दिल्ली-एनसीआर में छाया प्लास्टिक का अदृश्य खतरा, यमुना और अन्य जल स्रोत भी जहरीले

भारत की राजधानी और उसके आसपास का क्षेत्र अब केवल वायु प्रदूषण या जल संकट से ही नहीं बल्कि सूक्ष्म प्लास्टिक प्रदूषण संकट से भी जूझ रहा है। जुलाई 2025 में जारी द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) की नवीनतम शोध रिपोर्ट एन्वायरनमेंटल पर्सिस्टेंस ऑफ माइक्रोप्लास्टिक्स इन अर्बन इकोसिस्टम्स में यह खुलासा हुआ है।

रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र की हवा, जल और मिट्टी में माइक्रोप्लास्टिक की सांद्रता विश्व स्वास्थ्य मानकों से काफी अधिक पाई गई है। शोध टेरी ने नीति आयोग और जर्मन सहयोगी संस्था जीआईजेड के साथ किया है। शोधकर्ताओं ने दिल्ली-एनसीआर के 12 प्रमुख शहरी व अर्ध-शहरी क्षेत्रों से हवा, पानी व मिट्टी के नमूने एकत्र किए और उन्हें एफटीआईआर व रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीकों से जांचा।

रिपोर्ट में पाया गया कि दिल्ली की हवा में प्रति घनमीटर 1.6 से 4.2 माइक्रोप्लास्टिक फाइबर मौजूद हैं। राजधानी से गुजर रही यमुना और प्रदेश के अन्य जल स्रोतों में प्लास्टिक की सांद्रता डब्ल्यूएचओ सीमा से छह गुना अधिक है।

प्रमुख स्रोत
टायर घर्षण, सिंथेटिक कपड़ों से निकले रेशे, निर्माण कार्य व प्लास्टिक कचरा। ये सूक्ष्म कण हवा, पानी और खाद्य पदार्थों के जरिये शरीर में पहुंचकर विषैले प्रभाव डाल सकते हैं। मिट्टी में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक्स सूक्ष्मजीवों को प्रभावित कर कृषि उत्पादन को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

माइक्रोप्लास्टिक्स अब समुद्री जीवन तक सीमित नहीं हैं। यह हमारे फेफड़ों, भोजन और मस्तिष्क तक पहुंच चुके हैं। यह मौन आपदा हमारे भविष्य की पीढ़ियों को प्रभावित कर सकती है। यह स्थिति स्वास्थ्य आपातकाल की तरह है, जिसे अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
- डॉ. शशि वर्मा, वैज्ञानिक टेरी

अत्यंत घातक हो चुका है प्लास्टिक प्रदूषण
रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में प्रति घनमीटर हवा में माइक्रोप्लास्टिक फाइबर का स्तर यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी (ईईए) की ओर से निर्धारित 0.8 फाइबर प्रति घनमीटर की औसत सुरक्षित सीमा से दोगुने से भी अधिक है। यमुना और अन्य जलस्रोतों में प्रति लीटर पानी में औसतन 8.5 से 12 माइक्रोप्लास्टिक कण मिले। यह डब्ल्यूएचओ के 2-3 कण/लीटर के अस्थायी सुरक्षित मानक से चार गुना अधिक है। लंदन (थेम्स नदी) में प्रति लीटर पानी में औसतन 4.4 जबकि लॉस एंजेलेस की नदियों प्रति लीटर में औसतन 5.1 माइक्रोप्लास्टिक कण पाए गए। भारत में मिट्टी के 100 ग्राम नमूनों में 350 से अधिक प्लास्टिक फाइबर पाए गए, जो भूमि की जैविक गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं। रिपोर्ट में उल्लेख है कि हवा में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक्स का औसत आकार पांच माइक्रोन से कम था, जो मानव श्वसन तंत्र में पहुंचने की क्षमता रखते हैं।

माइक्रोप्लास्टिक सूचकांक भी जरूरी
टेरी की रिपोर्ट बताती है कि भारत को सिर्फ वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) ही नहीं, बल्कि माइक्रोप्लास्टिक सूचकांक को भी भविष्य की नगर नियोजन, स्वास्थ्य और पर्यावरण नीति में शामिल करना चाहिए। ईयू, यूएसए और चीन ने इस दिशा में काम शुरू कर दिया है। भारत में गंभीर हस्तक्षेप जरूरी है।

सिफारिशें और नीतिगत सुझाव
टेरी की रिपोर्ट ने सरकार और नीति निर्माताओं के लिए कई महत्वपूर्ण सुझाव प्रस्तुत किए हैं। इनमें सबसे पहले राष्ट्रीय माइक्रोप्लास्टिक निगरानी नेटवर्क (नेशनल माइक्रोप्लास्टिक मॉनिटरिंग नेटवर्क) की स्थापना का सुझाव दिया गया है।सिंथेटिक वस्त्रों पर कर और पर्यावरण लेबलिंग प्रणाली, प्लास्टिक आधारित टायरों पर नियमन और निर्माण गतिविधियों में प्लास्टिक के उपयोग को कम करने जैसी सिफारिशें शामिल हैं।

माइक्रोप्लास्टिक संकट के लिए तत्काल उठाए जाने वाले कदम
राष्ट्रीय निगरानी ढांचा: माइक्रोप्लास्टिक की निगरानी हेतु एनएमएमएनएन की स्थापना हो।

कचरा प्रबंधन सख्त हो: नगरपालिकाओं को प्लास्टिक कचरा संग्रह, पृथक्करण और पुनर्चक्रण के लिए सहायता मिले।

ग्रीन टैक्स: सिंथेटिक वस्त्र व टायर उत्पादों पर पर्यावरण कर लगे और लेबलिंग हो।

शिक्षा में जागरूकता: स्कूल-कॉलेजों में पर्यावरण व माइक्रोप्लास्टिक पर पाठ्यक्रम जोड़े जाएं।

शोध में निवेश: माइक्रोप्लास्टिक हटाने की तकनीक, जैविक विकल्पों और पुनर्चक्रण विधियों पर अनुसंधान को प्राथमिकता दी जाए।

नागरिक भागीदारी: आरडब्ल्यूए, स्कूलों और युवाओं के माध्यम से सिंगल यूज प्लास्टिक से परहेज, स्वैच्छिक सफाई अभियान और प्लास्टिक निगरानी ड्राइव चलाई जाएं।

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