दिल्ली के स्कूलों में पढ़ने वाले 13 फीसदी बच्चे दूर का नहीं देख पाते। इसके कारण बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। एम्स ने हाल ही में दिल्ली के पांच स्कूलों में पढ़ने वाले 3540 बच्चों पर एक अध्ययन किया।
इन बच्चों की स्क्रीनिंग करने के दौरान 419 बच्चों को आगे की जांच के लिए भेजा गया। इनमें से 300 बच्चों को चश्मा लगाने की सलाह दी गई। लेकिन आर्थिक कारणों से यह बच्चे चश्मा खरीदने में सक्षम नहीं हो पाए। बाद में सामुदायिक नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. आरपी सेंटर एम्स नई ने एनजीओ के सहयोग से इन्हें चश्मा उपलब्ध कराया। अध्ययन करने वाले डॉक्टर ने बताया कि एक चश्मा किसी बच्चे की जिंदगी बदल सकता है।
भारत में स्कूल जाने वाले बच्चों में नेत्र संबंधी रुग्णता और दृष्टि दोष तेजी से बढ़ रहा है। ये स्कूली बच्चे अक्सर ब्लैकबोर्ड पढ़ने में परेशान होते हैं। इन्हें सिरदर्द होता है। अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते। इनमें से अधिकांश बच्चे अक्सर अपनी समस्याओं को अनदेखा करते हैं। बोर्ड के पास बैठकर खुद को समायोजित करते हैं। इससे शैक्षणिक प्रदर्शन में कमी आ सकती है और जीवन की गुणवत्ता में समग्र गिरावट आ सकती है। दिल्ली के स्कूलों के अध्ययन से पता चला है कि 13.1% छात्रों में मायोपिया का सुधार नहीं हुआ है।
चश्मे के साथ अपवर्तक त्रुटियों का समय पर पता लगाना और सुधार करना बच्चे के शैक्षणिक प्रदर्शन और जीवन की गुणवत्ता को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकता है। यह बच्चों को कक्षा की गतिविधियों में पूरी तरह से शामिल होने, एकाग्रता, आत्म-सम्मान और सामाजिक संपर्क में सुधार करने में सक्षम बनाती है। इस वर्ष, विभाग का लक्ष्य अपने स्कूल दृष्टि जांच कार्यक्रम के माध्यम से दिल्ली में 1 लाख स्कूली बच्चों की आखों की जांच करना है।