जब हेमंत सोरेन ने पूछा, ‘बाबा, आपको दिशोम गुरु क्यों कहते हैं?’ ये था जवाब, बेटे की जुबानी शिबू सोरेन की कहानी

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन निधन पर बेटे हेमंत सोरेन ने भावुक संदेश के जरिए उन्हें श्रद्धांजलि दी. उन्होंने बचपन से अब तक की कई बातों का जिक्र करते हुए उनके योगदान को याद किया. झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झामुमो के संस्थापक शिबू सोरेन अब इस दुनिया में नहीं हैं. मंगलवार, 5 अगस्त को उनका अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव नेमरा (जिला रामगढ़) में पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा. 

उनके निधन से न केवल राजनीतिक जगत में शोक की लहर है, बल्कि झारखंड की आत्मा जैसे एक स्तंभ को खोने का दुख हर दिल में देखा जा रहा है. इस दुखद खबर पर बेटे और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपनी पहली प्रतिक्रिया के रूप में कहा था, “आज मैं शून्य हो गया हूं.” 

बाबा की छाया नहीं रही- हेमंत सोरेन 

शिबू सोरेन को श्रद्धांजलि देते हुए हेमंत सोरेन ने फेसबुक पर दिल छू लेने वाली बाते लिखी है. उन्होंने लिखा, “मैं अपने जीवन के सबसे कठिन दिनों से गुज़र रहा हूं.
मेरे सिर से सिर्फ पिता का साया नहीं गया, झारखंड की आत्मा का स्तंभ चला गया. मैं उन्हें सिर्फ ‘बाबा’ नहीं कहता था, वे मेरे पथप्रदर्शक थे, मेरे विचारों की जड़ें थे, और उस जंगल जैसी छाया थे जिसने हजारों-लाखों झारखंडियों को धूप और अन्याय से बचाया. मेरे बाबा की शुरुआत बहुत साधारण थी. नेमरा गांव के उस छोटे से घर में जन्मे, जहां गरीबी थी, भूख थी, पर हिम्मत थी. बचपन में ही उन्होंने अपने पिता को खो दिया. जमींदारी के शोषण ने उन्हें एक ऐसी आग दी. जिसने उन्हें पूरी जिंदगी संघर्षशील बना दिया.”

जब हेमंत सोरेन ने पूछा- आपको लोग दिशोम गुरु क्यों कहते हैं?

हेमंत सोरेन ने अपनी श्रद्धांजलि में इस बात पर ज़ोर दिया कि उनके पिता ने सत्ता को कभी उपलब्धि नहीं माना. उन्होंने लिखामैंने उन्हें देखा है. हल चलाते हुए, लोगों के बीच बैठते हुए, सिर्फ भाषण नहीं देते थे, लोगों का दुःख जीते थे. बचपन में जब मैं उनसे पूछता था: “बाबा, आपको लोग दिशोम गुरु क्यों कहते हैं?” तो वे मुस्कुराकर कहते: “क्योंकि बेटा, मैंने सिर्फ उनका दुख समझा और उनकी लड़ाई अपनी बना ली.” वो उपाधि न किसी किताब में लिखी गई थी, न संसद ने दी – झारखंड की जनता के दिलों से निकली थी. ‘दिशोम’ मतलब समाज, ‘गुरु’ मतलब जो रास्ता दिखाए. और सच कहूं तो बाबा ने हमें सिर्फ रास्ता नहीं दिखाया, हमें चलना सिखाया. 

उन्होंने कभी सत्ता को उपलब्धि नहीं माना- हेमंत सोरेन

‘बचपन में मैंने उन्हें सिर्फ़ संघर्ष करते देखा, बड़े बड़ों से टक्कर लेते देखा. मैं डरता था पर बाबा कभी नहीं डरे. वे कहते थे: “अगर अन्याय के खिलाफ खड़ा होना अपराध है, तो मैं बार-बार दोषी बनूंगा.” बाबा का संघर्ष कोई किताब नहीं समझा सकती. वो उनके पसीने में, उनकी आवाज में, और उनकी चप्पल से ढकी फटी एड़ी में था.
जब झारखंड राज्य बना, तो उनका सपना साकार हुआ पर उन्होंने कभी सत्ता को उपलब्धि नहीं माना. उन्होंने कहा: “ये राज्य मेरे लिए कुर्सी नहीं यह मेरे लोगों की पहचान है.” आज बाबा नहीं हैं, पर उनकी आवाज मेरे भीतर गूंज रही है. मैंने आपसे लड़ना सीखा बाबा, झुकना नहीं.

झारखंड को झुकने नहीं दूंगा- हेमंत सोरेन

भावुक होते हुए हेमंत ने लिखा, “मैंने आपसे झारखंड से प्रेम करना सीखा बिना किसी स्वार्थ के. अब आप हमारे बीच नहीं हो, पर झारखंड की हर पगडंडी में आप हो. हर मांदर की थाप में, हर खेत की मिट्टी में, हर गरीब की आंखों में आप झांकते हो. आपने जो सपना देखा अब वो मेरा वादा है. मैं झारखंड को झुकने नहीं दूंगा, आपके नाम को मिटने नहीं दूंगा. आपका संघर्ष अधूरा नहीं रहेगा. बाबा, अब आप आराम कीजिए. आपने अपना धर्म निभा दिया. अब हमें चलना है आपके नक्शे-कदम पर. झारखंड आपका कर्जदार रहेगा. मैं, आपका बेटा, आपका वचन निभाऊंगा. वीर शिबू जिंदाबाद – ज़िन्दाबाद, जिंदाबाद दिशोम गुरु अमर रहें. जय झारखंड, जय जय झारखंड.”

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