
गंगाघाटी के धराली से लेकर हर्षिल तक हल्की बारिश में ही लोगों की रूह कांप रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह है हर्षिल में भागीरथी नदी पर बनी झील। झील नहीं तोड़े जाने से हर्षिल और बगोरी के लोग सहमे हुए हैं। हालांकि झील से पानी का रिसाव हो रहा है लेकिन उससे दोगुना उसमें प्रतिदिन आ रहा है। ऐसे में झील का आकार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।
पांच अगस्त को धराली में खीरगंगा के साथ तेलगाड में भी भारी मात्रा में मलबा आया था जिससे सेना के बेस कैंप को भी नुकसान हुआ था। साथ ही हर्षिल में भागीरथी पर झील बन गई थी। आपदा के दस दिन बाद भी झील नहीं तोड़े जाने से हर्षिल और बगोरी के लोग सहमे हुए हैं। मुखबा गांव के राजेश सेमवाल बताते हैं कि झील अब तक करीब 500 मीटर लंबी और डेढ़ सौ मीटर चौड़ी हो गई है।
राजेश बताते हैं कि हर्षिल बाजार ब्रिटिशकाल का बसाया हुआ है। इस बाजार पर क्षेत्र के आठ गांवों के लोग निर्भर हैं। इसके अलावा बगोरी गांव में भोटिया जनजाति के लोग रहते हैं। इन लोगों को वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान जादुंग गांव से यहां बसाया गया था। तब से यहां के लोग सेब, राजमा और ऊनी कपड़ों का कारोबार करते हैं जिनकी मांग देश ही नहीं विदेशों में भी है। इसके अलावा गांव वालों के होमस्टे, होटल और 18वीं सदी का लक्ष्मी-नारायण मंदिर भी गांव में ही स्थित है। ऐसे में लोगों को अब झील को जल्द नहीं तोड़े जाने पर अपने साथ-साथ पौराणिक धरोहर की चिंता भी सता रही है।
झील खोलने का किया जा रहा है प्रयास
हर्षिल में भागीरथी नदी में बनी झील को खोलने के लिए एसडीआरएफ, यूजेवीएनएल और सिंचाई विभाग की ओर से गैंती-सब्बल के माध्यम से खोलने का प्रयास किया जा रहा है। हर्षिल झील में मंगलवार से लगातार जलस्तर बढ़ रहा है। हालांकि झील से कुछ रिसाव भी हो रहा है।