न्यायालय का यह निर्देश छात्र संघ चुनावों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की मांग करने वाली एक याचिका के बाद आया है।
उच्च न्यायालय ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति और अन्य संबंधित पक्षों को दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) चुनावों में 50 प्रतिशत महिला आरक्षण लागू करने की मांग करने वाले एक अभ्यावेदन पर विचार करने का निर्देश दिया है। न्यायालय का यह निर्देश छात्र संघ चुनावों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की मांग करने वाली एक याचिका के बाद आया है।
याचिका में तर्क दिया गया है कि संघ में महिलाओं का वर्तमान प्रतिनिधित्व न होना उनके अधिकारों का उल्लंघन है और निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी भागीदारी में बाधा डालता है। न्यायालय ने अधिकारियों को प्रतिनिधित्व पर विचार करने और तीन सप्ताह के भीतर डूसू चुनावों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया। इस कदम से छात्र संघ में महिलाओं की भागीदारी और प्रतिनिधित्व बढ़ने की उम्मीद है, जिससे लैंगिक समानता और समावेशिता को बढ़ावा मिलेगा।
27 सितंबर को है डूसू चुनाव
2024-25 शैक्षणिक वर्ष के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) के चुनाव 27 सितंबर को होने हैं। नामांकन जमा करने की विंडो 17 सितंबर तक खुली है। जो उम्मीदवार अपना नामांकन वापस लेना चाहते हैं, वह 18 सितंबर को दोपहर 12 बजे तक ऐसा कर सकते हैं। उसी दिन शाम पांच बजे तक चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की अंतिम सूची प्रकाशित की जाएगी।
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ दिल्ली विश्वविद्यालय के अधिकांश कॉलेजों और संकायों के छात्रों का एक प्रतिनिधि निकाय है। प्रत्येक कॉलेज का अपना छात्र संघ होता है, जिसके चुनाव सालाना होते हैं। प्रतिनिधियों का चयन विश्वविद्यालय और उसके संबद्ध कॉलेजों के छात्रों द्वारा सीधे मतदान के माध्यम से किया जाता है। जो आमतौर पर प्रत्येक वर्ष अगस्त और सितंबर के बीच होता है।
छात्रसंघ चुनाव में आधी आबादी की चमक पड़ी फीकी
हर मोर्चे पर अपने को साबित करने वाली आधी आबादी की चमक दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में फीकी पड़ रही है। बीते सालों में कैंपस के दौरान गर्ल पॉवर का जलवा नहीं दिखता है। एनएसयूआई और एबीवीपी जैसे छात्र संगठन उपाध्यक्ष व सचिव पद पर तो इन्हें टिकट देते हैं, लेकिन अध्यक्ष पद पर छात्रा को चुनावी दंगल में उतारने से बचते हैं। जबकि डूसू के इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं, जब छात्राओं ने अपने दम पर अध्यक्ष पद जीता है। बीते 16 सालों में सिर्फ 2008 में ही अध्यक्ष पद पर महिला प्रत्याशी की जीत हुई है।
डूसू में एनएसयूआई, एबीवीपी, आइसा, एसएफआई और अन्य वामपंथी संगठन अपने उम्मीदवारों को उतारते हैं। लेकिन मुख्य मुकाबला एनएसयूआई और एबीवीपी के बीच ही होता है। दोनों संगठन चार पदों में से एक पद उपाध्यक्ष या सचिव पद पर तो छात्रा को टिकट देते हैं, लेकिन अध्यक्ष पद पर छात्रा को चुनावी समर में उतारने से बचते हैं। वर्ष 2019 में एनएसयूआई ने ट्रेंड में बदलाव करते हुए चेतना त्यागी को अध्यक्ष पद पर उतारा था, लेकिन वह एबीवीपी के अक्षित दहिया से हार गईं थीं। वर्ष 2011 में एबीवीपी ने अध्यक्ष पद पर नेहा सिंह को उतारा, लेकिन वह भी जीत नहीं सकीं।
पूर्व में रहा है गर्ल पावर का जलवा
इससे पहले संगठन अध्यक्ष पद पर महिला उम्मीदवारों का जलवा रहा है। छात्र संगठन इन्हीं पर दांव खेलते थे और वह अध्यक्ष पद पर काबिज भी हुई हैं। वर्ष 2008 में एबीवीपी की नूपुर शर्मा ने अध्यक्ष पद पर कब्जा जमाया था। वर्ष 2005 में एनएसयूआई से रागिनी नायक अध्यक्ष पद जीती थीं। वर्ष 2006 में एनएसयूआई ने अध्यक्ष पद के लिए अमृता धवन को उतारा। उन्होंने बड़ी जीत हासिल की थी। एनएसयूआई ने वर्ष 2007 में एक बार फिर से ग्लैमर चेहरे के रूप में छात्रा अमृता बाहरी को डूसू के दंगल में उतारा था।
उन्हें भी अध्यक्ष पद पर जीत मिली। हालांकि उसके बाद एनएसयूआई ने अध्यक्ष पद पर लड़कियों को उतारने से परहेज किया। एनएसयूआई ने 12 साल बाद ट्रेंड में बदलाव करते हुए 2019 में फिर से अध्यक्ष पद के लिए महिला को उतारा। एबीवीपी ने भी 2008 तक ही अध्यक्ष पद पर छात्रा को उतारा। हालांकि वामपंथी छात्र संगठन आइसा की ओर से बीते दस सालों में वर्ष 2018 को छोड़कर छात्रा को ही अध्यक्ष पद पर उतारा है।