आंखें हमारी किसी नियामत से कम नहीं होती हैं, इसलिए शरीर के हर अंग की तरह आंखों का ख्याल रखना भी बेहद ज़रूरी होता है। प्रदूषण, लैपटॉप, टीवी, मोबाइल, धूल-मिट्टी, तनाव और भी ना जाने क्या-क्या, यह सब धीरे-धीरे हमारी आंखों के दुश्मन बनते चले जा रहे हैं। पहले साफ पानी के छीटों से ही आंखें तरोताज़ा हो जाती थीं, लेकिन अब आंखों को कहीं ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत है।
1 मिनट में ज्यादा पलकें झपकती हैं तो रहें सतर्क
अधिकांश लोग प्रति मिनट 15 से 20 बार पलकें झपकाते हैं। यह आपकी आंखों को ऑक्सीजन युक्त और नम रखकर और गंदगी को साफ करके स्वस्थ रहने में मदद करता है। हालांकि कुछ स्थितियां हैं जिनके कारण आपकी पलकें कम या ज्यादा बार झपकती हैं और इन्हें नजरअंदाज भी नहीं करना चाहिए। अगर 10 से ज़्यादा बार पलकें झपकती हैं तो फौरन किसी आई एक्सपर्ट से सलाह लेनी चाहिए। दरअसल, ये ब्लेफरोस्पाज्म (blepharospasm) बीमारी के लक्षण हो सकते हैं जिसमें बार-बार पलकें झपकती हैं। ऐसा करने से आंखों की मांसपेशियां सिकुड़ने लगती हैं और पलकों में दर्द भी होने लगता है।
ब्लेफरोस्पाज्म का कारण
ब्लेफरोस्पाज्म का कोई खास कारण (blepharospasm causes) नहीं है, लेकिन मस्तिष्क के काम करने के तरीके में बदलाव इसकी बड़ी वजह हो सकती है। हालांकि, इसका मेडिकल कारण ये है कि जब मस्तिष्क की गति सही नहीं होती और कंट्रोल से बाहर होती है तो ये तंत्रिका कोशिकाओं को प्रभावित करती है जिससे पलकों का झपकना बढ़ जाता है।
ये लक्षण नजर आए तो डॉक्टर से बात करें
ब्लेफेरोस्पाज्म (symptoms of blepharospasm) आमतौर पर छोटी पलकों के फड़कने से शुरू होता है जो कभी-कभार होता है। समय के साथ, फड़कन अधिक बार हो सकती है और आपकी आंखें पूरी तरह से बंद हो सकती हैं। इससे रोजमर्रा के काम करना मुश्किल हो सकता है, जैसे पढ़ना या गाड़ी चलाना। तो, ऐसी दिक्कत महसूस हो रही हो तो अपने डॉक्टर से जरूर दिखाएं।
इलाज के तौर पर ऐसे करें आंखों की एक्सरसाइज़
बाएं हाथ के अंगूठे को बिल्कुल सीधा रखते हुए बाकी अंगुलियों से मुट्ठी बंद कर लें। बाएं हाथ को कंधों की ऊंचाई तक सीधा सामने की ओर उठाकर रखें। अब आंखों को बिना झपकाए अंगूठे पर केंद्रित रखें। ऐसा कम से कम 5 बार करें।
अब बाएं हाथ को सामने से हटाकर धीरे-धीरे बायीं ओर ले जाएं। उस समय दृष्टि भी अंगूठे पर केंद्रित रखते हुए बांयी ओर ले जाएं। ध्यान रहे कि चेहरे को स्थिर रखते हुए सिर्फ आंखों को ही बायीं ओर ले जाना है। यह क्रिया दांयी ओर भी करें।
चेहरे को सामने की ओर स्थिर रखकर आंख की पुतलियों को ज़्यादा से ज़्यादा ऊपर की ओर ले जाएं। पुतलियों को तब तक ऊपर रखें, जब तक आंखों में जलन के साथ पानी न निकलने लगे। यह क्रिया नीचे, दायीं और बायीं ओर से भी करें।