
जस्टिस यशंवत वर्मा ने इन हाउस कमेटी के गठन, जांच रिपोर्ट और उन्हें पद से हटाए जाने के लिए पूर्व सीजेआई की ओर से राष्ट्रपति को भेजी गई सिफारिश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
जस्टिस यशवंत वर्मा ने याचिका में इन हाउस कमेटी के गठन, रिपोर्ट और पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की ओर से उन्हें पद से हटाए जाने की सिफारिश का विरोध किया था, जिसे लेकर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा से कड़े सवाल किए थे. कोर्ट ने पूछा था कि अगर वह जांच करने वाली इन हाउस कमेटी को अवैध मानते थे, तो उसके सामने पेश क्यों हुए या उसी समय कोर्ट क्यों नहीं आए और वह ये सब दलीलें तब दे रहे हैं जब कमेटी की रिपोर्ट उनके खिलाफ आई है. अपने खिलाफ रिपोर्ट आने के बाद कमेटी को अवैध कहना क्यों शुरू किया?
वीडियो-फोटो अपलोड करने को सुप्रीम कोर्ट ने माना गलत
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि जस्टिस वर्मा की याचिका खारिज करते हुए कहा कि जांच कमेटी के गठन में कोई कानूनी कमी नहीं थी. हालांकि, कोर्ट ने माना कि उनके घर पर मिले जले हुए कैश का वीडियो अपलोड करना गलत हो सकता है, लेकिन कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने तब उसका विरोध नहीं किया. न ही अपनी याचिका में इसे उठाया. जस्टिस यशवंत वर्मा के वकील कपिल सिब्बल ने सुनवाई के दौरान जस्टिस वर्मा के घर पर जला हुआ कैश मिलने का वीडियो सार्वजनिक किए जाने का विरोध किया था. उन्होंने कहा था, ‘माहौल पहले ही उनके खिलाफ बना दिया गया. ऐसा खुद तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने किया. उन्होंने सिर्फ इतना ही नहीं किया, कमेटी की रिपोर्ट के बाद जज को पद से हटाने की सिफारिश भी राष्ट्रपति को भेज दी.’
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा को दी भविष्य में कार्यवाही करने की इजाजत
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ‘मुख्य न्यायाधीश और इन-हाउस कमेटी ने वीडियो और फोटो अपलोड करने के अलावा पूरी प्रक्रिया का ईमानदारी से पालन किया और हमने कहा है कि वीडियो या फोटो अपलोड करने की जरूरत नहीं थी, लेकिन अब इस पर कुछ नहीं हो सकता क्योंकि याचिकाकर्ता ने तब इस पर आपत्ति नहीं जताई. हमारा मानना है कि सीजेआई की ओर से प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को सिफारिश भेजना असंवैधानिक नहीं था. हमने कुछ टिप्पणियां की हैं, जिसके साथ हमने यह विकल्प खुला रखा है कि भविष्य में अगर जरूरत हो तो आप कार्यवाही कर सकते हैं. इसके साथ हम आपकी याचिका खारिज करते हैं.’
क्या है मामला?
इस साल 14 मार्च को दिल्ली में जस्टिस यशवंत वर्मा के घर पर आग लगी थी, तब आग बुझने आए पुलिस और दमकल कर्मियों को वहां बड़ी मात्रा में जला हुआ कैश दिखा. उस समय जस्टिस वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट में जज थे. इस विवाद के बाद जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर इलाहाबाद हाईकोर्ट कर दिया गया था और उन्हें न्यायिक कार्य से भी अलग कर दिया गया. वह जज तो हैं, पर किसी मामले की सुनवाई नहीं कर सकते.
22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना ने मामले की जांच के लिए तीन जजों की जांच कमेटी गठित की थी, जिसके अध्यक्ष पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू थे. उनके अलावा हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जी एस संधावलिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जज अनु शिवरामन भी कमेटी में शामिल थीं.
जांच कमेटी ने 4 मई को अपनी रिपोर्ट तत्कालीन चीफ जस्टिस को दी, जिसमें जस्टिस यशवंत वर्मा को दुराचरण का दोषी माना गया. 8 मई को सीजेआई ने रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को आगे की कार्रवाई के लिए भेज दी. इसके बाद जस्टिस वर्मा को पद से हटाने के लिए संसद में प्रस्ताव लाए जाने की चर्चा होने लगी.