
कभी कश्मीर की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की पहचान रहे अखरोट अब बाजार में पिछड़ते जा रहे हैं। सस्ते विदेशी अखरोटों की आमद, प्रसंस्करण की कमी और मंडियों के अभाव ने इस परंपरागत कारोबार को बुरी तरह प्रभावित किया है। किसान और व्यापारी दोनों परेशान हैं और सरकार से राहत की उम्मीद लगाए बैठे हैं।
कश्मीर के पुलवामा के किसान अब्दुल रहमान का कहना है कि हमारे अखरोट पूरी तरह जैविक हैं लेकिन कैलिफोर्निया, चीन और चिली से आने वाले सस्ते अखरोटों के आगे टिक नहीं पा रहे। बाहर के अखरोट पैकिंग में बेहतर और दाम में सस्ते हैं।
प्रसंस्करण यूनिटें बंद, किसान बेहाल
कश्मीर ड्राई फ्रूट संघ के अध्यक्ष हाजी बहादुर खान ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में कई प्रसंस्करण इकाइयां बंद हो चुकी हैं। जीएसटी ने और बोझ बढ़ा दिया है। हमारी मांग है कि अखरोट पर से जीएसटी हटाया जाए ताकि किसानों को राहत मिल सके। कुपवाड़ा के किसान बशीर अहमद ने बताया कि हमारे पास न तो तय मंडी है, न ग्रेडिंग की व्यवस्था। फसल तैयार होने के बाद हमें आढ़तियों को बेचना पड़ता है जो बाहर ले जाकर मनमाने दाम तय करते हैं।
जम्मू के बाजारों में भी बढ़ी विदेशी अखरोट की मांग
जम्मू की हरी मार्केट में पिछले सात साल से ड्राई फ्रूट का कारोबार कर रहे अमनदीप सिंह बताते हैं कि इस समय कश्मीरी अखरोट 450 रुपये किलो बिक रहा है, जबकि कैलिफोर्निया का 600 और चिली का 900 रुपये किलो है।
चिली का अखरोट स्वाद और गुणवत्ता में सबसे अच्छा है, लेकिन महंगा होने से कम बिकता है। कैलिफोर्निया वाला सस्ता भी है और उसमें दाने अच्छे निकलते हैं। इसलिए पिछले कुछ वर्षों से ग्राहक वही मांगते हैं। कश्मीरी अखरोट की बिक्री लगातार घट रही है।



