जलवायु परिवर्तन का असर सभी पर पड़ रहा है, लेकिन इसमें अंतर्निहित असमानताएं और असमान मुकाबला क्षमताएं कुछ लोगों को अधिक असुरक्षित बनाती हैं। महिलाओं को अधिक जोखिम है। दिहाड़ी मजदूरी कर रहे लोगों के लिए जलवायु परिवर्तन उन्हें हर दिन शारीरिक, मानसिक और आर्थिक चुनौतियों से जूझने पर मजबूर कर रहा है।
यह जानकारी मार्था फैरेल फाउंडेशन की नई रिपोर्ट में सामने आई है। ‘द इम्पैक्ट ऑफ क्लाइमेट चेंज ऑन वुमेन डोमेस्टिक वर्कर्स एंड एडोलसेंट्स इन दिल्ली’ नामक यह रिपोर्ट दिल्ली के चार समुदायों में घरों में काम करने वाली महिलाओं और किशोरों पर आधारित है।
इस सर्वेक्षण में दिहाड़ी पर काम करने वाले पहाड़ी (नूर नगर), जसोला गांव (जसोला विहार),आईजी कैंप-2 (तैमूर नगर) और नंदलाल बस्ती (मुखर्जी नगर) कि उन महिलाओं और किशोरों को शामिल किया गया है जो घरों में काम करते हुए भीषण गर्मी, बारिश और प्रदूषण की मार सहते हैं। इस दौरान जलवायु परिवर्तन के कारण इनके जीवन पर पड़ने वाले विविध प्रभावों को भी परखा गया है।
मजदूरों की मजबूरी के कारण लगातार बदतर हो रहीं समस्याएं : घरों में काम करने वाले श्रमिक जो पहले ही काफी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं । अब जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण ने उनकी आर्थिक, मानसिक और शारीरिक चुनौतियों को और बढ़ा दिया है। खासतौर पर शारीरिक परेशानियां काम करने के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा बन रही हैं।
इसके अलावा खराब बुनियादी ढांचा, सामाजिक समर्थन की कमी और असुरक्षित परिस्थितियों में काम करने की मजबूरी के कारण ये समस्याएं और बदतर हो रही हैं। इनमें से ज्यादातर दिहाड़ी मजदूर, रेहड़ी पटरी पर सामान बचने वाले या घरों में कपड़ा, बर्तन धोने जैसे घरेलू काम करने वाले मजदूर होते हैं। इनकी नौकरी की न कोई गारंटी है, न ही इन्हें सामाजिक सुरक्षा का लाभ मिलता है। काम करने के दौरान इन्हें ही सबसे ज्यादा प्रदूषण,भीषण गर्मी, लू और बाढ़ जैसी चरम मौसमी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।