
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक नौकरी के लिए निर्धारित प्रवेश परीक्षा या साक्षात्कार प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है. इस प्रक्रिया में पूर्ण ईमानदारी बरती जा रही है.सुप्रीम कोर्ट ने एक सरकारी भर्ती परीक्षा में फर्जी उम्मीदवार का इस्तेमाल करने के आरोपी दो व्यक्तियों की जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि यह अपराध लोक प्रशासन और कार्यपालिका में लोगों के विश्वास को कम करता है.
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्ला की पीठ ने राजस्थान हाईकोर्ट के जमानत आदेश को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की अपील को स्वीकार कर लिया.
बेंच ने कहा, ‘हम इस तथ्य से अवगत हैं कि एक बार जमानत दिए जाने के बाद उसे सामान्यतः रद्द नहीं किया जाता है और हम इस दृष्टिकोण का पूरी तरह से समर्थन करते हैं. हालांकि, यहां अपनाया गया दृष्टिकोण प्रतिवादी-आरोपी के कथित कृत्यों के समग्र प्रभाव और समाज पर इसके प्रभाव को ध्यान में रखते हुए लिया गया है.’अदालत ने कहा कि वास्तव में भारत में उपलब्ध नौकरियों की तुलना में सरकारी नौकरी चाहने वालों की संख्या कहीं अधिक है. प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि इंद्राज सिंह नामक व्यक्ति ने सहायक अभियंता सिविल (स्वायत्त शासन विभाग) प्रतियोगी परीक्षा 2022 की शुचिता से समझौता किया क्योंकि उसकी ओर से एक ‘डमी (फर्जी) उम्मीदवार’ परीक्षा में शामिल हुआ.
उपस्थिति पत्रक के साथ कथित तौर पर छेड़छाड़ की गई थी और फर्जी अभ्यर्थी की तस्वीर मूल प्रवेश पत्र पर चिपका दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने सात मार्च के अपने आदेश में आरोपियों को दो सप्ताह के भीतर संबंधित अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया.
आदेश में कहा गया है कि प्रत्येक नौकरी के लिए निर्धारित प्रवेश परीक्षा या साक्षात्कार प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है. बेंच ने कहा, ‘इस प्रक्रिया में पूर्ण ईमानदारी बरती जा रही है, जिससे जनता में इस बात का विश्वास और अधिक बढ़ गया है कि जो लोग इन पदों के वास्तविक हकदार हैं, उन्हें ही इन पदों पर बिठाया गया है.’ कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादियों द्वारा कथित रूप से किया गया कृत्य लोक प्रशासन और कार्यपालिका में लोगों के विश्वास कम कर सकता है.