राजनीति की प्राथमिक पाठशाला कहे जाने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव के दिग्गजों ने देश को भी दिशा दी है। डूसू से निकले छात्र नेताओं ने नगर निगम, विधानसभा ही नहीं बल्कि लोकसभा और राज्यसभा तक अपनी राजनीति का डंका बजाया है। इन्हीं की राह पर चलने के लिए एनएसयूआई और एबीवीपी से टिकट की दौड़ में शामिल भावी उम्मीदवार टिकट पाने के लिए कड़ी मशक्कत कर रहे हैं।
डूसू के जरिये दिल्ली से राष्ट्रीय राजनीति तक मुकाम हासिल करने की इच्छा में वह संगठन के नेताओं से लेकर राजनीतिक दलों के नेताओं की पैरवी लगाने से भी नहीं चूक रहें। 68 साल के इतिहास में डूसू ने देश को कई काबिल नेता दिए हैं। सुभाष चोपडा, अजय माकन, अरुण जेटली, पूर्णिमा सेठी और विजय गोयल कुछ ऐसे ही नाम हैं जिन्होंने डूसू के बाद राष्ट्रीय राजनीति तक कई नए मुकाम हासिल किए।
डूसू की शुरुआत वर्ष 1956 में हुई थी। तब से अब तक लगातार डूसू से नेता निकले और देश की मुख्यधारा की राजनीति में जुड़ते रहे। एनएसयूआई की ओर से अजय माकन, सुभाष चोपड़ा, हरचरण सिंह जोश, हरिशंकर गुप्ता, अल्का लांबा, नीतू वर्मा, शालू मलिक और बहुत से छात्र नेताओं ने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी चमक बिखेरी है। वहीं, वर्ष 1974 में एबीवीपी के टिकट से अरुण जेटली डूसू के अध्यक्ष बनें। छात्र राजनीति के बाद वह भाजपा से होते हुए देश की राजनीति तक पहुंचे। राज्यसभा सांसद, व केंद्रीय मंत्री भी रहें। पेशे से वकील वह दिल्ली क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहें। इसी तरह एबीवीपी से वर्ष 1978 में डूसू अध्यक्ष रहें विजय गोयल ने केंद्रीय मंत्री बनने का सफर तय किया। विजय गोयल भी तीन बार लोकसभा व एक बार राज्यसभा सांसद रहें। इसके अलावा भाजपा संगठन में महत्वपूर्ण पदों पर भी रह चुके हैं।
कांग्रेस के अजय माकन वर्ष 1986 में डूसू अध्यक्ष बने। उन्होंने डूसू से निकलकर सक्रिय राजनीति में भाग लिया। वह विधायक, दिल्ली के मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, लोकसभा के दो बार के सांसद व केंद्र सरकार में भी रहें। वहीं, 1968 में डूसू अध्यक्ष रहे हरचरण सिंह जोश ने भी सक्रिय राजनीति में भाग लिया और विधानसभा तक पहुंचे। वर्ष 1971 में डूसू अध्यक्ष बने सुभाष चोपड़ा ने भी विधानसभा तक का सफर तय किया। इसके बाद 1994 में अध्यक्ष रहीं शालू मलिक, 2001 में अध्यक्ष बनीं नीतू वर्मा ने दिल्ली नगर निगम में अपना झंडा गाड़ा जबकि 2008 में पूर्व अध्यक्ष अनिल चौधरी भी विधानसभा पहुंचे।
इन छात्र नेताओं ने भी डूसू से निकलकर बनाई पहचान
डूसू में सहसचिव बनी पूर्णिमा सेठी भी विधानसभा तक पहुंची। 2007 में गौरव खारी नगर निगम पहुंचे तो वहीं, अनिल झा ने भी विधानसभा का सफर तय किया। 1995 में एनएसयूआई के टिकट से डूसू अध्यक्ष बनीं अलका लांबा बाद में आप से विधायक बनीं फिर उन्होंने कांग्रेस का हाथ थामा। 2006 में अध्यक्ष बनीं अमृता धवन ने भी छात्र राजनीति से ही करियर को शुरु किया और पार्षद बनीं। इसी तरह डूसू अध्यक्ष बनीं रागिनी नायक इस समय एआईसीसी की राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं और एनएसयूआई से 2003 में डूसू अध्यक्ष बनें रोहित चौधरी वर्तमान में एआईसीसी के राष्ट्रीय सचिव हैं।
एबीवीपी के टिकट से 2008 में डूसू अध्यक्ष बनी नुपूर शर्मा विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के खिलाफ चुनाव लड़ी थीं, लेकिन जीत नहीं सकीं। वहीं, 2017 में एनएसयूआई के टिकट से अध्यक्ष बने रॉकी राजेंद्र नगर से विधायक का चुनाव जीत नहीं सकें। इसके अलावा भी डूसू से निकले बहुत से छात्र नेताओं ने दिल्ली और देश की राजनीति में अपना जलवा बिखेरा और खूब नाम कमाया है।
चुनाव के लिए संगठन स्तर पर प्रचार शुरू, संभावित प्रत्याशियों ने किया संवाद
नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव के लिए संगठन सक्रिय हो गए हैं। अभी संगठन स्तर पर प्रचार किया जा रहा है। इसमें छात्र संगठन कहीं कैंपेनिंग अभियान तो कहीं मार्च निकालकर छात्रों से संपर्क साध रहे हैं।
इसी कड़ी में एबीवीपी से डूसू के संभावित प्रत्याशियों ने शुक्रवार को विभिन्न जगहों पर छात्र संवाद का आयोजन कर डीयू में पढ़ने वाले छात्रों की समस्याओं को जाना तथा उनके निराकरण के लिए हर संभव प्रयास करने का आश्वासन दिया। एबीवीपी दिल्ली के प्रांत मंत्री हर्ष अत्री ने कहा कि एबीवीपी-डूसू ने दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए 365 दिन काम किया है। इस साल भी हम छात्रों के हित के लिए प्रत्येक कॉलेजों में जा रहे हैं उनकी समस्याओं को सुन रहे हैं एवं उनसे संवाद स्थापित कर रहे हैं। ब्यूरो
एनएसयूआई ने निकाला डीयू बचाओ मार्च
एनएसयूआई ने शुक्रवार को दिल्ली विश्वविद्यालय की आर्ट फैकल्टी में डीयू बचाओ मार्च का आयोजन किया। इस मार्च का नेतृत्व राष्ट्रीय अध्यक्ष वरुण चौधरी ने किया। मार्च में बड़ी संख्या में छात्र शामिल हुए। मार्च में वरुण चौधरी ने शिक्षा की बढ़ती लागत, अयोग्य नियुक्तियां, नकली डिग्री धारकों की उपस्थिति, परिसर में उत्पीड़न और स्त्री विरोधी रवैये और डर और हिंसा की बढ़ती संस्कृति जैसे प्रमुख मुद्दों को संबोधित किया। उन्होंने दावा किया कि एनएसयूआई इस बार डूसू की सभी चार सीटें जीतेगी। एनएसयूआई यह सुनिश्चित करेगी कि सभी छात्रों को एक सुरक्षित, किफायती डीयू मिले।