
जयपुर के टाउन हॉल की संपत्ति के मालिकाना हक को लेकर पूर्व राज परिवार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई को तैयार हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (2 जून) को इस बात की पड़ताल करने पर सहमति जताई कि क्या संविधान का अनुच्छेद 363 अदालतों को संविधान-पूर्व अनुबंधों के तहत उल्लिखित पूर्ववर्ती रियासतों की संपत्तियों से जुड़े विवादों की सुनवाई करने से रोकता है. अनुच्छेद 363 किसी रियासत और भारत सरकार के बीच हुई संधियों, समझौतों, अनुबंधों, सनद आदि से उत्पन्न होने वाले किसी भी विवाद में अदालतों के हस्तक्षेप को रोकता है.
दायर याचिका पर जारी किया नोटिस
इसलिए, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने जयपुर के शाही परिवार के सदस्यों राजमाता पद्मिनी देवी, उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी और सवाई पद्मनाभ सिंह के टाउन हॉल (पुरानी विधानसभा) और पुराने शहर में स्थित और संपत्तियों के कब्जे को लेकर दायर याचिका पर नोटिस जारी किया.
उन्होंने राजस्थान हाई कोर्ट के उस निर्णय को चुनौती दी है, जिसमें कहा गया था कि तत्कालीन रियासत और भारत संघ के बीच हुए समझौते में उल्लिखित टाउन हॉल (पुरानी विधानसभा) पर कब्जे की मांग करने वाले मुकदमों पर संविधान के अनुच्छेद 363 के तहत दीवानी अदालतों के लिए विचार नहीं किया जा सकता.
17 अप्रैल को आया विवादित निर्णय
राजपरिवार के सदस्यों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने दलील दी कि सवालों के दायरे में आया समझौता पांच राजकुमारों ने किया था, जबकि भारत सरकार केवल यह सुनिश्चित करने के लिए एक गारंटर थी कि शर्तें पूरी हों. उन्होंने बताया कि हाई कोर्ट के समक्ष कार्यवाही में इस पहलू पर बहस नहीं की गई, जिसके परिणामस्वरूप 17 अप्रैल को एक विवादित निर्णय आया.
हालांकि, जस्टिस मिश्रा ने साल्वे से पूछा कि अगर भारत सरकार पक्षकार नहीं थी, तो भारत संघ के साथ विलय कैसे हुआ. साल्वे ने स्पष्ट किया कि विलय औपचारिक समझौता होने के बाद हुआ और संविधान के अनुच्छेद एक के लागू होने के साथ ही यह प्रभावी हुआ.
अनुच्छेद 363 लागू नहीं होगा- जस्टिस मिश्रा
जस्टिस मिश्रा ने कहा कि साल्वे की दलीलों के मुताबिक, इसका मतलब यह होगा कि अगर भारत संघ अनुबंध का पक्षकार नहीं है और इसलिए अनुच्छेद 363 लागू नहीं होगा, तो स्थिति अनिवार्य रूप से हर दूसरे शासक को मुकदमा दायर करने और अपनी संपत्ति वापस मांगने के लिए प्रेरित करेगी.
साल्वे ने कहा कि मुकदमा दायर करना और (संपत्ति पर) अधिकार होना दो अलग-अलग बातें हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं का मामला उन संपत्तियों पर स्वामित्व का दावा करने का नहीं है, जो अनुच्छेद 363 के बावजूद अनुबंध के मुताबिक संवैधानिक रूप से राज्य के पास निहित हैं.
साल्वे की दलीलों से असहमत जस्टिस मिश्रा ने कहा, ‘‘कल, आप कहेंगे कि पूरा जयपुर आपका है. इस तरह हर रियासत आगे आएगी और स्वतंत्रता की घोषणा करेगी.’’ पीठ ने मामले की विस्तार से सुनवाई करने पर सहमति जताई और राजस्थान सरकार को नोटिस जारी किया और कहा कि इस मामले में दो और मुकदमे दायर किए जाने की संभावना है.
इस मुद्दे को आगे नहीं ले जाएगी राज्य सरकार
राजस्थान सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा ने कहा कि मामले की लंबी अवधि को देखते हुए राज्य सरकार इस मुद्दे को आगे नहीं ले जाएगी और विवादित संपत्तियों पर यथास्थिति बनाए रखेगी.
शर्मा का बयान दर्ज करने के बाद पीठ ने मामले की सुनवाई आठ हफ्ते बाद के लिए टाल दी. यह मामला जयपुर के पूर्व राजपरिवार और राज्य सरकार के बीच लंबे समय से चले आ रहे संपत्ति विवाद से संबंधित है.