उम्मीद,वादे और चुनौतियां… यूं नहीं ही BJP हाईकमान ने लगाई रेखा गुप्ता के नाम मुहर

रेखा गुप्ता का नाम बीजेपी हाई कमान पहले ही तय कर चुकी थी. एलान करने में जरूर वक्त लगा. इसे ऐसे भी मान सकती है कि बीजेपी ने जिस वक्त एलान करने का सोचा था, उस वक्त रेखा गुप्ता का नाम सार्वजनिक किया. ऐसे में जरूर ये सवाल उठ रहा है कि आखिर रेखा गुप्ता को क्यों चुना गया? ऐसी कई वजहें हैं, जिसके चलते रेखा गुप्ता के नाम को प्राथमिकता दी गई है.

दिल्ली में बीजेपी के सामने आतिशी के मुख्यमंत्री बनने के बाद नई चुनौती सामने आई. एक अच्छी महिला को मुख्यमंत्री बनाना था. उनको चुनने के लिए अंदर ही अंदर काफी मशक्कत करनी पड़ी. चुनाव से पहले नाम तय नहीं किया जा सकता था क्योंकि ये किसी को मालूम नहीं था कि कौन जीतकर आएगा, कौन जीत के नहीं आएगा. मगर जीत के आने के बाद रेखा गुप्ता की अगुवाई में जिस तरह से दिल्ली कैबिनेट का गठन किया गया, उस पर अगर गौर करेंगे तो आप पाएंगे कि कई तरह से उसकी बैलेंसिंग की गई है.

वो चाहे बात जाति की हो, क्षेत्र की. दिल्ली से दूर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार में आने वाले चुनावों की रणनीति की तैयारी और इंडिया गठबन्धन के सहयोगी पीडीए के फॉर्मूले के काट के तौर पर सात सदस्यीय मंत्रिमंडल बनाकर उसे साधने की कोशिश. सवाल ये भी उठता है कि आखिर रेखा गुप्ता में सबसे बड़ी खासियत क्या रही है?

रेखा गुप्ता की खासियत?

रेखा गुप्ता की खासियत ये है कि वो न सिर्फ एक महिला नेता हैं बल्कि एबीवीपी की कार्यकर्ता, दक्षिणी निगर निगम की मेयर रही है. उनका तजुर्बा एमसीडी चुनाव को लेकर शानदार रहा है. ये बात सही है कि 2015 के चुनाव में बीजेपी ने उन्हें अपना कैंडिडेट नहीं बनाया था. लेकिन, इस बार जब रेखा गुप्ता चुनकर आयी हैं तो लोगों का कहना है कि उन्हें ये तोहफा दिया गया है. ये बातच भी सही है कि वैश्य समुदाय के लोग जो केजरीवाल को वोट करते थे, उन्हें भी जोड़ना और तोड़ना था. बीजेपी इन सबका जवाब रेखा गुप्ता में ढूंढ़ रही थी. सवाल है कि बीजेपी ने और क्या खास किया. दिल्ली कैबिनेट में सिरसा को चुना गया. वो एक सिख संप्रदाय से आते हैं. पंजाब में जब चुनाव होगा तो सिरसा के बहाने बीजेपी ने अपनी कैंपेनिंग शुरू कर दी है. एक दलित नेता को भी दिल्ली कैबिनेट में चुना गया है. बीजेपी को दलितों को साथ लेकर चलने की बहुत जरूरत है.

आम आदमी पार्टी के साथ मुस्लिम, दलित और बनिया का समीकरण काफी सफल रहा और बीजेपी के लिए घातक रहा. ऐसे में आम आदमी पार्टी के कई जवाब उन्होंने रेखा गुप्ता में ढूंढने का प्रयास किया. इसमें एक पूरबिया भी है- पंकज सिंह. पूरबिया वोट यूपी और बिहार के लिए बहुत मायने रखता है और उसे भी साधने की कोशिश की गई. 

क्षेत्रवार और जातिगत समीकरण

दूसर तरफ जाट को साधने के लिए दिल्ली कैबिनेट में प्रवेश वर्मा को जगह दी गई है. हालांकि, दक्षिणी दिल्ली का प्रतिनिधित्व इस बार के दिल्ली कैबिनेट में नहीं दिख रहा है. दक्षिण दिल्ली में वैसे तो हर तबके के लोग हैं, पंजाब भी है, सूद जी को चुनाव गया वह पंजाबियों का ही प्रतिनिधित्व करेंगे. लेकिन, जातिगत समीकरण की अगर बात करें तो गुर्जरों का दक्षिण दिल्ली में काफी प्रभाव है. उनका कोई प्रतिनिधित्व मंत्रिमंडल में नहीं है.

नए मुख्यमंत्री के साथ सबसे बड़ी चुनौती ये है कि तीन संकल्प पत्रों को जिस तरह से प्रस्तुत किया गया, उसका जवाब देना है, उन सारे चैलेंजेस को स्वीकार करना है. उन सभी चुनौतियों को लागू करना है. जिसमें महिलाओं को 2500 रुपये देने की बात है. फ्रीबीज को कैसे रखा जाए, इस पर भी आगे देखना है.बीजेपी को एक सवाल और ले लेना चाहिए कि डीजल की गाड़ियों पर से रोक हटाई जाए. जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप खुद डीजल और पेट्रोल की गाड़ियों पर रोक हटा सकते है और ये एक बड़ा वैश्विक फैसला है तो दिल्ली में भी डीजल गाड़ियों से रोक हटनी चाहिए. खासकर कारों के उपर लगी रोक को. क्योंकि अब आ रहा डीजल काफी साफ सुथरा है. उससे प्रदूषण नहीं होता है और यूरोप भी डीजल का आयात भारत से कर रहा है.

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