उत्तराखंड में पिछले 10 सालों की आपदाओं से हजारों लोगों की मौत, देवभूमि में हुआ भारी नुकसान

Uttarakhand News: आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड में पिछले 10 सालों में प्राकृतिक आपदाओं की वजह से 3800 से अधिक लोगों की मौत हुई है. 312 लोग अभी तक लापता हैं.
उत्तराखंड में पिछले 10 सालों से प्राकृतिक आपदाओं का एक बड़ा दौर जारी है जो साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है. इसकी गवाही राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़े दे रहे हैं. इन आंकड़ों के अनुसार, साल 2015 से लेकर 20 सितंबर 2025 तक उत्तराखंड में कुल 27,197 आपदा से संबंधित घटनाएं प्रदेश में हुई हैं. इन घटनाओं में अब तक कुल 3839 लोगों ने जान गंवाई है, जबकि 6,207 लोग घायल हुए हैं. वहीं 312 लोग अभी तक लापता हैं.

आंकड़ों के मुताबिक, आपदा से संबंधित सबसे अधिक घटनाएं क्लाउड बर्स्ट या फिर फ्लैश फ्लड की हुई हैं जिनकी संख्या 14,237 रही है. वहीं 5830 घटनाएं लैंडस्लाइड की हुई हैं. पहाड़ी राज्य की बदलती भौगोलिक परिस्थितियों और बदलते जलवायु पैटर्न ने इन आपदाओं की तीव्रता को और बढ़ा दिया है.

साल दर साल बढ़ती आपदाओं की संख्या

आंकड़े बताते हैं कि साल 2015 में जहां आपदाओं की कुल संख्या 224 रही, वहीं 2018 में यह बढ़कर 5056 पहुंच गई और इसी साल क्लाउडबर्स्ट और बाढ़ की 3706 घटनाएं दर्ज की गई थी. वहीं, इसी दौरान सैकड़ों लोग भी मारे गए और हजारों लोग इस आपदा से प्रभावित हुए.

इस साल अब तक 260 लोगों की आपदा से मौत

बताया गया कि वर्तमान में वर्ष 2025, 20 सितंबर तक की अगर बात करें, तो अब तक 1199 घटनाएं प्राकृतिक आपदा की हो चुकी हैं. इनमें से 700 घटनाएं क्लाउडबर्स्ट और बाढ़ की हैं, जबकि 1034 भूस्खलन से संबंधित मामले दर्ज किए गए हैं. इस साल तक 260 लोग इन आपदाओं के कारण मारे जा चुके हैं, जबकि 566 लोग घायल हो चुके हैं. 96 लोग अभी भी लापता बताए जा रहे हैं.

ये जिले हैं सबसे ज्यादा आपदा से प्रभावित

प्राकृतिक आपदाओं से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले जिलों में पिथौरागढ़, चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, टिहरी, पौड़ी और चंपावत जैसे पहाड़ी जिले हैं. इन तमाम जिलों में हो रही भूस्खलन, अचानक आने वाली बाढ़, क्लाउड बर्स्ट लोगों का जीवन तहस-नहस कर रहे हैं. पूरे के पूरे गांव लोगों को खाली करना पड़ रहे हैं.

विशेषज्ञों ने आपदा के लिए किसे ठहराया जिम्मेदार?

वहीं, इन घटनाओं को लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य में हो रहे अनियंत्रित सड़क निर्माण, जलवायु परियोजनाओं और बड़े पैमाने पर वृक्षों की कटाई ने प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ा है. इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के चलते मानसून का पैटर्न भी असामान्य हो गया है. नतीजतन, कहीं अचानक होने वाली अत्यधिक बारिश तो कहीं लंबे समय तक सूखा पड़ता है. पिछले 10 सालों के आंकड़े साफ करते हैं कि उत्तराखंड आज आपदा के स्थाई खतरे की चपेट में है. राज्य सरकार/आपदा प्रबंधन एजेंसी के लिए यह बड़ा संकेत है कि समय रहते ठोस कदम उठाए जाएं ताकि आने वाले सालों में प्रदेश की स्थिति में सुधार आए. प्रदेश में चलने वाली चार धाम यात्रा में आने वाले तमाम यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके और प्रदेश में होने वाले तमाम विकास कार्य को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही किया जाए.

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