एलन मस्क की कंपनी स्टारलिंक को भारत में मिला लाइसेंस, अब भारत में भी सैटेलाइट से सरपट भागेगी इंटरनेट की स्पीड

 एलन मस्क की कंपनी स्टारलिंक को भारत के दूरसंचार मंत्रालय से लाइसेंस मिल चुका है. अब देश के दूर-दराज के इलाकों में मिलेगी हाई सपीड इंटरनेट सर्विस. एलन मस्क की कंपनी स्टारलिंक को भारत के दूरसंचार मंत्रालय से लाइसेंस मिल चुका है. इससे अब जल्द ही देश के दूर-दराज के इलाकों में सैटेलाइट बेस्ड हाई स्पीड इंटरनेट सर्विस पहुंचाई जाएगी. इससे पहले भारती एयरटेल के वनवेब और रिलायंस जियो को भारत में सैटेलाइट-बेस्ड सर्विसेज देने की मंजूरी मिल चुकी है. CNBCtv18 की रिपोर्ट के मुताबिक, इस क्रम में अब स्टारलिंक तीसरी कंपनी बन गई है. 

कंपनी को जारी किए जाएंगे ट्रायल स्पेक्ट्रम

दूरसंचार विभाग (DoT) की तरफ से स्टारलिंक को ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्युनिकेशन बाय सैटेलाइट (GMPCS) परमिट भी दे दी गई है. अब आने वाले समय में कंपनी को ट्रायल स्पेक्ट्रम भी जारी किए जाएंगे. स्पेक्ट्रम अलॉटमेंट के बाद कंपनी को सुरक्षा शर्तों सहित सभी अनुपालन सरकार के पास जमा कराने होंगे. हालांकि, भारत में सैटेलाइट टेलीकॉम सेवाएं शुरू करने से पहले कंपनी को स्पेस रेगुलेटर इंडियन नेशनल स्पेस प्रोमोशन एंड अथॉराइजेशन सेंटर (IN-SPACe) से भी अप्रूवल लेनी होगी. कंपनी ने पहले ही इसके लिए सारे डिटेल्स दे दिए हैं, लेकिन अभी तक मंजूरी नहीं मिली है. 

भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण की सिफारिशों के बाद अब DoT को स्पेक्ट्रम अलॉटमेंट की प्राइसिंग और इससे जुड़े नियम फाइनल करने हैं. ट्राई ने सैटेलाइट कम्युनिकेशन के लिए स्टारलिंक जैसी कंपनियों पर 4 परसेंट AGR लगाने की बात की है. इसके अलावा, TRAI ने स्पेक्ट्रम अलॉटमेंट नीलामी के बजाय प्रशासनिक तरीके से करने की भी सिफारिश की है ताकि स्टारलिंक जैसे दूसरे सैटेलाइट सर्विसेज प्रोवाइडर्स को स्पेक्ट्रम जल्दी मिल सके और उनका नेटवर्क जल्द से जल्द शुरू हो सके. 

बांग्लादेश में स्टारलिंक का ऑपरेशन शुरू 

हाल ही में बांग्लादेश में स्टारलिंक की सर्विसेज की शुरुआत हुई, जिसके इस्तेमाल के लिए हर महीने लगभग 4,200 टका (2,990 रुपये)  और डिवाइस खरीदने के लिए एक बार के 47,000 टका (लगभग 33,000 रुपये) देने होंगे. स्टारलिंक इसलिए खास है क्योंकि मोबाइल नेटवर्क के जवाब देने के बाद भी इसकी सर्विसेज चलती रहती है. ऐसा इसलिए क्योंकि यह इंटरनेट के लिए जमीन पर लगे मोबाइल टावरों पर निर्भर नहीं, बल्कि स्टालिंक पृथ्वी की सबसे निचली कक्षा यानी कि लो अर्थ आर्बिट में अपने सैटेलाइट नेटवर्क के इस्तेमाल से इंटरनेट सर्विस देती है. पृथ्वी से करीब 550 KM की ऊंचाई पर मौजूद LEO में स्टारलिंक SpaceX के 7,000 से भी ज्यादा सैटेलाइट तैनात किए गए हैं, जिसे आगे 12,000 सैटेलाइट्स तक बढ़ाने का प्लान है.    

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