कहा कि पहले नंबर पर तंबाकू है, जबकि दूसरे नंबर पर प्रदूषण के कारण स्ट्रोक के केसों में वृद्धि हो रही है, इसलिए प्रदूषण को कंट्रोल करना बहुत जरुरी है। पराली जलाने के अलावा प्रदूषण के कई कारण हैं, जिसमें इंडस्ट्री के अलावा वाहनों की बढ़ रही संख्या के कारण भी प्रदूषण बढ़ रहा है।

पराली खरीदने पर भी काम करना चाहिए: प्रो. एएन सिंह

पंजाब विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रो. एएन सिंह ने कहा कि सरकार की तरफ से धान की खरीद के साथ ही पराली खरीदने पर भी काम करना चाहिए, जिससे किसानों पर प्रबंधन का भार नहीं पड़ेगा। पराली जलाने के बाद जो कार्बन निकलता है, वह हवा, पानी व मिट्टी सभी के लिए खतरनाक है, इसलिए सही रूप से प्रबंधन करना बहुत जरूरी है। पहले पशुओं के चारे के रूप में इसका इस्तेमाल कर लिया जाता था। पराली जलाने से जमीन को हो रहे नुकसान से किसान वाकिफ नहीं है और अगले सीजन की खेती के लिए इसे आग के हवाले कर देते हैं। आने वाले समय में इसके प्रभाव देखने को मिलेंगे और भूमि बंजर होनी शुरू हो जाएगी।

सिर्फ किसानों को दिया जा रहा दोष : गुरअमनीत सिंह

प्रोग्रेसिव फार्मर्स फ्रंट के महासचिव गुरअमनीत सिंह ने कहा कि पराली पर सिर्फ किसानों को दोष दिया जा रहा है, जबकि वाहनों से होने वाले प्रदूषण व इंडस्ट्री के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। उन्होंने कहा कि दिल्ली चारों तरफ से इंडस्ट्री से घिरी हुई है, जिसके चलते हर बार ही प्रदूषण बढ़ जाता है। पंजाब का हवा इस समय ठीक है, जबकि दिल्ली की हवा खतरनाक श्रेणी में पहुंची गई है।

फसल विविधीकरण पर जोर देने की जरूरत : प्रो. चौधरी

प्रोफेसर डॉ. विनोद चौधरी ने कहा कि पंजाब में फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने की जरूरत है। साथ ही एग्रो फार्मिंग लागू की जानी चाहिए। इसी तरह पराली को सीधे फसल में मिलाना गलत है। पराली का मल्चिंग के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है और इसके कई सफल उदाहरण है, जिनको अपनाने की जरूरत है। इससे जमीन की उपज भी बढ़ेगी।

वायु प्रदूषण हर किसी के स्वास्थ्य पर डाल रहा असर : प्रो. हरमिंदर

पंजाब विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के प्रोफेसर हरमिंदर पाल सिंह कहा कि पराली के प्रबंधन के लिए सख्ती करने की जगह किसानों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। किसानोें का एक भी पैसा पराली प्रबंधन पर खर्च नहीं होना चाहिए। पराली के इन सीटों से लेकर एक्स सीटू प्रबंधन में किसानों को पूरा सहयोग दिया जाना चाहिए। एक बार किसानों को प्रबंधन की आदत पड़ गई, तो फिर इसमें दिक्कत नहीं आएगी। किसान पराली प्रबंधन की प्रक्रिया के आदी हो जाएंगे, क्योंकि वायु प्रदूषण हर किसी के स्वास्थ्य पर असर डाल रहा है।

पिछले कुछ सालों में बढ़ी पराली की समस्या: महाजन

पर्यावरण प्रेमी राहुल महाजन ने बताया कि पहले पराली की समस्या नहीं थी और पिछले कुछ सालों के दौरान ही सामने आई है। खरीफ और रबी सीजन के बीच अंत कम है। किसानों को मजबूरी में यह कदम उठाना पड़ रहा है। किसानों को जागरूक और ठोस समाधान देने की जरूरत है। कोई भी किसान पराली जलाना नहीं चाहता है।

पराली जलने के कारण
छोटे किसानों तक मशीनों की पहुंच नहीं।
पराली प्रबंधन की लागत अधिक।
रबी सीजन की बुआई में कम समय।

समाधान
सीआरएम मशीनों की मदद से पराली का निस्तारण।
बायो गैस बनाने के लिए प्लांटों में पराली का उपयोग।
मल्चर से पराली को छोटे-छोटे टुकड़ों करके जमीन में मिलाना।
किसानों को निस्तारण के लिए विशेष इंसेंटिव जारी करना।

चुनौतियां
किसानों को इन्सेंटिव देने के लिए 1800 करोड़ रुपये फंड का इंतजाम करना।
राज्य में फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना।
पराली निस्तारण के लिए किसानों को सहमत करना।

Related Articles

Back to top button