विजय शाह को गिरफ्तारी से राहत, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- SIT बनाएं और 28 मई तक दें स्टेटस रिपोर्ट

चारधाम यात्रा क्षेत्र की ऊंची पहाड़ियां, संकरी घाटियां, पल-पल बदलता मौसम और घना वन क्षेत्र हेलिकॉप्टर संचालन को अत्यंत संवेदनशील बनाते हैं. चारधाम यात्रा क्षेत्र में लगातार हो रही हेलिकॉप्टर दुर्घटनाओं ने हवाई सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. बीते दस दिनों के भीतर उत्तराखंड के तीर्थ क्षेत्रों में तीन हेलिकॉप्टर हादसे हो चुके हैं, जिनमें छह लोगों की मौत हो चुकी है. इन घटनाओं के बाद भी शासन-प्रशासन और नागरिक उड्डयन विभाग की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है, जिससे तीर्थ यात्रियों और स्थानीय लोगों में भारी रोष है.

चारधाम यात्रा के दौरान देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु उत्तराखंड आते हैं और कठिन पर्वतीय मार्गों से बचने के लिए हेलिकॉप्टर सेवा का सहारा लेते हैं. हालांकि, लगातार हो रही घटनाएं इन सेवाओं की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर संदेह पैदा कर रही हैं. 8 मई को सबसे गंभीर दुर्घटना उत्तरकाशी जिले के गंगनानी क्षेत्र में हुई, जहां एक सात सीटर चार्टर्ड हेलिकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया. इस हादसे में पायलट रोबिन समेत सभी छह लोगों की मौके पर ही मौत हो गई. यह हेलिकॉप्टर निजी कंपनी की सेवा के तहत उड़ान भर रहा था.

10 दिन में तीन हेलीकॉप्टर हादसे

इसके कुछ ही दिन बाद, 12 मई को बदरीनाथ में थंबी एविएशन कंपनी का एक हेलिकॉप्टर हेलिपैड पर फिसल गया. उस समय हेलिकॉप्टर में पायलट सहित छह लोग सवार थे, लेकिन सौभाग्य से किसी की जान नहीं गई क्योंकि उड़ान भरने से पहले ही हेलिकॉप्टर असंतुलित होकर फिसल गया. तीसरा हादसा शनिवार को केदारनाथ में हुआ, जहां एक हेली एंबुलेंस को टेल रोटर में खराबी के चलते आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी. इस हादसे में पायलट और अन्य दो लोग सुरक्षित रहे, लेकिन यह घटना एक और बड़े हादसे की आशंका को जन्म दे गई. इन हादसों की तकनीकी जांच तो की जा रही है, लेकिन पर्वतीय क्षेत्र की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में सुरक्षित हवाई संचालन के लिए लंबे समय से कोई स्थायी नीति नहीं बनाई गई है. स्थानीय लोगों और यात्रा से जुड़े संगठनों का कहना है कि हेलिकॉप्टर सेवाओं का बढ़ता उपयोग जरूरी है, लेकिन जिस तरह से सुरक्षा मानकों की अनदेखी हो रही है, वह भविष्य में और बड़ी त्रासदी का कारण बन सकता है.

चारधाम यात्रा क्षेत्र की ऊंची पहाड़ियां, संकरी घाटियां, पल-पल बदलता मौसम और घना वन क्षेत्र हेलिकॉप्टर संचालन को अत्यंत संवेदनशील बनाते हैं. बावजूद इसके, नागरिक उड्डयन विभाग या राज्य सरकार की ओर से न तो रूट मैप की स्पष्टता है और न ही किसी आपातकालीन परिस्थिति से निपटने की स्पष्ट व्यवस्था. हैरानी की बात यह है कि केदारनाथ और बदरीनाथ जैसे अति संवेदनशील क्षेत्रों में भी हेलिपैड्स की स्थिति और उड़ान निगरानी प्रणाली अत्यंत कमजोर है. इस वजह से पायलटों को प्रतिकूल मौसम या अचानक सामने आने वाली चुनौतियों से जूझना पड़ता है, जिससे दुर्घटनाओं की आशंका बनी रहती है.

गौरतलब है कि बीते वर्ष 24 मई को भी एक हेलिकॉप्टर को फाटा से केदारनाथ जाते समय आपातकालीन लैंडिंग करनी पड़ी थी. उस समय पायलट कल्पेश मरुचा ने सूझबूझ दिखाते हुए हेलिकॉप्टर को एक ढलान वाली सुरक्षित जगह पर लैंड कर जान-माल की रक्षा की थी. हेलिकॉप्टर में तमिलनाडु के छह यात्री सवार थे. इन घटनाओं से साफ है कि चारधाम यात्रा क्षेत्र में हेलिकॉप्टर सेवाओं की निगरानी और नियमों की सख्त आवश्यकता है. स्थानीय प्रशासन को चाहिए कि उड़ानों की संख्या, पायलटों की दक्षता, तकनीकी परीक्षण, और मौसम संबंधी सूचनाओं की त्वरित उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए एक समर्पित तंत्र विकसित करे. वरिष्ठ विमानन विशेषज्ञों का कहना है कि बिना ठोस नीति और तकनीकी सुदृढ़ीकरण के पर्वतीय क्षेत्रों में हेलिकॉप्टर सेवा का सुरक्षित संचालन संभव नहीं है. अगर अब भी सरकार और संबंधित एजेंसियों ने सबक नहीं लिया तो आने वाले दिनों में ऐसी घटनाएं बार-बार सामने आ सकती हैं, जो न केवल यात्रियों की जान जोखिम में डालेंगी, बल्कि उत्तराखंड की धार्मिक पर्यटन छवि को भी प्रभावित करेंगी. 

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