नागरिकता अधिनियम की धारा 6 ए के खिलाफ याचिकाओं पर फैसला आज

सुप्रीम कोर्ट असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए 1985 में संशोधन के माध्यम से जोड़े गए नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की सांविधानिक वैधता को चुनौती वाली याचिकाओं पर गुरुवार को फैसला सुनाया। इस धारा को असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए 1985 में एक संशोधन के माध्यम से संविधान मे शामिल किया गया था। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत, एमएम सुंदरेश और मनोज मिश्रा ने बहुमत से फैसला सुनाया, जबकि जस्टिस जेबी पारदीवाला ने असहमति जताई।

इससे पहले पीठ ने फैसला सुरक्षित रखने से पहले चार दिनों तक अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान, कपिल सिब्बल और अन्य की दलीलें सुनीं थीं। बता दें कि धारा 6ए की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाते हुए 17 याचिकाएं दाखिल की गई थी। धारा 6ए को असम समझौते के तहत संविधान के नागरिकता अधिनियम में शामिल लोगों की नागरिकता से निपटने के लिए एक विशेष प्रावधान के रूप में शामिल किया गया था। 

केंद्र सरकार ने एक हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वह भारत में विदेशियों के अवैध प्रवास की सीमा के बारे में सटीक डाटा प्रदान करने में सक्षम नहीं होगी, क्योंकि ऐसा प्रवास गुप्त तरीके से होता है। 7 दिसंबर को, शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6 ए (2) के माध्यम से भारतीय नागरिकता प्रदान करने वाले प्रवासियों की संख्या और भारतीय क्षेत्र में अवैध प्रवास को रोकने के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं, इस पर डाटा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।

हलफनामे में कहा गया था कि 2017 से 2022 के बीच 14,346 विदेशी नागरिकों को देश से निर्वासित किया गया। जनवरी 1966 से मार्च 1971 के बीच असम में प्रवेश करने वाले 17,861 प्रवासियों को इस प्रावधान के तहत भारतीय नागरिकता दी गई। इसमें कहा गया था कि 1966-1971 के बीच विदेशी न्यायाधिकरणों के आदेश से 32,381 लोगों को विदेशी घोषित किया गया।

धारा-6ए विशेष प्रावधान के तहत शामिल की गई थी

नागरिकता अधिनियम की धारा-6ए विशेष प्रावधान के तहत शामिल की गई थी ताकि असम समझौते के तहत आने वाले लोगों की नागरिकता से संबंधित मामलों से निपटा जा सके। कानून के इस प्रावधान में कहा गया है कि जो लोग एक जनवरी 1966 को या इसके बाद और 25 मार्च 1971 से पहले बांग्लादेश सहित उल्लेखित इलाकों से असम आए हैं और यहां निवास कर रहे हैं उन्हें वर्ष 1985 में संशोधित नागरिकता कानून के तहत नागरिकता के लिए धारा-18 के तहत अपना पंजीकरण कराना होगा। इसका नतीजा यह है कि बांग्लादेश से असम आने वालों के लिए कानून का यह प्रावधान 25 मार्च 1971 की ‘कट ऑफ तारीख’ तय करता है।

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