कश्मीर में कार बम विस्फोट करने का सिलसिला पुराना है

पिछले ढाई दशक के दौरान कश्मीर घाटी से निकला कार के जरिए विस्फोट करने का ट्रेंड अब दिल्ली तक पहुंच चुका है। वर्ष 2001 में श्रीनगर में सचिवालय के पास और दूसरी बार कार बम का सबसे भीषण प्रयोग आतंकियों ने फरवरी 2019 में पुलवामा में किया था।

इस हमले में 40 से ज्यादा जवान बलिदान हुए थेे। इसी हमले के बाद भारतीय सेना ने एयर स्ट्राइक कर पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद कर दिया था। कश्मीर संभाग में पिछले 25 साल के दौरान करीब एक दर्जन आतंकी हमलों में कार या किसी अन्य वाहन का बम के तौर पर इस्तेमाल किया गया है। इनमें से तीन फिदायीन कार हमले थे। कश्मीर में सबसे पहला आत्मघाती कार बम विस्फोट 2001 में श्रीनगर सचिवालय के बार हुआ था। आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने इसकी जिम्मेदारी ली थी। इस आत्मघाती कार बम विस्फोट में 38 लोगों की मौत हो गई थी और 40 से ज्यादा निर्दोष घायल हुए थे।

इस हमले के करीब चार साल बाद 13 जून 2005 को पुलवामा में एक सरकारी स्कूल के सामने भीड़ भरे बाजार में विस्फोटकों से लदी एक कार में विस्फोट हुआ था। हमले में दो स्कूली बच्चों सहित 13 नागरिक और तीन सीआरपीएफ अधिकारी मारे गए थे। 100 से अधिक लोग घायल हो गए। इस हमले की भी जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी।

आतंकियों ने तीसरी बार कार बम का सबसेे विध्वंसकारी प्रयोग करीब 14 साल बाद पुलवामा में ही किया। 14 फरवरी 2019 को जम्मू से श्रीनगर जा रहे सीआरपीएफ के काफिले पर जैश के आत्मघाती आतंकी आदिल अहमद डार ने तीन क्विंटल से ज्यादा विस्फोटकों से लदी कार से हमला किया। हमले में 40 जवान शहीद हो गए थे। 2001 के बाद यह कश्मीर में दूसरा सबसे घातक कार बम से किया गया हमला था।
2001 में श्रीनगर सचिवालय के पास कार बम धमाके में 36 लोग मारे गए थे
2005 में पुलवामा में स्कूल के पास धमाके में 13 लोगों की गई थी जान
फरवरी 2019 में पुलवामा में कार बम की चपेट में आए 40 सीआरपीएफ जवान हुए थे बलिदान
तीनों हमलों की आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी जिम्मेदारी

ज्यादा नुकसान करने का जरिया बना कार बम
गोलीबारी कर या फिर बाइक व अन्य किसी वाहन से हमला करने की बजाए कार बम का प्रयोग काफी नुकसान पहुंचाता है क्योंकि इसमें कई क्विंटल विस्फोटक एक जगह से दूसरे जगह ले जाने में काफी आसानी होती है और विस्फोट करने पर व्यापक जानमाल की हानि होती है। कुछ पूर्व सैन्य अधिकारी कहते हैं ऐसे हमलों में अक्सर सिर्फ कार चलाने वाला ही मारा जाता है जबकि आमने-सामने की गोलीबारी मेंं आतंकी सेना के सामने टिक नहीं पाते हैं। जवान उन्हें छलनी कर देते हैं। इसीलिए अपने एक साथी को गंवा कर वह व्यापक नुकसान करने का माध्यम कार बम को अपनाते हैं।

कार बम से विस्फोट कर आतंकी ज्यादा नुकसान पहुंचाने की सोच रखते हैं। दिल्ली में लाल किले पर हुए विस्फोट में भी यही हुआ है। सुरक्षा एजेंसियों की सतर्कता काम आई और धमाका करने के लिए तैयार की जा रही 32 कारों को समय से पहले ही ट्रैक कर खतरनाक मंसूबे नाकाम कर दिए गए। सेना व जम्मू-कश्मीर पुलिस मुंहतोड़ जवाब दे रही है।

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